आज कल सब यही सवाल क्यों पूछते हैं !
आज कल सब यही सवाल क्यों पूछते हैं !
मैं ज़ब भी
तन्हा होता हूँ,
छुप -छुप कर
रोता हूँ,
आँसू तो
रुक जाते हैं,
कुछ पल बाद....
फिर नींद में
समझ नहीं आता, कि
मैं जागता हूँ
या सोता हूँ,
आपके प्यार में
पागल हूँ,
आज कल सब यही सवाल क्यों पूछते हैं !
बैठें -बैठें
यूँ ही,
खो जाता हूँ मैं....
आपकी यादों में
पागल हो जाता हूँ मैं,
कुछ समझ में
नहीं आता,
कि ये
धूप, छाँव
सब सपने नजर
आते हैं,
कोई नहीं पराया
सब अपने
नजर आते हैं,
ये सब सच हैं
या माया, भ्रम
आपके प्यार में
पागल हूँ,
आजकल सब यही सवाल क्यों पूछते हैं !
टूटकर तुम्हें चाहना
गर पागलपन हैं,
हाँ तो मैं पागल हूँ,
तुम्हें हर पल
याद करना,
गर गुनाह हैं,
तो हाँ मैं गुनेहगार हूँ,
ये सब किस्से
मुझे
समझ में नहीं आते...
आपके प्यार में
घायल हूँ,
आज कल सब यही सवाल क्यों पूछते हैं !