मैं वो कोरी क़िताब हूँ।
मैं वो कोरी क़िताब हूँ।
मैं वो कोरी क़िताब हूँ, जिसमें कोई अल्फाज़ नहीं। फिर भी कुछ शब्द लिखे है मैने, काश कोई उसे पहचान ले। ये आँखें ढूंढ रही है उस शख्स को जो उन शब्दों को जान ले। क्योंकि मैं वो कोरी क़िताब हूं, जिसमें कोई अल्फाज़ नहीं।
क़ुदरत नें मुझे क्या दिया है इसकी मुझे खबर ही नहीं। अपनो के आगे तो मुझे अपनी भी फिक्र नहीं। मिल जाए कोई ऐसा जो मुझे मुझसे ज्यादा जान सके, अपना मुझे मान सके। साफ दिल है मेंरा, इस दिल में कोई राज़ नहीं। कैसे बताऊं किसीको। मैं वो कोरी क़िताब हूं, जिसमें कोई अल्फाज़ नहीं।
इस ज़िंदगी में गुमनाम हूं, मिट्टी के रेत
पर खड़ी दुनिया से अंजान हूं। नहीं आता अपनें ग़मो का बयान करना, खुदका इतना ख्याल रखना। फिर भी कुछ अनजानी सी उम्मीदो के वजह से खुश हूं। इसलिए मेरे दिल में कोई साज़ नहीं। मैं वो कोरी क़िताब हूं, जिसमें कोई अल्फाज़ नहीं।
मुकद्दर से खुदको मांग रही हूँ, मुद्दतो से खुदको ढूंढ रही हूँ। जैसे मेरा कोई अस्तित्व नहीं, ऐसे अंधेरो में घूम रही हूँ। काश कोई खास मुझे मुझसे मिला दे, मेरे दिल में खुशीयो का एहसास करा दे। क्या खुदा से मेरे लिए दुआ करने वाली कोई आवाज़ नहीं। क्योंकि ये सच है। मैं वो कोरी क़िताब हूं, जिसमें कोई अल्फाज़ नहीं।