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Anjum Khatun

Romance

4.5  

Anjum Khatun

Romance

रुह या जान या यूं कहूं वरदान

रुह या जान या यूं कहूं वरदान

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335


तू मेरा रूह है या मेरी जान है।

या यूं कहूं खुदा ने भेजा मेरे लिए वरदान है।

तू मेरा सुबह भी है और शाम भी है।

तेरे होने से मेरा एहतराम भी है।


तू किसी और के लिए बेशक कुछ नहीं

मगर मेरी ज़िंदगी में पूरी जहान है।

तू मेरा रूह है या मेरी जान है।

या यूं कहूं खुदा ने भेजा मेरे लिए वरदान है।


शुक्र है खुदा का जो तू मेरी ज़िंदगी में है आया।

और कुछ ऐसे मेरी कल्पना में है छाया।

तू मेरे रातों का अंधेरा है सुबह से पहले का सवेरा है।

तेरे साथ मेरी कुछ अलग ही शान है।


मुझे समझ नहीं आ रहा।

तू मेरा रूह है या मेरी जान है।

या यूं कहूं खुदा ने

भेजा मेरे लिए वरदान है।


तू मेरे जीने की वजह है

और तेरे साथ हर पल का मज़ा है।

बिन तेरे मेरा होना एक सज़ा है।

तुझसे कितनी मुहब्बत है,

मुझे ये कहना हर दफा है।


अब कैसे बयान करूँ किसी को।

तू मेरा वो ख़्वाब है जिससे दुनिया अनजान है।

तू मेरा रूह है या मेरी जान है।

या यूं कहूं खुदा ने भेजा मेरे लिए वरदान है।


माना मेरे मज़हब में मुहब्बत एक गुनाह है।

मगर मेरा दिल तेरे इश्क़ में गुनाहगार है।

बस यही तो प्यार है।

फिर ये मन एक उलझन से क्यों परेशान है।

तू मेरा रूह है या मेरी जान है।

या यूं कहूं खुदा ने भेजा मेरे लिए वरदान है।


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