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VEENU AHUJA

Abstract

4.8  

VEENU AHUJA

Abstract

स्त्री : हक़ है मुझे

स्त्री : हक़ है मुझे

22 mins
557



बड़े आदमकद शीशे के सामनेउसने साड़ी पर ब्रोच लगाया . दाएं बाएं घुमकर उसने खुद को निहारा . महीन गोल्ड वर्क के चौड़े बार्डर वाली इस हल्के गाजरी रंग की साड़ी में वह बहुत ही सौम्य व गरिमामयी लग रही थी . बालों को धीरे से उठाकर उसने कुछ ढीला सा जूड़ा बनाकर उसे साइड क्लिप से व्यवस्थित किया,. गले में छोटी मोती माला व कानो में छोटे गोल टॉप्स डाल लिए . एकलंबी सांस लेकर उसने अपने व्यवस्थित बड़े से कमरे में नजर डाली तो उसकी नजर सामने पति अंकित की फोटू पर अटक कर रहगयी ' वह घुमी . उस फोटू को धीरे से सहलाया . उसे ऐसा लगा जैसे उसने अंकित को अभी अभी स्पर्श किया. उसने अपनी आंखे बंद करली . वह इस एहसास को अपने भीतर संजो लेना चाहती थी . ऑखें खोलने से उसे भय था . यह एहसास ऑसू बन बाहर न गिर पड़े। वह दो पल वैसे ही खड़ी रही . लगता था समय को थामने की कोशिश कर रही थी तभी दरवाजे पर खट्ट की आवाज़ ने उसकी तंद्रा भंग कर दी . बाहर नमिषा उसकी प्यारी बहू पूछ रही थी - - "माँ आप तैयार है बाहर गौरव आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"

"हाँ ' बस आती हूँ" आज ऑफिस वालों ने उस के रिटायर्ड होने पर  विदाई समारोह आयोजित किया था ' उसने एक बार पुनः अपने को शीशे में निहारा फिर अंकित को देखा . जैसे समर्थन चाहा अच्छी . लग रही हूँ न ' फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी। बाहर, निमिषा ने उसने पैर छुए और बोली "माँ रिटायरमेंट की बधाई . आप बहुत अच्छी लग रही है. लेकिन आज आप पार्टी केलिए जारही है कार्यके लिए नही माँ " बहुत प्यार से कहते कहते उसने कंधे पर लटकते बड़े बैग को हटाकर साड़ी से लगभग मैच गुलावी क्लच उसके हाथ में थमा दिया और बोली, ये मेरी तरफ से उपहार . उसने प्यार से निमिषा के सिर पर हाथ रख दिया था, फिर पोती अदिति की ओर मुखातिब हो कर पूछा ' और . मेरी गुड़िया को उपहार में क्या चाहिए ? गुड़िया चार वर्षीय उसकी प्यारी पोती ने भोलेपन के साथ अपनी फरमाईश बतायी. साथ में हेलीकाप्टर मैने उसकी बात को पूरा किया तो उसने दौड़कर अपनी छोटी छोटी बाहों को मेरे पैरो के ईदगिर्द लपेट दिया . अरे अरे दादी की साड़ी खराब हो जाएगी . शाम को ढेर सारा प्यार करना बहू ने कहा । तभी गौरव . उसके बेटे ने पूछा - "चले माॅ देर होरही है" . वह गौरव के साथ बाहर आगयी . निमिषा बाहर तक छोड़ने आयी थी. गौरव आज मैं आगे बैठू - मैंने गौरव की ओर देखा . क्यो नही ' कहते हुए उसने आगे का दखाजा खोल दिया . वह कार मे आराम से बैठी और निमिषा को बाय बाय . किया । उसने धीरे से आँखे बंद करली . उसके जीवन का एक अध्याय ( पेज ) जो उस ने पति अंकित के साथ आरम्भ किया था ' आज समाप्ति पर था पर खेद . अंकित उसके साथ न था।

अंकित और वह अर्थात अंकिता दोनो की मुलाकात एक कोचिंग सेन्टर में हुयी थी, दोनों बीटेक कर रहे थे लगन के पक्के . किस्मत के धनी . तीसरे वर्ष आते आते दोनो की अच्छी कम्पनी में जॉब लग गयी थी दो वर्ष तक दोनों फोन पर बातचीत करते कभी - कभी एकसाथ घूमते . फिर धीरे-धीरे दोनो को लगने लगा कि वे एक दूसरे के लिए अच्छे जीवन साथी साबित होगे तो दोनो ने परिवार में बात की . आधुनिक विचारधारा वाले दोनों परिवारों की रजामंदी से धुमधाम से शादी सम्पन्न हुयी । अंकिता अकसर कहती - - आइ हैव फाउण्ड अ व्युटीफुल लाइफ . ( मैने सुन्दर जीवन पाया है ) 

