जिम्मेदारी का बोझ - भाग 1
जिम्मेदारी का बोझ - भाग 1
जिम्मेदारी का बोझ - भाग 1
गाँव — हरिपुर, जिला रोहतक
कच्चे रास्ते, आम के पेड़, और सुबह की धूल में बच्चों की हँसी — वहीं का था मनोहर लाल का घर।
तीन बेटे — रवि कुमार, सूरज कुमार, और हेमंत कुमार।
माँ श्यामा देवी, एक सीधी-सादी औरत जो रोज़ भगवान से बस यही प्रार्थना करती थी —
“हे राम, मेरे बच्चों को बाप जैसा मत बनाना…”
मनोहर लाल — शराब में डूबा पिता
मनोहर लाल पहले प्राइमरी स्कूल में मास्टर था।
पर वक्त और शराब दोनों ने उसे निगल लिया।
अब उसका हर दिन ‘देशी ठेका’ से शुरू और ‘गलियों के झगड़े’ में खत्म होता।
रात को जब वह लड़खड़ाता हुआ घर लौटता, तो तीनों बेटे अंधेरे में चुपचाप दीवार से सट जाते।
माँ रसोई में बैठी आँचल से आँसू पोंछती रहती।
रवि सबसे बड़ा था — समझदार, शांत और जिम्मेदार।
वह बारहवीं के बाद गाँव के कॉलेज में पढ़ रहा था और साथ में शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता ताकि घर का खर्चा चल सके।
सूरज थोड़ा शरारती, पर दिल का साफ।
हेमंत सबसे छोटा — मासूम, जो अब भी पिता के लिए उम्मीद रखता था कि “पापा एक दिन सुधर जाएँगे।”
एक रात की घटना
एक शाम मनोहर लाल शराब के नशे में सड़क पार करते हुए ट्रक के नीचे आ गया।
लोग दौड़े, शोर मचा, लेकिन जब तक रवि पहुँचा — पिता जा चुके थे।
श्यामा देवी बेहोश हो गईं, और रवि ने पहली बार अपने छोटे भाइयों को गले लगाकर कहा —
“अब से मैं ही तुम्हारा बाप हूँ।”
उस दिन से उसकी जवानी खत्म हो गई — और जिम्मेदारी की शुरुआत हुई।
जिम्मेदारी का सफर
रवि ने पढ़ाई बीच में छोड़ी और शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी पकड़ ली।
सुबह 7 बजे निकलता, रात को 9 बजे लौटता।
घर पर सूरज और हेमंत की पढ़ाई, माँ की दवाई, और राशन सब वही संभालता।
वह दोनों भाइयों को हमेशा कहता,
“पढ़ लो बेटा, ताकि तुम्हें मेरी तरह मजदूरी न करनी पड़े।”
सूरज ने बी.ए. कर लिया, हेमंत बारहवीं में था।
धीरे-धीरे घर में थोड़ी रौनक लौटने लगी थी।
माँ अब भी भगवान के आगे दीया जलाकर बैठती, और रवि की पतली मुस्कान देख कर सुकून पाती।
भाइयों का प्यार
तीनों भाई एक ही कमरे में सोते थे।
कभी सूरज मज़ाक करता —
“भइया, तुम्हारी तो शादी करा दो, अब तो उम्र निकल रही है!”
रवि हँसकर कहता,
“पहले तुम दोनों की पढ़ाई पूरी हो जाए, फिर देखेंगे।”
हेमंत बीच में बोलता,
“फिर तो मैं तुम्हारी बारात में नाचूँगा!”
ऐसे ही ठहाके और उम्मीदों में दिन बीतते रहे।
माँ की आखिरी इच्छा
श्यामा देवी धीरे-धीरे बीमार रहने लगीं।
डॉक्टर ने कहा — “दिल कमजोर है, बहुत चिंता करती हैं।”
एक दिन उन्होंने रवि को बुलाया और काँपते स्वर में कहा —
“बेटा, तेरे पिता ने तो बस दुख दिया… तू इन भाइयों को अपने बच्चों की तरह पाल रहा है।
अब मेरी आखिरी इच्छा है — तीनों की शादी देख लूँ।”
रवि ने सिर झुका लिया,
“आप बस ठीक हो जाओ माँ, मैं सब कर दूँगा।”
शादी की शुरुआत
सबसे पहले सूरज की शादी तय हुई।
लड़की थी सुनीता, पास के गाँव की।
साधारण, पर हँसमुख।
रवि ने अपनी तनख्वाह से जेवर, कपड़े, सब तैयार किए।
माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे, पर रवि के माथे पर चिंता की लकीरें।
शादी के दिन जब बारात रवि के घर से निकली, तो सारा गाँव देख रहा था —
“देखो, बड़े भाई ने क्या जिम्मेदारी निभाई है।”
सूरज की शादी के बाद बारी आई हेमंत की।
लड़की थी सुमन — शहर की, थोड़ी दिखावे वाली पर पढ़ी-लिखी।
रवि ने फिर कर्ज लेकर शादी की।
कर्ज बढ़ता गया, पर रवि की मुस्कान वही रही।
अपनी शादी
माँ की ज़िद पर
अंत में रवि की भी शादी हुई — संजना से।
सीधी, संस्कारी और समझदार।
वह खुद कहती थी,
“आपने अपने भाइयों के लिए जो किया, उसका बदला तो मैं सात जन्म में भी नहीं चुका सकती।”
धीरे-धीरे घर में बच्चों की किलकारियाँ गूँजने लगीं।
रवि का एक बेटा और एक बेटी,
सूरज के दो बेटे,
और हेमंत की नई नवेली गृहस्थी।
घर में बदलाव की आहट
शादी के कुछ साल बाद सब कुछ ठीक लग रहा था।
पर धीरे-धीरे बदलाव आने लगा।
अब घर की बातें साझा नहीं होतीं।
सूरज की पत्नी सुनीता कहती —
“हमारा हिस्सा अलग हो तो अच्छा रहेगा, बच्चों की परवरिश ठीक से होगी।”
हेमंत की पत्नी सुमन तो और साफ बोल देती —
“रवि भइया का तो कोई ठिकाना नहीं, हमें अपनी कमाई का हिसाब चाहिए।”
रवि चुप रहता।
हर बार यही कहता —
“अभी वक्त नहीं है अलगाव का, माँ की यादें अभी भी इस घर में हैं।”
पर अब किसी को भावनाएँ नहीं चाहिए थीं — सबको हिस्सा चाहिए था।
पहले भाग का अंत
एक दिन जब रवि फैक्ट्री से लौटा, तो आँगन में झगड़ा चल रहा था।
सूरज चिल्ला रहा था —
“हम भी अब बच्चे नहीं रहे, अपना हिस्सा लेकर रहेंगे।”
हेमंत भी बोला —
“भइया, आप तो बस दूसरों की भलाई सोचते रहे, पर हमारे बच्चों का क्या?”
रवि ने दीवार से टिककर चुपचाप सुनीता और सुमन को झगड़ते देखा।
संजना रो रही थी, बच्चे डरे हुए थे।
और रवि ने धीरे से कहा —
“ठीक है, जो देना है ले लो… पर याद रखना, मैंने तुम दोनों को बेटे से बढ़कर पाला था।”
घर का आँगन अब तीन हिस्सों में बँट चुका था —
माँ की ममता, पिता की विरासत, और रवि का दिल — सब टुकड़ों में।
आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़े भाग 2
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आपका अपना दोस्त तनहा शायर हूँ यश
