परदेसी की मोहब्बत- एकतरफ़ा प्यार
परदेसी की मोहब्बत- एकतरफ़ा प्यार
एक परदेसी हूँ ,
क्यों इतना प्यार मुझे करती हो,
दिखती हो ऐसे जैसे ,
अम्बर से आई हो तुम मेरे लिए
बनके परियों की रानी
देख तुझे होती है मुझको हरदम हैरानी
राहें जुदा है तुमसे ,जातें भी जुदा है
धर्म एक है प्रेम की अपनी
पर फिर भी दिल में तुम ही हो
कितनी ज़ंजीरों को तोड़ के आऊँ
अब तू ही बता किन महफ़िलों को छोड़ के आऊँ
किन महखानो को तोड़ के आऊँ
जबसे तुमको देखा था
एक अल्पावधि चलचित्र में
तुम दौड़ी चली आई मेरे हृदयचित्त में
पर फिर भी मैं तुमसे कहता हूँ,
क्यों राह मेरी तकती हो
तुम परियों सी हो नाम परी है
तुम को पसंद है परियों की कहानी
और ढूँढती रहती हो हर कहानी में अपनी प्रियतम!
न चाँद है न चाँदनी अब हमारी किस्मत में
जुगनू भी नहीं तो क्यों रात में तुम जगती हो
फूल ही फूल बिछाये थे ,
तेरी राहों में कभी मैंने
तकदीर रुठ गयी तो क्यों खार मुझे कहती हो
अब भी आती हो तुम ख़यालो में कुछ गुन गुनाने
सूनी सी महफ़िल में क्यों साज़ तुम छेड़ती हो
जब मैंने कहा था अपनी दिल की बात
तुम्हारी सखी से !
और सखी ने वादा निभाया तुमसे मुझे मिलाने का
और तुम मिली भी रात के ठीक १२ बजे वो भी
विडीयो कॉलिंग पर तब मैंने तुमसे कहा था
कि तुम फ़ेवरेट हो मेरी हमेशा से
ये सुनकर तुमने ख़ुशियाँ ज़ाहिर कि थी इस तरह से
जैसे पसंद हूँ मैं तुम्हें पहले किसी मिले हुए की तरह से
मुझे पाकर भी तुम मेरे से बेहतर की तलाश में थी
चाहत! अमीरी की लिए तुम जिए जा रही थी
वेट एंड वॉच की डिप्लोमेसी किए जा रही थी
मिला मौक़ा एक किशोर से जो तुम्हें हरदम
गुरुजी-गुरुजी कहता रहता था
किसी ने किया कॉमेंट की मिल गया परी का पारा
इतने में ही फँस गया बेचारा! क्या पता
खुद आया हो इस तरह से फँसने आवारा
चलो ख़ैर! जो भी हो रात बिता ही ली
घर से भागकर एक दिन
फिर ये चलता रहा सिलसिला दिन पे दिन
तुम्हारे दिये ज़ख्मों से घायल हो गया हूँ मैं
बेरहम दिल हो ,
फ़िर क्यों खास बनी रहती हो
कुछ साल पहले ही तो ,
वादा किया था ना तुमने
कभी ज़िंदगी में नहीं आओगी मेरी इक ख़्याल बनकर
फिर क्यों आ जाती हो ,
तुम इन हवाओं सा- बयार बनकर
मेरी ज़िंदगी में हर पहर का क़हर बन कर
दर्द तो एकतरफ़ा है ,मगर सच्चा है
ये ज़ख़्म तो तुमने भी नहीं देखा है
शायद कोई पथिक मंज़िल की तलाश में
पथ से भटक गया है
या यूँ कहूँ कि मेरी मंज़िल के पथ की
क्या तुम एक कड़ी हो ?
ना मिलके भी तुमसे ना जाने क्यों
बिछड़ने का एहसास है
और यूँ ना बिछड़ के भी
ना जाने क्यों अब भी तुमसे मिलने की एक आस है
तुमने सच में एहसास करा दिया
सोशल मीडिया से जुड़ कर ,
प्यार करना भी क्या झक्कास है!

