जब दौर था बचपन का।
जब दौर था बचपन का।
बचपन में छप्पन सपने थे, आज वो बचपन बिछड़ गया।
इस बचपन के समुंदर से जब किनारे पर आए तो
लोगों के साथ मैं भी बिगड़ गया।
बचपन में छप्पन सपनें थे, आज वो बचपन बिछड़ गया।
ख्वाहिशें अनेक थी कभी जिसके पूरे होने का पता नहीं था।
मगर उन अधूरी ख्वाहिशों में भी मैं खुश बहुत था।
बेनाम के काम को करने पर मुस्कराता था।
कभी - कभी बीन बोले ही रूठ जाता था।
कितना कमाल का वो बचपन का ज़माना था।
क्योंकि जिस बचपन में छप्पन सपने थे,
आज वो बचपन बिछड़ गया।
उस बचपन में हर किसी से प्यार बहुत था,
समझते नहीं थे मगर हरेक पर एतबार बहुत था।
दोस्तों के साथ वादा न तोड़ने का संस्कार बहुत था।
वाकई उस बचपन में अपना अधिकार बहुत था।
बचपन में छप्पन सपने थे, आज वो बचपन बिछड़ गया।
वो वक़्त था नए इरादों का, जिन पर ज़ोर नहीं था हालातों का।
चित्रकला में ही उलझे थे। चरित्र से तो बिल्कुल सुलझे थे।
अब तो वो बीती कहानी है, वो दौर था बचपन का, ये दौर जवानी है।
आज भी वो एहसास - ऐ - बचपन याद है मुझे।
जिस बचपन में छप्पन सपने थे, आज वो बचपन बिछड़ गया।