फिर भी बहुत चाहती हूं
फिर भी बहुत चाहती हूं
मौत के करीब से गुजर कर
रोज जिंदगी को पाती हूं मैं
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें मैं,
फिर भी बहुत चाहती हूं।
जिस तरह सुखी पतियाँ
हवा के झोंके से बिखर जाती है,
उसी तरह तुम्हारी
खुशबू पाकर ठहर जाती हूं मैं।
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें मैं,
फिर भी बहुत चाहती हूं।
जिस तरह पतझड़ में भी
कुछ कलियां खिल जाती है,
उसी तरह तन्हाई में
जुगनू बनकर चमचमाती हूं मैं।
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें मैं,
फिर भी बहुत चाहती हूं।
जिस तरह एक बच्चा अपनी मां की
खुशबू महसूस करता है,
उसी तरह तुम्हें अपने आस
पास महसूस करती हूं मैं
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें मैं,
फिर भी बहुत चाहती हूं।
अब भी तेरी हर बात याद रखतीं हूं मैं,
तेरे किस्सों को याद कर
अब भी मुस्कुरा जाती हूं मैं।
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें मैं,
फिर भी बहुत चाहती हूं।
तेरे ही शहर में रहती हूं मैं,
फिर भी तुझसे मीलों की दूरी रखतीं हूं मैं,
अब किसी ओर से तेरे बारे में जानती हूं मैं।
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें मैं,
फिर भी बहुत चाहती हूं।
जिंदगी की इस कशमकश में
बस एक ही ख्वाहिश रखतीं हूं मैं,
जिंदगी की आखिरी सांस से पहले
बहुत करीब से देखना चाहती हूं तुम्हें मैं,
तुम्हारी बाहों में अपनी
आखिरी सांस लेना चाहती हूं मैं।
जानती हूं खो चुकी हूं तुम्हें
मैं फिर भी बहुत चाहती हूं।