नाम
नाम
भीड़ भरी इस दुनिया मे पहचान बनाने मैं चला
जग को अपने अस्तित्व का पता अपने नाम से देने चला
हो नाम ऐसा सुनकर जिससे चहके हरमन
हो सावन सा दर्पण दिए सा प्रकाश हो जिसमें
हो उज्जवल भाव पर कोमल हो एहसास भी
सुरीली हो साज जैसे कोई सरगम
सोचूं सूरज कहलाऊं जिसकी रश्मि व प्रकाश भी
पर सरगम सा साज तो पाया तारों में
टिमटिमाते तारों से अंधियारे में भी जगे उम्मीद
पर जो रोशनी आ जाए पास छूमंतर कर घूम जाए देखा जो सुबह शाम खिले और जिसे देख हर मन मुस्काए ऐसे फूलों का ही नाम सबको भाए
फूलों से ही सावन सा दर्पण
इसमें शीतलता का वास
जब पवन मंद मंद है पास,
दीर्घ सुगंध का तभी हो आभास
पवन से ही तो दिए हैं जलते
कोमलता है इसके कण-कण में
इससे सरगम गीत है बनते
और होता चक्र जीवन मरण
सोच में पड़ा जो कोई नाम ना ऐसा पाया
जिसमें मैं अपने को पाया
न सूरज तारों ,चंदा में
न फूलों की खुशबू में , ना बहती हवा में ,
ना इतराती तितलियों में पाया अपनी संपूर्णता
मन ही मन मुस्काए मैं जब
भीड़ भरी इस दुनिया में पहचान बनाने में चला
जग को अपने अस्तित्व का पता अपने नाम से देने चला
नासमझ था जो नाम खोजते खो गया अपने ही बवंडर में
जैसे प्रकाश है सुरज से खुशबू से है फूल
पाऊं पहचान में भी कर्म से अपने
जग गाए गुण मेरे अस्तित्व का धीमे से जब
मैं दूं दस्तक कर्म से अपने।
