आखिर वो भी तो इंसान है
आखिर वो भी तो इंसान है
ज़िन्दगी भला किसकी सहज होती है
जिंदगानी हसीन बनानी पड़ती है।
कई बार उठते हैं कई बार गिरते हैं
गिरकर उठते फिर गिरकर संभलते हैं।
हर दर्द यूं ही सह लेते हैं
आंखों में आसूं और होठों में मुस्कान सजाते हैं।
हंसने की उनको इजाज़त है मगर आंसुओं पर मनाही
क्या करे वो इंसान जब वक़्त ने मचा रखी हो तबाही !
वो भी औरों सा ही दिल उनका भी धड़कता है
सीने में उनके भी एहसास का दरिया बहता है।
मां नहीं वो मगर ममता की मूरत उनमें भी बसती है
ममता झलके कभी तो दुनिया उनपे हंसती है।
सख्त स्वभाव उनका या समाज ने उनको ये दिलाई है
वो एहसास जता नहीं सकते भला ये किसने रीत बनाई।
पाबंदियां औरोतों पे लगी तो पुरुषों पे रोक कोई कम तो नहीं
आज़ादी मिलके भी समाज ने ना जाने कितनी सीमाएं उनकी बनाई।
ना जाने कितनी ऐसी जंग हैं जो वो बिन दिखाए लड़ जाते हैं
ना जाने कितनी ऐसी बातें हैं वो बिन बताए समझ जाते हैं।
ना जाने कितने ऐसे दिन हैं जो वो नकली मुस्कुराहट में निकाल लेते हैं
ना जाने कितनी ऐसी रातें हैं जो वो तन्हा आंसुओं संग बांटते हैं।
खंबे से खड़े कंधों को क्या थकान नहीं होती है
झुक कर थोड़ा दर्द बांटने में क्या खराबी होती है।
बोझ कंधों पे उनके काम तो नहीं है
बस बोझ बस्ता औरों को वो दिखाते नहीं हैं।
एहसासों को छुपाने की कला इस कलाकारी दुनिया ने सिखाई है
भाव औरतों का गहना और सख्ती पुरुषों को दिखाई है।
भावों एहसासों में भेद भाव कैसा हर बार क्यों उन्हें चुप कराया है
बातों बातों में भावुक होने वाले को समाज ने पराया ठहराया है।
समझता क्यों नहीं ये समाज की पुरुषों की आंखें भी छलक सकती हैं
बातें एहसासों की उनके यहां भी की जा सकती हैं।
अधिकार उन्हें भी जब चाहा तब हंसने की है
ज़रूरतें उनकी भी बदलती हैं बस बात ये समझने की है।
मजबूत है वो तो कभी मजबूर भी बन सकता है
इंसान तो वो भी है, हालातों में वो भी झुक सकता है।
वो सबकी सुनने वाला उसको भी सुनाने वाले की जरूरत है
वो भरोसेमंद है उसे भी किसी भरोसे की जरूरत है।
वो औरों को सहारा देने वाला उसे भी कभी कभी सहारे की जरूरत है
वो सबको कंधे देने वाला उसे भी कंधे पे थकान मिटाने की जरूरत है।
झुकने, गिरने, बहने, रुकने का पूरा अधिकार उन्हें है
हर मौसम वो मर्ज़ी से जी सकता है आखिर वो भी तो इंसान है।