सुन्दर जीवन . लोग कहते हैं - - सुन्दर चीजों को बुरी नज़र लग जाती है. वह नहीं मानती . परन्तु उस दिन के हादसे के बाद उसे भी लगने लगा था - शायद . लोग सही कहते हैं । आजसे . आठ वर्ष पूर्व की उस भयानक रात ने उसकी ऑखों में स्थायी बसेरा बना लिया था . पलकों के पट बंद होते ही वहाँ हलचल आरंभ हो जाती . यह हलचल उसकी धमनियों में प्रवाहित श्वांस व रक्त के आवेग को तीव्र करती हुयी . पसीने की कुछ बूंदों के रूप में माथे पर परिलक्षित होती । उसे लंबे समय तक ' .चिन्ता - पैनिक . अटैक ' की दवाईयां लेनी पड़ी थी। आज . उसकी पुनरावृति हो रही थी शायद ... ।


गौरव ने अचानक गाड़ी रोक दी थी . वह घबड़ा गया था . पसी ने की बूंदें देख बोला - - "माँ . आप ठीक है न . ए .सी बढ़ा दू क्या?" "नहीं . मैं ठीक हूँ "मेरे कहने पर बेटे ने गाड़ी आगे बढ़ा दी और उसने शीशे के बाहर जबरदस्ती अपनी ऑख गाड़ दी लेकिन सड़क किनारे लगे पेड़ से वह दृश्य फिर सजीव हो उठा --- - . फ़िल्म देखकर लौटते समय . अंकित ने अपना पसंदीदा गाना धीमी आवाज़ में लगा दिया - . शायद . इस जन्म में मुलाकात हो न हो ... लगजा गले


वह गुस्सा हो गयी थी . जीवन में . किसी भी रूप में नकारात्मकता को स्वीकार नहीं करना चाहिए ' यह गाना उसके अन्तस . में भय का सृजन करता था. उसने गाना बदलवा दिया - हँसते हँसते कट जाए रास्ते . जिन्दगी यूं ही चलती रहे - 

धड धड कड़कड .. अचानक गाड़ी मुख्य सडक से किनारे के पेड़ से जा टकरायी थी .. हाइवे पर सामने से आते ट्रक ने जोरदार टक्कड़ मारदी थी . - वह चीखी और ऑखें खोली . उसकी गोद में लहुलुहान अंकित पड़ा था, उसकी आँखों में कार के ढेरों शीशे चुभे हुए थे ' उसे एक ज़ोर की हिचकी आयी . वह बेहोश हो गयी थी ' ' होश आया तो उसने हल्की कुहनी व माथे की चोटों के साथ खुद को अपने कमरे में पाया ' . वह धीरे से उठी, सिरहाने रखे , पानी के गिलास को मुॅह से लगाया . फिर घूँट घूँट पिया . अचानक ' रात्रि की घटना स्मरण हो आयी . पानी का गिलास . जमीन पर गिरा और कई टुकड़ों में विभक्त हो गया . वह झटके से उठी तो एक टुकड़ा उसके पैरों में चुभा . कुछ मिली सेकण्ड उसे दर्द ने रोका . फिर उस ' काँच के टुकड़े के साथ ही उसने बाहर दौड़ लगादी . पीछे एक लाल लकीर खींचती चलीगयी '


दरवाजे के बाहर का दृश्य देखकर ... उसका सर्वांग कांपा . फिर वह डह गयी उसे केवल याद रहा .. बेटा गौरव उसकी ओर दौड़ा था । . 


