ज़रियाँ
ज़रियाँ
बनाकर ज़रियाँ मुझको
बनाकर ज़रियाँ मुझको
सीडी चढ़ रहे हो।
क्या क्या लिखा है कानून में
अनपढ़ होकर भी
मुझसे ज़्यदा पढ़ रहे हो।
तुम चालाकी का कीड़ा हो
फिर से रेंग रहे हो।
कर्त्ता से छुपाकर अपना दिखाकर
काले कौट की आड़ में
अपना घर भर रहे हो।
बनाकर ज़रियाँ मुझको
सीडी चढ़ रहे हो।
देखों मुझे मैं किसकी संतान हूँ
क्यों मुझसे अकड़ रहे हो।
ओकात तुम्हारी तुम्हे भी पता है
तुम सब मिलकर ना जाने क्यों
एक मेरे सच से लड़ रहे ह
ो।
बनाकर ज़रियाँ मुझको
सीडी चढ़ रहे हो।
नहीं जानते शिखंडी भी मरा था
और चाणकय का ज्ञान धरा का धरा था
मेरे पूर्वज अशोक साम्राट थे
मुर्ख हो तुम फिर समझता हूँ
तुम विश्व विजेता से लड़ रहे हो।
बनाकर ज़रियाँ मुझको
सीडी चढ़ रहे हो।
अब मौका देता हूँ तुम सबको
बिन लड़े ही मुझसे मित्रता निभा लो
बस कहना है इतना मुझको की
मेरे हक़ का मुझे दे दो
अपना हक़ तुम भी सम्भालों।
बनाओ मत मुझे ज़रियाँ
ना अपना मुझसे मलतब निकालों।