बेपनाह इश्क
बेपनाह इश्क
अजीब सिलसिला था वह दोस्ती का साहिब
जो कुछ दूर चला और इश्क़ में बदल गया
सोचा न था कि इश्क होता है ऐसा भी
पास होकर भी न हो सका पूरा और
दूर जाकर भी न हो सका दूर
इश्क था बेपनाह मिली फिर भी सज़ा
दासताँ है पुरानी पर याद रहेगी हमारी ॥
आज 25साल बाद, फिर से मन में वही धुन गूंजने लगी
फिर से आँखों में वही चमक ,
फिर से होंठों में हल्की सी मुस्कान दिखने लगी,
आज 25 साल बाद
रास्ते के दूसरे मोड़ पर खड़ी थी वह शायद किसी की तलाश में ,
नजरें मेरी उस पर जा अटकी, जैसे एक पल के लिए प्रकृति भी ठहर गयी हो
बीते हुए दिन फिर से नजरों के सामने आ रही थी ,
प्यार था उस से जो आज एक बच्चे की माँ है ॥
दिन था वह 4.4.1997 का रास्ते के दूसरे मोड़ पर खड़ी थी
दोनों थे अंजान, बस की तलाश में रहते थे दोनों
दिन बीतता गया और दूरियां नजदीकी में बदलने लगी
दोस्त बने ,साथी बने पर समाज के नियमों ने दे दिये पहरे
कर लिया उस ने बिना मरज़ी के शादी,
रह गया मैं अकेला
समाज के ठोकरों ने सिखाया लड़ना,
उसका प्यार बना दिया कामयाब मुझे
सब कुछ था पास मेरे , बस मोहब्बत की थी कमी
कभी न भूलूंगा मैं उस का यह उपकार
जाते हुए भी बना गई मुझे कामयाब ॥
आज फिर 04.04.22 है, बीत गया 25साल
रास्ते के दूसरे मोड़ पर खड़ी थी, देखते ही सहम गई वह
डरती थी कहीं कोई देख न ले,
साथ में थी उस की मासूम सी बच्ची ,
जो उसे पुकारती बार बार
कह न पाये कुछ ,तेज़ रफ़्तार से धड़कन आवाज दे रही थी मेरी
नज़रें तो आज भी उसे वैसे ही देखती है मेरी
बेपनाह इश्क़ की थी यही दासताँ ,पर याद रहेगी हमारी ॥॥॥