झटके के साथ गाड़ी रुक गयी थी . "मां - मां आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही . हम वापस चलें ." अंकिता ने धीरे से ऑखें खोली ' हाथों से आगे से पीछे तक के बालों को व्यवस्थित किया ' रुमाल से थोड़ा चेहरा सही किया और कहा '-"नही . मॅ ठीक हूँ ." "अच्छा माँ मै वापसी में भी आपको लेता जाऊँगा । "... गौरव ने जाते हुए कहा

ऑफिस की सीढ़ियाँ . चढ़ते समय उसे जीवन का एक एक पड़ाव याद आया कैसे . दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ते हुए अमित . एकअच्छी. कंपनी में सीनियर साफ्टवियर डेवलपर के रूप में कार्य करते हुए . यूट्यूब पर मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में भी बहुत प्रसिद्ध हो गए थे और वह आज. एक प्रतिष्ठित कम्पनी में सीनियर सॉफ्ट वियर मैनेजर की पोस्ट से रिटायर्ड होने जा रही थी . लोगों के चेहरों पर पड़े मुखौटों व मुखौटों के पीछे की सच्चाई को पढ़ने में सिद्धहस्त उसने जगत की रीति के अनुरूप मुस्कराहट को धारण किया और उस बड़े से हॉल में प्रवेश किया।


वापसी में गौरव को उसने हॉल मेंअंदर .बुलवा लिया था, सबने . खूब सारी सेल्फी उस दिन खींची . बहुत सारे बुके उपहार में दिए गए . ' बाहर निकलते . निकलते . वह बहुत ..भावुक हो गयी थी कल तक जहाँ से उसकी सुक्ह शुरु होती थी और शाम खत्म ' . अब वह ऑफिस उसके लिए पराया होने जा रहा था . यह कंपनी जिसकी प्रगति के लिए उसने दिन रात एक कर दिए थे उसके जीवन का नहीं उसके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन चुकी थी उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी बहुत प्यारे रिश्ते से बिछुड़ रही हो। उसने मुड़ कर ऑफिस को भरपूर निहारा फिर झटके से कार में बैठ गयी . उसने गहरी सॉस ली और गौरव से कहा - "किसी खिलौने की दुकान पर रोक देना।"

उसने दुकान से एक प्यारी गुड़िया व एक हेलीकाप्टर खरीदा और उत्साह से परिपूर्ण हो कार में बैठ गयी . मां को किसी छोटे बच्चे के समान चहकते देख .बेटे ने इशारे से पूछा . पताहै आज वायुसेना स्थापना दिवस ( आठ अक्टूवर ) के उपलक्ष्य में हेलीकाप्टर पर छूट (डिसकाउण्ट ) मिली. मैने उल्लास से बताया . क्या माँ . आप भी . और गौरव ने मुस्कराते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी।कुछ देर की चुप्पी के बाद गौरव ने उसकी और देखा . मां गुड़िया के साथ हेलीकाप्टर क्यो?

"ताकि हमारी अदिति गुड़िया सी सौम्यसुन्दर निर्मल होने के साथ साथ आसमान में ऊँचा उड़ने वाली चिड़िया बनें ' उसके हौसलों के पंख हमें ही तो बनना है . जिससे निर्भय होकर वह परवाज़. भर सके ।" मैंने गम्भीर सधी आवाज़ के साथ बेटे का कंधा प्यार से थपथमाया . दोनों केचेहरे और भी सौम्य हो उठे ।


गाड़ी के हार्न की आवाज़ सुनते हीदादी आ गयी कहते हुए अदिति बाहर तक आगयी थी . गाड़ी से उतरते ही ' मेरा बच्चा ' कहते हुए उसने भी उसे गले से लगा लिया था . अपने खिलोने पापा से ले वह भागती हुयी अंदर चली गयी ।

वह सोफे पर अधलेटी सी बैठ गयी थी . जाने क्यों .वह कुछ ठीक महसूस नहीं कर रही थी . हमेशा भागने दौड़ने में मशगूल अंकिता को जैसे जीवन भर की थकान आज . एकसाथ अनुभव हो रही थी . जैसे,उसके मन व शरीर दोनों ने उसके रिटायर्ड होने के संकेत ग्रहण कर लिए थे . निमिषा दौड़ कर पानी ले आयी थी . तय कार्यक्रम के अनुसार रात्रि भोज ( डिनर ) रेस्टोरेंट मे करने की उसकी बिल्कुल इच्छा नही थी, लेकिन वह बच्चो का मन भी नहीं तोड़ना चाहती थी ' निमिषा ने आगे बढ़ कर कहा - माँ . आप कमरे में कुछ देर आराम कर लें . हम तैयार होकर आपको बुला लेगे . चाहे तो कुछ आरामदायक ड्रेस पहन चलें। हूँ .... वह ऐसे ही अपने कमरे में लेट गयी थी ' आदत के विपरीत ' चप्पल को लेटे लेटे ही झटक कर गिरा दिया . अपनी नजरे अंकित ( फोटा' ) पर टिका दी . पति के समीप होने का एहसास कितना सुकून भरा होता है . पति के बिना पत्नी भीतर से जैसे पूरी तरह खाली हो जाती है . केवल साँसो का चलना जिन्दा रहने का प्रमाण हो जाता है।

