वह सतरंगी पल
वह सतरंगी पल
शाम की उस काले आसमान में
तारों की असंख्य टीम टीमाती रौशनी में
चाँद की चमचमाती सफेद चाँदनी में
वह सर्दीला मौसम और ठंडी ठंडी हवा
मानो तन को सिहरन करती है,
पूर्णिमा का चाँद मानो लाया
मेरे लिए खुशहाली का संदेश
खास बन गया था वह लम्हा ,
पीछे मुड़ के जब भी देखती हूँ
फिर से अपनी इतिहास दोहराती हूँ,
उस रौशनी के नीचे घंटों तुम्हें महसूस करना
भले ही हम कभी मिले नहीं पर लगता है कि
सालों से हमारी पहचान है,
इसीलिए शायद तुम कहते हो हमेशा
कोई तो ई-मेल कनेक्शन है, जो बिना देखे बिना मिले
हम एक दूसरे को समझ पाते हैं,
आज भी मैं उस बादलों पर चमचमाते चाँद को
देखती हूँ, तुम्हारा तसव्वुर करती हूँ
करती हूँ रब से दुआ इत्तेफाक से जो मिलन हो
ऐसी ही शाम हो, ऐसी ही सुनहरे पल हो ...