आखिर कौन हो तुम ?
आखिर कौन हो तुम ?
किसी अमृता के
इमरोज बनकर
कभी हर नई सुबह के
रोज बनकर
भर जाते हो
सूने दिलों के
घरोंदों को !
किसी प्यार में
नाज बनकर
कहीं जिन्दगी के
ताज बनकर
किसी कल के
आज बन कर
छेड जाते हो
वीरान गलियों को !
किसी शब्द में
आवाज बनकर
कहीं संगीत के
साज़ बन कर
किसी कहानी के
राज बनकर
भर जाते हो एक
मुस्कान इस
उदास शहर में !
आखिर हो कौन तुम
जिन्दगी, प्यार
या ख्वाब...?