वह सोती रही . आँख खुली तो घड़ी साढ़े नौ बजा रही थी ' हड़बड़ा कर उठी . बाहर हॉल में अदिति निमिषा ' गौरव आपस में हंसी - मजाक कर रहे थे, अरे . तुम लोग अभी तक तैयार नहीं हुए उसने थोड़ा बेचैन हो कर कहा तो तीनों मुस्करा दिए . उसकी अनामिका ऊंगली पकड़ नन्ही अदिति बोली - अरे दादी ' आपको तो कुछ पता नही . (अपने हाथों को सिर तक ले जाकर बोली ) पापा ने खाना ' स्वीगी 'से मंगाया है हम सब साथ में मस्ती करेंगे और गिफ्ट खोलकर देखेंगे . ' उसने गौरव की ओर देखा - न.न मुझे न देखे ' यह सुझाव निमिषा का था . गौरव ने छोटे बच्चे सा भोला मुँह बनाकर कहा तो वह भी हँस दी '' माँ आप थकी लग रही थी . ठीक किया न ' आप ड्रेस बदल आएं फिर आराम से सब साथ में बैठते हैं। थैंक यूँ निमिषा ' बहुत सही, यह तो मेरे मन की मुराद पूरे होने जैसा है।


उसने धीरे से ऑखें खोली . पूरा कमरा सूर्य की रोशनी से नहा रहा था . उसने घड़ी की ओर नजर दौड़ायी . अरेबाप रे . साढ़े आठ . बज रहे थे . वह झटके से उठबैठी, रोज तो छःबजे ही नींद खुल जाती थी . रातको सोते सोते देर बहुत हो गयी थी शायद इसलिए समय का पता ही नहीं चला ' उसने निमिषा को शिकायत की ' मुझे उठाया क्यों नहीं ' . क्यो उठाती . आज आपको ऑफिस थोड़े ही जाना था उसने अदब के साथ कहा।

मम्मी . आज आपका कोई खास प्रोग्राम है क्या . गौरव ने नाश्ते के समय पूछा और बताया कि . . निमिषा दो दिन के लिए माँ के घर जाना चाहती है .. मैने प्यार से सहमति देते हुए कहा , क्यों नहीं . मेरा आज और आगे की फिलहाल कोई खास योजना नहीं है मैं घर पर ही हूँ।

निमिषा और अदिति गौरव के साथ ही चली गयी ' उसका खाना निमिषा बनाकर रख गयी थी, गौरव रात को आना था . आज पूरा दिन था और वह घर में अकेली ' ।

कमरे में जाकर वह अपना नया समय चार्ट बनाने वाली थी ।कलसबसे पहले कबाड़ रूम को खाली कर के सफाई करवानी है। प्रातः सात से नौ वह योगा व ध्यान करेंगी।फिर निमिषा की थोड़ी मदद करेंगीबच्चों के एनजीओं ' उत्साह ' . में जहाँ महीने में एकबार जाती थी अब वह हफ्ते में दो दिन दे सकती है। 

कुछ समय वह कहानी लेखन को देसकती है पुरानी अप्रकाशित कहानियों को प्रकाशित करवाएगी --

और . उसे कुछ न समझ आया . उसे लगा उसका जीवन बहुत बोरिंग होने वाला है - ढाई बज चुके थे उसने खाना खाया तो साथ में उबासियाँ आनेलगी . उसने टीवी चलादी . जब ऑखे बोझिल होनेलगी तो टी.वी ऑफ कर वह सोगयी ।' शाम के छः बजे मेड ( कामवाली बाई ) आयी ' वह सारा काम समेट गयी . निमिषा उसको बोल गयी थी तो उसने मटर पनीर की सब्जी भी बना कर रख दी ' रोटी उसने मनाकर दी कि वह रात में गर्म गर्म बना लेगी।

महरी के जाने मे बाद वह कुछ देर गार्डन में बैठी, फिर बालकनी मे दो एक परिचित व मित्रों को फोन किया पर लगा सब व्यस्त हैं . फोन कट होने के इंतजार में . उसने फिर किसी को फोन नहीं लगाया . अकेले न टीवी अच्छी लग रही थी न मोबाइल . साढ़े नौ बजते बजते गौरव के आने पर वह लगभग रुआसी होगयी . गौरव पास बैठा रहा लेकिन थकान से उसे नींद आरही थी . अतः बेटे को गुडनाइट कह वह अपने कमरे में आ गयी सुबह काइंतजार करनेके लिए . : -- ।

