उपेक्षा
उपेक्षा
कहते है रात कितनी ही अँधेरी हो एक दिन सवेरा ही जाता है। पर ऐसा हर एक की ज़िंदगी में हो ऐसा तो जरूरी नहीं। कई बार सवेरे की उम्मीद खो देनी पड़ती है। हाँ शायद ऐसा तब करना चाहिए जब आपके पास कोई रास्ता ही न हो।
एक तरफ स्वाति , अजय का इंतज़ार रही थी। और अजय है की हमेशा स्वाति को इग्नोर करता रहता था। स्वाति आज भी अजय का इंतज़ार कर रही थी। कभी स्वाति रेस्टुरेंट के बाहर आती तो कभी अंदर जाकर बैठ जाती। कभी फ़ोन निकाल कर देखती तो कभी दोनों हाथ अपने गालों पर रख लेती। आखिर परेशान होकर स्वाति ने अजय को फ़ोन कर ही लिया।
उधर अजय अपने दोस्त के साथ ऑफिस में ही चैस की बाजी पर लगा था। शायद लंच टाइम भी निकल चूका था। और अजय। ..
अजय : लो सुशील , आज तो तुम्हारा हाथी भी गया।
सुशिल : मेरा हाथी गाय तो कोई बात नहीं , पर तुम्हारी रानी को खतरा बढ़ गया है। ये लो तुम्हारा घोडा गया।
अजय : रानी को तो में बचा लूंगा ..... तुम अपना राजा बचाओं।
( तभी अजय का फ़ोन बजता है। अजय फ़ोन देखता है )
अजय : यार तू ठीक कह रहा था। लगता है आज रानी राजा को मार ही डालेगी।
सुशिल : तो हार मान ले।
अजय : अबे ये देख , स्वाति का फ़ोन आ रहा है। मैंने उसे कल बोला था की लंच साथ करंगे। वो एक घंटे से वंही इंतज़ार कर रही होगी ।
सुशिल : छोड़ भाई चैस वेस तू निकल वरना रानी ही राजा को मार देगी।
( अजय भागकर ऑफिस के बाहर जाता है और देखता है की गाड़ी के आगे पीछे गाड़ी लगी है। अब उसे इरादा बदल जाता है वो स्वाति को फ़ोन करता है। स्वाति फ़ोन उठाती है )
स्वाति : मुझे पता है आज फिर तुम कोई नया बहाना लेकर आये होंगे तुम्हे आज भी नहीं आना होगा।
अजय : बहाना , कैसा बहाना अरे यार मैं दो घंटे से पार्किंग मे खड़ा हूँ। पर ना जाने कौन मेरी गाड़ी के पीछे अपनी गाड़ी लगाकर चला गया। अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ।
स्वाति : ये रेस्टुरेंट इतना दूर नहीं की तुम्हे गाड़ी की जरूरत पड़े। पैदल भी आते तो पन्दरह मिनट में पहुंच जाते।
अजय : वो तो ठीक है पर मैंने सोचा अभी कोई आ जायेगा तो मैं निकल लूंगा। बस ये ही सोचते सोचते दो घंटे निकल गए।
स्वाति : अच्छा ये बताओ लास्ट टाइम क्या हुवा था।
अजय : अरे यार उस दिन तो मैं बाइक पे था , तुम्हे बताया था न उस दिन तो बाइक में पंचर हो गया था और दूर दूर तक कोई पंचर वाला नहीं मिला। मैंने तुम्हे बताया तो था।
स्वाति : तुम मुझे चाहते हो नहीं ?
अजय : बहुत चाहता हूँ तुम जानती हो।
स्वाति : ये तो जानती हूँ पर तुम बहुत आलसी किस्म के लड़के हो। ये बताओं लास्ट टाइम से पहले जब हम मिले थे कोई १५ से २० मिनट मिले होंगे। उससे पहले भी तुम नहीं आये थे तब क्या हुवा था।
अजय : लगता आज तुम मेरे दिमाग का टेस्ट ले रही हो। तब भी मैंने ही तुम्हे फ़ोन करके बताया था की सुशील की ,, अरे मेरे ऑफिस में जो मेरे साथ काम करता है उसकी बहन एक एक्सीडेंट में मर गई थी। और यार इन् सब बातों का क्या मतलब है अभी। मैं तुमसे कल मिलूंगा पक्का। जहा तुम कहोगी वंही।
स्वाति : तुम ना कभी नहीं सुधारोगे !
अजय : स्वाति इसमें सुधरने वाली क्या बात है। तुम गाड़ी क्यों नहीं खरीद लेती। मैं जब लेट हो जाऊं तुम ऑफिस आकर देख लेना। मैं तुमसे कभी झूठ नहीं बोलता। तुम्हे मेरे ऑफिस वाले ही बता देंगे।
स्वाति : तुम्हारी गाड़ी के पीछे जो गाड़ी लगी है वो मेरी ही है और जो गाड़ी चला रही थी वो सुशिल के बहन कंचन है। जो आज ही कोच्ची से अपनी जॉब छोड़ कर आई है। वो मेरी क्लास्स्मेट है। जो मुझे आज ही रेस्टुरेंट के बाहर मिली। वो ही मुझे तुम्हरे ऑफिस तक लाइ है। तुम्हे और कुछ कहना है।
अजय फ़ोन कान से हटा कर देखता है और सोचता है यार मैंने तो गाड़ी के अंदर भी नहीं देखा की कोई बैठा है या नहीं। तभी गाड़ी ज़ोर से बैक होती है अजय की तरफ रूकती है। स्वाति उसे ऊँगली दिखा कर की दुबारा फ़ोन मत करना। और गाड़ी धुल उड़ाती चली जाती है।