तू चाँद , मैं ज़मीन
तू चाँद , मैं ज़मीन
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तू आसमान का वो चाँद है ,
जिसे दूर खड़ी मैं देख रही हूँ।
तुझ तक जाना चाहती हूं ,
मगर तू कहीं , और मैं कहीं।
कभी तुझे छूने का मन किया ,
तो पानी में तेरी परछाई को छूती , तो कभी उठाती हूँ।
मानो अपने सपनों में तुझे पा लेती हूँ।
मिट्टी का महल बनाया हो जैसे ,
और पानी की धारा उसे अपने साथ ले गई।
कभी तू भी था मेरे साथ ज़मीन पर ,
और उन तारों ने तुझे चाँद की जगह दे दी।