दूसरे दिन . उसने गौरव को कहा . उसे छोटी मौसीके घर छोड़ दे शाम को वापसी में लेता भी आए .' वह पूरे दिन घर में अकेले नहीं रह सकती ।

तीसरे दिन . निमिषा बारह बजे तक आगयीथी . उसके भी प्राण लौट आए थे ' पूरा दिन अदिति व निमिषा के साथ कैसे बीत गया . उसे पता ही न चला । कल से उसे अपनी समय सारणी का पालन करना था।


उसका प्रत्येक दिन उत्साह केसाथ शुरु तो होता . परन्तु अवसान अधिकतर उदास कर जाता . शाम को पांचसे सात निमिषा घर में ही कोचिग पढ़ाती वं अदिति ट्यूशन पढ़ने चली जाती, बेटे गौरव का घर आने का समय निर्धारित न था वह आर्ट व अभिनय विश्वविद्यालय में अपनी प्रतिभा को मांझ रहा था . शुरुआत में ही लोगों की सकारात्मक प्रतिकियाए उसका उत्साह वर्धन कररही थी. शाम का समय उससे काटे न कटता , उसने अदिति को पढ़ाने की पेशकश की थी किंतु घर में एक राय न बन पायी थी उसने भी महसूस किया अदिति उसमे साथ खेल ने में खुश होती थी किंतु टयूशन की अभ्यस्त थी और बीच सत्र में उसकी पढ़ाई अव्यवस्थित हो सकती थी ।


इस मंगलवार को वह बच्चो के एन .जी .ओ उत्साह गयी . पहलेतो वह ज्यादातर ऑफिस में ही बच्चो की समस्या पर बात करती थी और दान देकर चली आती थी उस दिन वह भीतर गयी उन बच्चों से बातचीत की तो उसे पता चला कि ज्यादातर बच्चे आपरेशन के बाद देख सकने में सक्षम हो सकते थे नेत्रदान इनके अंधेरे जीवन मे उजाला फैला सकता था ' उनसे बात करके उसने जाना कि बाहर की दुनिया उनके लिए जितनी काली वअंधेरी थी . उनका अतस उनकी आन्तरिक शक्ति के द्वारा उतना ही उजाले वउत्साह से लबरेज था, वे सब आत्मनिर्भर थे और दिनभर कुछ न कुछ सीखने में लगे रहते थे ' कुछ का गाना सुनकर उसकी आँखें नम हो गयी ' । उसदिन उसको जीवन का एक लक्ष्य मिल गया था सर्वप्रथम उसने स्वयं के नेत्रदान का फार्म भरा फिर अधिक से अधिक लोगों को इस हेतु प्रेरित करने का संकल्प भी लिया . वह जानती थी डगर कठिन थी मंजिल दूर ' मगर वह भी संकल्प की पक्की थी . आज घर लौटते समय वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी मानो उसके पंख लग गए थे और वह उड़ने के लिए तैयार ।

एक शाम को वह दरवाजे पर खड़ी थी उस समय मिसेज शर्मा वहाँ से निकली तो चलते चलते उन्होंने साथ में टहलने केलिए पार्क चलने का आमंत्रण दिया तो वह इंकार न कर सकी . फिर तो यह उसका नित का नियम हो गया . धीरे-धीरे पार्क में नित आने वाले लोग उसे और वह .उन्हें पहचानने लगी . उसने महसूस किया वह तो किसी को पहचानती न थी लेकिन ज्यादातर लोग उसे जानते थे। युवा उस के पास मार्गदर्शन हेतु भी आते थे . जीवन धीरे धीरे पटरी पर लौट रहा था पर जीवन कभी भी सीधा व सरल नहीं होता . शांत सागर का हृदय   सैकड़ो तूफ़ानो को अपने में समाहित किए रहता है। उसके जीवन का एक और तूफान भविष्य में उथल पुथल मचाने को तप्पर था जिससे वह पूरीतरह अनजान थी।

और अंकिता अलीगढ़ वाली "कैसी हो .." सुनकर वह चौकी और पलटकर देखा तो उसका सहपाठी कॉलेज मित्र अभिषेक अपने चिरपरिचित अंदाज में पार्क में पीछे सेउसे - पुकार रहा था -

अभिषेक उसे ' अ ' वर्ण की समानता के कारण यूँ ही . इस नाम से हमेशा चिढ़ाता था, सालों बाद वही विशेषण उसी लहज़े के साथ सुनना अप्रत्याशित था ' . आश्चर्य के साथ उसके मुँह से बेसाख्ता निकला - ' तुम?यहाँ कैसे ?थमे थमे जरा मुझे भी सॉस लेने दे उसने हौले से कुछ झुक कर कहा तो वह भी मुस्करा दी '

लगभग एक से डेढ़ घंटे की बातचीत में उसने उसके जीवन का पोस्टमार्टम ( सबकुछ जानना ), कर दिया था ' रिपोर्ट यह थी कि जनाब ने किसी बेहद खुबसूरत ऐश्वर्या सी लड़की से शादी की थी . किंतु अत्यधिक खर्चीली व फैशन परस्त उस लड़की को अभिषेक की थकान भरी ट्रांसफर जॉब व सीमित आय का फंडा ज्यादा पसंद नहीं आया ' उस की भावनाओ की परवाह किए बिना वहसालभर के अंदर उसे छोड़ गयी मन को लगे पहले प्यार के झटके ने काम के प्रति उसके समर्पण को और बढ़ा दिया ' कामयाबी की सीढ़िया चढ़ते हुए उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, ' ।

उसने अभिषेक को बाय बाय कहा तो उसे महसूस हुआ जैसे आज उसकी चाल में अलग ही नफासत थी . वो मुस्कराई . शायद मन के साथ शरीर भी पुराने समय में पहुँच गया था 'घर के बाहर . निमिषा को देख उसे आभास हुआ आज समय को पंख लग गए थे उसे कुछ ज्यादा ही देर हो गयी थी . I '

आज भीतर आकर वह सोई नहीं थी . कहानियों का पुराना गठ्ठर निकाला और सामने आयी कुछ पंक्तियाँ पढ़ने लगी . उसका मिलना ' उसकेलिए कयामत का आना था . उसकी रूह से नख तक अलग ही राग बजरहा था . वह उसमें झूम रही थी . वह एहसास अवर्णनीय था .. वह भीतर से पूरी नयी हो गयी थी --- -

फिर ये रोज का शगल हो गया . निमिषा को उसने बता दिया था . किसी पुराने मित्र से मुलाकात हो गयी थी . उसका देर से आने का नियम . आकर कहानियाँ पढ़ना . कुछ नयी पंक्तियाँ लिखने का नियम बदस्तूर ज़ारी था.. अब वह दिनभर खुश रहती थी, निमिषा मे साथ खरीदारी पर जाती अदिति के साथ खेलती और कभी कभी सब एकसाथ मूवी देखते . जीवन इससे ज्यादा सुंदर क्या होता होगा।

पर . शायद लोग फिर सच बोले थे - सुंदर चीजों को नज़र लग जाती!

 

आज उनका घर दुल्हन की तरह सजाया गया था . दो मंजिला वहइमारत रंगबिरंगी रोशनी से इंद्रधनुषी छटा बिखेर रही थी . डिस्को लाइट ' छोटे छोटे तरह तरह की डिजाइन बनाते बल्ब . दीपावली ' होने का आभास करा रहे थे ' ।

आज अदिति का पांचवा जन्मदिन था . उसके जन्म के बाद का पहला सेलीब्रेशन . उसके जन्म के समय . उसकी ( अंकिता की ) तबियत ठीक नहीं रहती थी ' तो कोई सामाजिक समारोह का आयोजन वे न कर सके थे ।तालियों की गड़गड़ाहट के बीच केक कटा तो उसने छोटी सी सोने की बाली अदिति के कानोमें डाल दी ' । गौरव हाथ के इशारे से शोर को शांत करते हुए बोला - आपके लिए एक बड़ा सरप्राइज ' और भी है . उसने जेब से दो अंगुठियां निकाली , अभिषेक को पास जाकर लिवा लाया जबतक वे दोनों कुछ समझते . गौरव ने उनदोनो की सगाई की घोषणा करदी थी।

वह सकते में थी ' उसने डरी सहमी नज़रो को अभिषेक की ओर घुमाया . उसकी पुतलियों में घुमते प्रश्न चिह्न ने उसे भीतर तक शर्मिदा कर दिया . अदिति की आंखों की क्षमा याचना को अभिषेक ने स्वीकारा . अदिति के लिए लाए उपहार को मेज पर रखा . और सीधा बाहर निकल गए।

