आजादी
आजादी
आजादी को हम अक्सर मोड़ते हैं,
सिर्फ देश की स्वतंत्रता से जोड़ते हैं।
कट गई है परतंत्रता की बेड़िया,
देश हमारा हो गया आजाद,
अपना अलग से संविधान।
जय घोष प्यारा हिंदुस्तान,
जन-गण-मन गूंजता राष्ट्रगान,
लहराता गगनचुंबी तिरंगा अपनी शान।
सिर्फ देश का आजाद हो जाना ही आजादी हैं ?
फिर कहाँं आजाद घूमती पूरी आबादी हैं,
दिनदहाड़े सड़कों पर,
घोर अंधेरे में क्यों सिसकती आँचलों की बर्बादी हैं।
अपने अधिकारों की स्वतंत्रता में
कहाँ दफन हो जाती है,
दूसरों के प्रति कर्तव्यों की मानसिकता।
कहाँ खो जाती है वो,
ससुराल के घर द्वार,
ढूंढने से भी नहीं मिलती पीहर की,
आजादी की दुलार।
बच्चों के लालन-पालन की,
ममतामयी वादी,
क्यों खो जाती है माँ की आजादी ?
मन के चंचल,
चपल बेलगाम इत्यादि
में खो जाती है तन की आजादी ।
आजादी कहाँ हैं,
इंसा तो अकेला और तन्हा हैं,
वास्तव में आजादी केवल एक अहसास है,
इसके अहसास में, इंसान झूलता हैं खुशी से फूलता हैं।
