भूख
भूख
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बनकर रहता एक सवाली सा
उलझा रहता एक बवाली सा
चिंतन में छाई वो ज्वाला सी
उदर में हो जाती निवाला सी
जब भूख सताती इंसानों को
करती बेचैन सब इंसानों को
ये गात चलती है शक्ति से
वो सब मिलती है रोटी से
कैसा अजीब बवंडर होता है
खाकर कोई महलों में सोता है
कहीं रोटी को बचपन रोता है
भूखा बच्चा देख तात रोता है
कोई पिज्जा खाये पचपन में
कोई रहे जाये भूखा बचपन में
भूखा ना कहीं प्राणी सो पाए
ऐसी महर ईश तेरी हो जाए ।।