Tanha Shayar Hu Yash

Drama

5.0  

Tanha Shayar Hu Yash

Drama

एक परिवार

एक परिवार

6 mins
448


आज मैं आपको एक ऐसी कहानी बता रहा हूँ जिसमे की भाइयों के आपसी मतभेद का फायदा दुनियां कैसे उठाती है। ये कहानी ६ भाइयों की है ६ के ६ भाई बहुत समझदार एक दूसरे के साथ चलने वाले अच्छे इंसान थे। इनमे से सबसे बड़े भाई को इन्ही के एक रिश्तेदार ने पुत्र न होने के कारण अपनी सम्पति में बेटा का दर्ज़ा देकर मतब की गोद लेकर सारी सम्पति नाम कर दी। इनके पिता ने भी ख़ुशी ख़ुशी अपने पुत्र वेद को उनके परिवार सहित उनको सोप दिया। और ये भी कह दिया की अगर कल ये या इनके किसी पुत्र को मेरी सम्पति में हिस्से चाहिए हो तो वो भी अपनी सम्पति को मेरी सम्पति में मिलाकर एक माने और अपने हक़ का इस्तेमाल कर सकता है अन्यथा नहीं। सबसे बड़े पुत्र की कहानी शायद यही से इनसे अलग हो गई। 

एक बार इनके पिताजी की तबियत बहुत ख़राब को गई तब इनके पिताजी ने घर में कोई आपसी मनमुटाव न हो इसलिए सम्पति का बटवारा करने का फैसला लिया। अपनी अंतिम इच्छा को उन्होंने अपनी लिखित विल के तोर पर सरकारी मोहर लगा कर मतलब की विल को रजिस्टर्ड करा दिया। उसमे उन्होंने साफ़ शब्दों में अपने बड़े बेटे को गोद देने की बात लिखवाई क्योकि वो नहीं चाहते थे की कल को कोई विवाद उत्पन्न हो। और उन्हें अपनी सम्पति से कोई भी हिस्सा नहीं देने की बात लिखी।

उन्होंने सबसे बड़े बेटे से छोटे बेटे जगदीश के बारे में भी कहा की वो एक सरकारी नौकरी पर कार्यरत है और मेरे चार बेटे मुरारी , त्रिलोक , सात प्रकाश और विष्णु भगवान् के पास और कोई कमाने का साधन नहीं है इसलिए जो दूकान उन्होंने पगड़ी के तोर पर ली थी और घर को अपने बेटे मुरारी के नाम कर दिया। और उनके अपने छोटे पुत्र जो की उस वक़्त नाबालिक थे सत प्रकाश और विष्णु भगवान् को जिम्मेदारी के तोर पर उन्ही की देख रेख में रहने हो कह गए। शायद इसलिए भी की सबसे जयदा भरोसा वो उन्ही पर करते थे। उन्हें लगता था की वो कभी उनके साथ गलत नहीं करेंगे। और हुआ भी ऐसा ही जब एक बार उनके छोटे भाई त्रिलोक को लगा की सारी सम्पति उनके पिता मुरारी के नाम करके गए है तो किसी के भड़काने पर उन्होंने मिलकर मुरारी पर केस कर दिया। जिसमे की उन्होंने अपनी सम्पति को माँगा। पर असहाय मुरारी जो की अपनी भाई की इस बात से दुखी रहने लगे और उन्होंने दूकान में उनको एक सीट जिसपर वो काम कर सके जो उन्हें पहले भी दे राखी थी कोर्ट में उनको देना मंज़ूर किया। और उन्हें घर के नीचे के हिस्से में से भी एक छोटी सी दूकान खुलवा दी। अब त्रिलोक भी संतुस्ट हो गए और अपने काम काज में लग गए।

समय बीतता गया सब कुछ अच्छा प्रेम भाव से एक जॉइंट परिवार चलने लगा इसी बिच मुरारी ने एक डी डी ऐ की सम्पति में आवेदन दिया और उनका लक्की ड्रा में नाम निकल आया। और कुछ समय बाद उन्होंने अपनी ही सम्पति के साथ एक और सम्पति खरीदी जिसमे की अपने छोटे भाई सत प्रकश का नाम भी उस सम्पति में डलवा दिया वो चाहते थे की सब मिलकर रहे और वो ऐसे ही सम्पति बढ़ाते रहे। या शायद ये भी लगा उनको की सत प्रकाश भी तो कमाता है तो उसके हक़ भी बनता है। उस वक़्त तक विष्णु कुछ नहीं करता था उसकी पढाई ज़ारी थी। समय निकला और दोनों भाई सत प्रकाश और विष्णु भगवन भी शादी के काबिल हो गए। तब मुरारी ने सोच की अब इनकी भी शादी कर देनी चाहिए पर शादी के लिए उचित धन नहीं था जिसके चलते उन्होंने अपना डी डी ए का फ्लैट बेचने का निर्णय किया। इस बात का उनके साथियों और रिश्तेदारों को पता चला तो। बहुत से लोग मुरारी को समझाने आ गए की ये तुम्हारे बुरे दिनों में सम्पति काम आ सकती तुम इसे मत बेचो। और वैसे भी कल को कोई भी ये नहीं मानेगा की तुमने जो अपनी सारी ज़िंदगी अपने भाइयों को सवारने में लगा दी उसका कोई मोल है। वैसे भी तुमने इससे पहले जो सम्पति खरीदी उसमे भी सत प्रकश को हिस्सा दिया है। पर मुरारी को तो अपने भाइयों से जय्दा कुछ भी प्यारा नहीं था तो उसने वो अपना नसीब बेच दिया। और अपने पापा की सम्पति पर ही एक और मंज़िल का निर्माण किया। ताकि उनके भाइयों को शादी के बाद रहने में परेशानी न हो। 

