पहला प्यार
पहला प्यार
बस का इंतज़ार कर रहा था और ऐसे बैठा था जैसे की आज तो बस आने वाली ही नहीं है पूरे बेंच पर अकेला हाथ फैलाये बैठा था मौसम थोड़ा सर्द था तो मुँह से भाप निकल रही थी और मैं भी उसके छल्ले बनाने की कोशिश कर रहा था। तभी एक लेडी आई उसके साथ उसके दो बच्चे थे और मुझे सही से बैठने को कहा ताकि वो भी वहां बैठ कर बस का इंतज़ार कर सके। मैंने एक बार तो सोचा की उसे कहीं और बैठने को बोल दूँ पर फिर बच्चों को देखकर मैं साइड हो गया और उन्हें बैठने को जगह दे दी। मैं तो आदत से मजबूर हूँ पूछे बिना रहा नहीं गया। जी मेरा नाम मोहित है।
मोहित : क्या ये आपके बच्चे है
( वो थोड़ा सा अपने आप को एडजस्ट करके बैठी और बोली। दीक्षा, दीक्षा नाम है मेरा )
दीक्षा : क्यों ? आपको ये बच्चे मेरे जैसे नहीं लगते।
मोहित : नहीं मैंने बस यूँही पूछ लिया बच्चे बहुत शैतान दिखाई देते है और आप तो बहुत शांत लग रही है।
दीक्षा : इतनी उम्र के बच्चे शैतान ही होते है जब मैं छोटी थी तब मैं भी इनके जैसी ही थी।
मोहित : मतलब शैतान थी आप भी।
( ये सवाल पूछ कर तो जैसे मोहित ने किसी सोइ हुई तान को छेड़ दिया था दीक्षा शुरू हो गई )
दीक्षा : अरे मैं तो इतनी शैतान की पूछो मत ये तो कुछ भी शैतानी नहीं करते। इनकी जगह मैं होती तो अभी तक तुम यहाँ से भाग खड़े होते।
( मोहित को कुछ भी बोलने का मौका नहीं मिल रहा था वो बस हाँ , हूँ हाँ ही कर रहा था। फिर मोहित ने सोचा अब तो सारी बात ख़तम होने पर ही कुछ पूछ पाउँगा। दीक्षा ने अपनी सारी बचपन की शैतानियां सुना डाली। )
दीक्षा : आप तो बिलकुल भी नहीं बोलते , मैंने तो आपको सब कह डाला।
मोहित : नहीं पर मैं इतना नहीं बोलता पर बोलता मैं भी बहुत हूँ।
( तभी सामने से एक बस आई और दोनों खड़े हो गए पर ये बस इनकी नहीं थी दोनों ने लम्बी सांस ली और फिर बैठ गए। बस स्टॉप खाली हो गया था, बच्चे भी खेल कूदकर थक गए थे और दूसरे बेंच पर जा लेटे। )
दीक्षा : आज तो हद हो गई बस आने का नाम ही नहीं ले रही।
मोहित : हाँ, सही कहा आपने अभी तक तो दो बार बस आ जाती थी।
( दोनों कहकर चुप हो गए और आती जाती बसों और गाड़ियों को देखने लगे फिर दीक्षा ने खामोशी तोड़ी और मोहित से पूछा। )
दीक्षा : तुमने अभी तक शादी नहीं की।
( मोहित ने नीचे नज़र किये ही जवाब दिया )
मोहित : क्यों शादी कर ली होगी तो क्या तुम मुझसे बात नहीं करोगी। तुमने तो कर ली ना।
( अब आप सोच रहे होंगे की ये क्या हुआ असल बात ये है की ये दोनों बहुत पहले से एक दूसरे को जानते है आज तीन साल बाद अचानक इस बस स्टॉप पर मिल गए। दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है पर कहा किसी ने नहीं, और ज़िंदगी की भाग दौड़ में खो गए, पर कहते है न दुनिया गोल है रास्ते तो रास्तों से ही मिलकर बने है तो आज इनके रास्ते मिल गए। )
दीक्षा : तो क्या तुम्हारे इंतज़ार में सारी उम्र बैठी रहती। तुम में तो कुछ कहने की हिम्मत थी नहीं ऊपर से, जब से शहर बदला है कोई खैर खबर भी ली तुमने।
मोहित : मुझे खबर मिली थी की तुम्हारी शादी होने वाली है तभी हिम्मत नहीं कर पाया।
दीक्षा : तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है मेरी शादी या तुम्हारी हिम्मत।
मोहित : अब इन सब बातों का कुछ नहीं हो सकता। तुम्हारी शादी हो गई है
दीक्षा : तुमने शादी नहीं की ?
( मोहित ने लम्बी सांस लेकर दीक्षा की तरफ नम आँखों से देखा और उसकी जुबां लड़खड़ा गई )
मोहित : नहईई, मुझे लगा तुम्हें खो दिया मैंने और मैं किसी और को अपना नहीं पाया। मेरा पहला और आखिरी प्यार तुम्ही हो दीक्षा।
( दीक्षा की आँखें भी नम हो गई दीक्षा ने मोहित का हाथ पकड़ कर बोला )
दीक्षा : इतनी हिम्मत पहले दिखा दी होती तो हमारी शादी हो गई होती बुद्धू
( दीक्षा हल्का सा मुस्कुराई और बोली )
दीक्षा : चलो कोई बात नहीं अब तो हिम्मत दिखा दी तुमने ये बच्चे मेरे नहीं है मेरी दोस्त के है घर ड्राप करना है इनको। चलोगे मेरे साथ इन्हे घर छोड़ने। वैसे भी हम दोनों कई बस मिस कर चुके है।
( मोहित की आँखों में ज़िन्दगी आ गई और दोनों ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे। तभी फिर वही नंबर की बस आई जो दो घंटे से दोनों छोड़ रहे थे दोनों ने एक, एक बच्चे को गोद में उठाया और बस में घर की और चले गए। )