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मैं यूं भी जी लेती हूं

मैं यूं भी जी लेती हूं

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रोज चाँद खिड़की से दे जाता हूँ,

कुछ हसीन ख्बाब,

शीतल चांदनी,

बिखरा देता है।।


कुछ कतरे समेट लेती हूँ,

दुलार लेती हूँ,

संवार लेती हूँ,

जी जान से जुट जाती हूँ,

असीमित को,

सीमित करने तक,

मनोयोग से,

पूरे होते तक।।


आँखें मूंदकर,

उन्हें सहेज कर,

सीने से लगा लेती हूँ।

मैं औरत हूँ,

कभी कभी,

यूं भी जी लेती हूँ।।


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