अंकिता पसोपेश में पड़ गयी . उससे खड़ा नहीं हुआ जा  रहाथा. पास में पड़े सोफे पर हाथ रखकर थोड़ा सहारा लिया फिर  किसी हारे जुआरी की तरह धीरे धीरे ' थके कदमों से अतिथि कक्ष की ओर बढ़ गयी ... पीछे पीछे कुछ डरा सहमा सा माथे पर ढेरो प्रश्नों की सिकुड़न लिए किसी छोटे बच्चे कीतरह गौरव मां के पीछे पीछे हो लिया।

अतिथि कक्ष में प्रवेश करते ही उसने चार फलांग का फासला दो में नापा उसे लग रहा था . जल्दी सोफ़े तक न पहुंची तो वह गिर पड़ेगी ' । सोफे तक पहुंचते ही वह धम्म . से अधलेटी सी गिर पड़ी . उसने सिर सोफे मे सिरहाने पर कुछ ऊपर टिका दिया था. थकान से शरीर टूट रहा था . पैर कांप रहे थे . हाथ नम हो गएथे ' गला सूख रहा था . ऑखें समुंदर में डूब - उतरा रही थी ..... वह कुछ पल ऐसे ही पड़ी रही . उसे लगा . वह एक हारी हुयी मां थी . जिसको उसके अपने बेटे ने ही हराया था .. . कुछ पल और किकर्तव्य विमूड़ सा मां की आवाज़ पर कान लगाए गौरव खड़ा रहा . फिर बढ़ा . मेज पर रखे जग से पानी निकाला . धीरे-धीरे माँ के पास आकर ' गिलास को मां के हाथ में थमा दिया . क्षणांश भर गिलास पकड़े खड़ा रहा जब लगा . गिलास गिरेगा नहीं . वहीं सोफे के पास . नीचे बिछे कालीन पर बैठ गया . और बहुत धीरे से अपना सिर मां की गोद में रख दिया, अंकिता ने धीरे-धीरे घूंट घूंट पानी पिया . पिया गया पानी बराबर आँखों से निकलता जा रहा था . पानी खत्म होने पर उसने गिलास वही सोफे पर लुढ़का दिया और हाथ में पकड़े रुमाल से अपना मुॅह पोछा . सामने दीवार पर लगे फोटू में . ऑफिस की सीढ़ियों पर नीचे खड़ी मुस्कराती अंकिता को अंकित हाथ पकड़ कर ऊपर ले जारहे थे, । .. ______:

नहीं . वह कमजोर नहीं पड़सकती . बेटे को आधुनिक जीवन शैली में ढालते ढालते कहीं उसी से चूक हो गयी थी . गलती को सुधारना ही होगा।उसने धीरेसे अपनी ऊंगलिया बेटे के बालों में प्रवेश करादी थी . ऐसा वह गौरव के बचपन के दिनो में बहुत किया करती थी . इस क्रिया ने दोनो को सुकून दिया ' उसने कुछ रोने सुबकने की आवाज़ सुनी झटके से उसने गौरव का मुॅह ऊपर किया . वह आसुओ से तरबतर था . उसने साड़ी के पल्लू से ( रुमाल साफ न था, )प्यार से मुॅह को साफ किया . उसका भोला चेहरा देख उसे अपना छोटा बचपन वाला बेटा गौरव व वही वात्सल्य याद हो आया ।

दूसरे ही क्षण वह खड़ी थी . पीछे पीछे खड़े हुए गौरव ने पूछा - ' ." माँ ' मुझसे क्या गलती हो गयी ' मैं केवल आपको खुश देखना चाहता था ---"

"इसतरह से- - -" उसका चेहरा तमतमा उठा . तुमको क्यों लगा मै खुश नहीं हू? और . और, जो तुम करने जा रहे थे . उससे मैं खुश हो जाऊंगी . कुछ करने से पहले ' मुझसे पूछना भी जरूरी न समझा ."आधुनिकता के फेर में या महान बनने की लालसा में तुम यह भूल गए कि मेरे जीवन के सारे निर्णय लेने का हक़ मुझे और केवल मुझे है ' --"

"नहीं मां ये बात नही वो पार्क में आप रोज़ उनसे मिलती थी तो मुझे लगा - ( ' गौरव )"

मैं चीख पड़ी "तो तुमने कुछ भी सोच लिया . मुझसे पूछा तो होता ' तुम्हारे कारण मैं एक ख़ास दोस्त खो दूँगी, और बाहर आया समाज चार बाते बनाएगा सो अलग '"जींस पहनना ' आधुनिक जीवनशैली अपनाना या साड़ी व सूट पहनना ' घर सम्भालना या नौकरी करना .. शादी न करना और दूसरी शादी करके जीवनकी नयी शुरुआत करना - . निर्णय लेने का हक़ केवल और केवल उस स्त्री को है जिसका जीवन है न पुत्र को यह अधिकार है न पति को . - I