कुछ समय बाद मुरारी ने बड़ी धूम धाम से दोनों की शादी कर दी इसके लिए उन्हें बहुत सा कर्ज़ भी उठाना पड़ा। पर वो जानते थे उनके दो भाई सत प्रकश और विष्णु आगे चलकर उनके दो हाथ बनगे उन्हें और मज़बूती देंगे। जो उनके साथ ही रहते थे  सब अच्छा चलने लगा इस परिवार को देखकर सब गांव के लोग हैरान थे की इतनी बड़ा परिवार एक जुड़ होकर कैसे रह रहा है। इसी बिच मुरारी के एक बहुत करीबी भाई दोस्त लल्लू की अकस्मात एक दुर्घटना में मौत हो गई। ये सदमा मुरारी को नशे की तरफ ले गया और वो शराब में खुद को डूबोते चले गए। लेकिन उन्होंने कभी उसके बच्चों को अपने बच्चो से कम नहीं समझा और उन्ही भी देख रख में लग गए। एक साल बाद ही लल्लू की पत्नी की भी मिर्त्यु हो गई। फिर ना उन्हें बच्चो का ख्याल था न ही खुद का। ये आदमी दूकान घर और इस परिवार में बटकर रह गया।

धीरे धीरे उनकी आलोचना भी होने लगी। जिस इंसान का समाज में नाम बहुत आदर से लिया जाता था जिसके पास लोग अपनी समस्या का समाधान पाने आते थे आज उसको लोग शराबी कहने लगे। पर कहते है की भाई जैसा दुःख कोई नहीं हो सकता। इससे पहले की वो इस गम से बहार आते छोटे भाइयों ने भी अलग होने का विचार बना लिया या ये कहो की मुरारी ने ही दोनों को अलग कर दिया। अलग होने से पहले इन पांच भाइयों के बRच एक आपसी समझौता हुआ इसी बिच इन पांच भाइयों ने ये निर्णय लिया की कौन कौन कहा कहा रहेगा। इसमें भी शायद मुरारी को सबसे जय्दा जल्दी थी और शायद विश्वास भी की जो लिखा जा रहा है सब उसपर अमल करेंगे। घर ६८ शाहपुर जाट के आगे वाली छोटी दूकान को ख़तम करके बड़ी दूकान बनाने का निर्णय लिया गया उसी के ऊपर वाली जगह जिसे गांव में दल्लान कहते थे त्रिलोक को रहने के लिए दी गई। नीचे दूकान के पीछे वाली जगह जगदीश को दी गई दल्लान के पीछे वाली जगह विष्णु को और विष्णु के ऊपर वाली जगह जिसका निर्माण मुरारी ने कराया था फ्लैट बेचकर सत प्रकश को दी गई। मुरारी ने ६८ शाहपुर जाट में से ४ फुट की छोटी सी जगह पाने लिए रखी। जो की निच्चे जगदीश के पाछे थी। ऊपर विष्णु के पीछे वाली जगह और ऊपर सत प्रकश के पीछे वाली जगह जो मुरारी द्वारा ही बनाई गई थी। मुरारी ने दूकान में भी एक सीट विष्णु को और एक सीट सत प्रकाश को एक सीट जो पहले ही त्रिलोक को दे दी गई थी को भी दे दी ताकि वो वहां काम करके या कारीगर रख कर अपना जीवन चला सके। और खुद के पास तीन सीट रखी जिसमे की एक सीट जिससे की दूकान का खर्च और अभी तक के क़र्ज़ को चुकाने के लिए रखी गई।

सबने अपना अपना सामान उठाकर अपनी जगह में जाने का फैसला लिया। सबसे पहले मुरारी ने अपना सामान उठाया और अपनी खरीदी जगह ६८/१ शाहपुर में जा बैठे। सत प्रकश को भी ६८/१ शाहपुर का ग्राउंड फ्लोर दिया गया। अब इंतज़ार होने लगा की कौन कौन कब अपनी जगह जाएंगे। पर कहते ना लालच इंसान को कब पकड़ ले खुद इंसान भी नहीं जानता।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama