इत्तफाक
इत्तफाक
कभी कभी किसी के साथ बिता हर पल, हर लम्हा दिल पर एक गहरी छाप छोड़ देता है। छोटी छोटी बातों से खुशी मिलती है। पर जब तक इस बात का अहसास होता है, वह दूर जा चुका होता है। समय रहते ही इजहार न हो तो बाद में हाथ मलकर रहना पड़ता है। इसी भाव को मैंने नाम दिया है “इत्तफाक”।
यूँ उसका घूर घूर कर देखना,
मेरे घर के सामने की उस,
खिड़की में खड़े रहना,
सबेरे सबेरे गुड मॉर्निंग कहना,
क्या एक इत्तफाक था ?
मेरी ही राह पकड़ना,
रोज उसी बस में चढ़ना,
शाहदरा से बांद्रा तक,
उसी बिल्डिंग तक सफर करना,
क्या एक इत्तफाक था ?
शाम को लिफ्ट में साथ उतरना,
नुक्कड़ की दुकान से चाय पीना,
थोड़ी देर साथ टहलना,
बीच बीच में मेरी ओर तकना,
क्या एक इत्तफाक था ?
बस स्टैंड पर रुकना,
एक ही बस में चढ़ना,
पास की सीट पर बैठना,
मेरा हाथ पकड़कर उतारना,
क्या एक इत्तफाक था ?
बाग में घंटों बैठे रहना,
एक दूसरे को देखते रहना,
इधर उधर के बातें करना,
फिर मोहल्ले तक साथ आना,
क्या एक इत्तफाक था ?
कभी चाय पत्ती लेने आना,
कभी सब्जी देने आना,
कभी टीवी ठीक करना,
कभी यूँ ही मुस्कुरा देना,
क्या एक इत्तफाक था ?
नदी किनारे घंटों बैठना,
कभी साथ में झूला झूलना,
कभी साथ गोलगप्पे खाना,
कभी चाय की चुस्की लेना,
क्या एक इत्तफाक था ?
समय बस यूँ ही गुजर गया,
वह कहीं दूर चला गया,
अब तो साथ कोई नहीं चलता,
पर याद आते हैं सारे वो पल,
क्या वह एक इत्तफाक था ?
या चाहतों का अरमान था ?