सोचो ' अगर मैंने ऐसे ही अचानक तुम्हारी किसी गर्लफ्रेंड से तुम्हारी शादी तय कर दी होती तो क्या तुम राज़ी हो जाते।

तुमने अभिषेक जी का भी अपमान किया . वे कई स्टोरीपोडियम का संचालन करते हैं और मेरी प्रतिभा को देखकर मुझे कहानी लेखन के लिए प्रोत्साहित .कर रहे थे . मैं अपने छूट चुके शौक की ओर आगे बढ़ रही थी खुश थी ... और तुम क्या सोच बैठे ?अगर ऐसा होता जैसा तुम सोच रहे तो तुम्हारी माँ हर तरह के निर्णय लेने में सक्षम व स्वतंत्र है । सीधी बात है कि

हक पुरुष की जायदाद नहीं . स्त्री. को उसके हक के साथ स्वीकारना सीखों . स्त्री भिखारी नहीं, न पुरुष दाता ' ।जाओ, बाहर मेहमानों को  सम्भालो । ध्यान रहे ' मेरे सम्मान को आंच न आने देना।


अभिनय में माहिर गौरव ने चेहरे पर भरपूर मुस्कराहट ओढ़ी और दरवाजा पूरा खुला छोड़ दिया . जैसा कि प्रत्याशित था कई आंखें एक साथ उसकी ओर मुड़ गयी ' इससे पहले कि वह कमरे के बाहर पांव रखता ' घर का लैंड लाइन फोन ( आज का नया फैशन ) खनखना उठा . उसने रिसीवर उठाया - अरे वाह . धन्यवाद . कहकर बात समाप्त करदी '' ।

एकबार फिर वह अतिथि कक्ष की ओर मुड़ा . माँ को साथ लेकर हॉल के बीचो बीच पहुंचा और घोषणा की - यहाँ आए समस्त मेहमानों से माफ़ी चाहता हूँ अभी यहां जो कुछ घटित हुआ वह एक सामाजिक रिसर्च का भाग था इसके द्वारा यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि आधुनिक जीवन शैली अपनाने वाले भारतीयों की सोच आधुनिक है या पुरानी व रुढ़िवादी ' । हाल के दाहिनी ओर मेज से एक एक प्रश्नावली अवश्य लेते जाए . और भरकर दो दिन में मुझे दे देवें।

एक खुशखबरी और है - माँ को उत्साह ' फाउण्डेशन ने - जोन चार की अध्यक्षिका नियुक्त किया है . जिस समय तालियों की आवाज से हाल गूँज रहा था ' एक तेज मुँहकी सीटी पीछे से अलग ही जोश बया कर रही थी . वह निमिषा थी माँ ' जीवन की दूसरी पारी मुबारक हो कहते हुए उसने . केक की प्लेट उसकी ओर बढ़ा दी . अंकिता ने उसके माथे पर प्यार अंकित किया और केक लेते हुए कहा - . इस घर में अपनी इच्छानुरूप जीवन जीने का पूरा हक तुम्हें होगा ." निमिषा बहुत धीरे से बोली .." हमें होगा मां. मॅने इनसे कहा था .. पहले माँ से बात करते हैं ." - कहानी अभी खत्म नही हुयी थी . सामने से शाहरुख खान ( हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध नायक ) की नकल करते अभिषेक ने हॉल में प्रवेश किया था ' सबने तालियों के साथ उनका स्वागत किया तो उसने मन में सोचा - "ये पब्लिक है ' ये सब जानती है ' बेटे गौरव को आंखों ही ऑखों में धन्यवाद दिया " । वापसी में, ( रिटर्न गिफ्ट ) उपहार लेकर जाते समय प्रश्नावली ले जाना किसी को याद न था ( या सब भूलने का बहाना कर रहे थे । ) कार्यक्रम के सही से समापन होने पर उसनेकुछ पल को आंखें बंद की - - - उसके घर को लोगों की बुरी नज़र से बचाने केलिए ईश्वर को धन्यवाद दिया - वैसे प्रार्थना करना मनुष्य का कर्तव्य है और प्रार्थना स्वीकार करना ईश्वर का कर्तव्य है या हक - या शायद दोनों ।

कर्तव्य और हक साथ - साथ चलने वाले पहिए हैं ।


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