अंबर धरा
अंबर धरा
आसमा को प्यार बड़ा धरती से
कह ना सके दिल की बात मजबूरी से
दिन के उजाले में कतराती
फिर रात में ढेरों तारे लाती
तारे देख धरती खुश हो जाती पर चीड़ जाति
जब साथ आसमां में चंदा दिख जाति
सुबह-सुबह अंगड़ाई लेकर धरती अपनी सुंदरता दिखलाती
फिर पुलकित होकर मोहक मन से आसमान से हवा चली आती
ठंडी-ठंडी शीतल पावने चुपके से जब फूलों को छू जाती
मारे शर्म संकोच भाव से टहनियां इधर उधर झुक जाती
मस्त पावने जब भू मंडल की सैर करने यूं निकल चलती
रूठ जाती देख धरा के अनगिनत दीवाने चमचमाती
फिर
शाम हो जाती तो बड़ी नरमी कोमलता से तारों से उसे लुभाती
बरसों से समाए है दिल में चाहत
गगन वसुंधरा से मिलने और वसुंधरा गगन से
चलते चलते कर गए पार वो सात समंदर भी अपार
न अंबर धरती को या धरती अंबर को छू पाया
पर हो प्रतीत ऐसे एकांत में मिल रहे हो जैसे
याद जब भी आए धरा की इंद्रधनुष वो फैलाएं
स्वीकार कर अंबर का तोहफा फुल उस पर बरसाए
अतीत काल से चली आ रही इस प्रयास का निकला ना कोई परिणाम ना धरती अंबर को छू सकेगी नंबर ही धरती को इनमें इतना गहरा अंबर धरती के लिए बना है और धरती अंबर के लिए यह दो नहीं है एक है एक दूजे में ही समाई यही पृथ्वी है यही निसर्ग है जिधर से अक्षर प्रेम के हैं आए।