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Meeta Joshi

Tragedy Thriller

4.9  

Meeta Joshi

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मोहब्बत

मोहब्बत

5 mins
310


प्यार जिसकी अभिव्यक्ति करना बहुत कठिन है।ये वो एहसास है जो शब्दों में बयां नहीं होता इसे समझने के लिए एक प्यार भरा दिल चाहिए।प्यार प्रेमी-प्रेमिका के बंधन से मुक्त एक ऐसी भावना है जिसमें दो दिल होते हैं फिर चाहे पति-पत्नी का प्यार हो या माँँ-बाप का बच्चों से।मैं आज जिस प्यार की अभिव्यक्ति कर रही हूँ उसमें प्यार की गहराई में डूब जाने का मन करता है।

कहते हैं प्यार के हजार रंग होते हैं।ये कौनसा रंग था जिसमें देव डूब गया मैं नहीं जानती और दिल मानने को तैयार भी नहीं कि क्या कोई किसी से इतना प्यार कर सकता है।मैंने तो प्यार का अर्थ हमेशा उम्र के हिसाब से समझा जीवन में अनगिनत लोग मिले रिश्तों के हिसाब से उनके प्यार में डूबती चली गई।

लेकिन क्या कोई अपने मांँ-बाप को इस कदर प्यार कर सकता है ये मेरी समझ के परे था।

बहुत छोटा था जब अवस्थी अंकल ने सभी के कहने पर उसे अपने घर रख लिया। उनके किसी करीबी रिश्तेदार का बेटा था।अक्सर उनके घर आया करता।

छः साल का था।साल भर बाद दूसरा भाई हो गया तो अवस्थी अंकल अपनी बीवी के तेरह सालों के खालीपन को दूर करने उसे अपने घर ले आए।

यह सोच कि थोड़े दिन ला कर देख लूंँगा अगर मन लगा तो गरीब माँ-बाप हैं यहीं रख पढ़ा लूँगा।बच्चे को जब यहांँ इतना महत्व मिलता सारी,जरूरतों की पूर्ति होती तो वो अक्सर यहांँ आने लगा।अवस्थी जी की धर्मपत्नी को भी उससे इतना लगाव हो गया था वो अपनी सारी ममता उसी पर लुटाने लगीं।अब अवस्थी जी ने उसका पूरा खर्चा उठाना शुरू कर दिया।मांँ-बाप भी खुश थे बच्चे की अच्छी परवरिश हो रही थी जो कि वो कभी न कर पाते।

सभी की राय थी कि बच्चा आपको इतना प्यार करता है।आप लोग भी उसे दिलो-जान से चाहते हैं,अक्सर वो यहीं रहता है।आप उसका खर्चा भी उठा रहे हैं तो उसे गोद ही क्यों नहीं ले लेते?बस फिर क्या था अवस्थी आंटी ने तो हठ ही ठान ली।कितना खुश हुए जिस दिन उसे गोद लिया।

ऐसा नहीं था कि उस दिन से उसके मांँ-बाप से उसका संपर्क खत्म हो गया था।वह वहांँ भी अक्सर जाता।इसकी उसे खुली छूट थी।बच्चे से कभी कोई बात छुपी न थी।

किस्मत वाला था जो आज के जमाने में भी उसे यशोदा और देवकी जैसी माँ मिलीं।जो इतनी समझाइश से उसे पाल रही थीं।

देव को अब अवस्थी जी के साथ ही अच्छा लगता।शायद वहाँ हमउम्र भाई था इसलिए उसे अपना अधिकार यहांँ ज्यादा लगता।अब धीरे-धीरे अपने मांँ-बाप से उसका मोह स्वतः ही कम होने लगा।वहाँ जाकर अपने अधिकार के लिए लड़ना शायद उसे खलने लगा था।जैसे-जैसे बड़ा होने लगा उसका रुझान पूरी तरह से अवस्थी जी पर था। समय बीतने लगा।

देव की जितनी तारीफ की जाए कम है।पढ़ाई में बहुत होनहार था।अवस्थी जी और उनकी धर्मपत्नी यानी अपने मांँ-बाप पर देव जान लुटाता था।

समय का पहिया चलता रहता है।दिन बीत रहे थे।एक दिन होनहार बच्चे ने मांँ-बाप का नाम रोशन किया।आज उसका आई.आई.टी. में एडमिशन हो गया है।वो चाहे जहांँ एडमिशन ले मांँ-बाप को साथ ही रखना चाहता है।

अवस्थी जी भी हर एक जने से यही कहते,"कोई बहुत पुण्य किए होंगे जो देव मिला।लगता है,उसको पुत्र रूप में पाकर तो हमने गंगा ही नहा ली।"

ऐसा नहीं था कि अपने घर परिवार से उसका संपर्क टूट चुका था।वह वहांँ भी जा अक्सर अपने माता-पिता और भाई से मिल आता। छोटे भाई को भी यहाँ आ बहुत अच्छा लगता क्योंकि यहाँ तमाम सुविधाएंँ जो थीं ।कभी-कभी साल में एक-दो बार,एक दो दिन के लिए उसका यहांँ आना हो जाता।

आज देव घर आया तो देखा मांँ-पापा किसी से बात कर रहे हैं।"अरे आलोक तुम यहांँ!..अचानक कैसे?"

आलोक ने भाई के पाँव छुए।पता चला किसी कंपटीशन की तैयारी करने आया है।कुछ दिन यहीं रहेगा। उसके आने के बाद कुछ दिन तो सब सही चलता रहा।उसने देखा मांँ-बाप उसके छोटे भाई को भी उतना ही प्यार करते हैं जितना कि देव को।ये देखकर धीरे-धीरे उसे भाई से चिढ़ होने लगी।उसकी हर पल यही कोशिश रहती कि या तो भाई चला जाए या किसी हॉस्टल में रह ले।

अब उसके व्यवहार में भी उसका रूखापन दिखाई देने लगा था।जो सभी घरवाले महसूस कर रहे थे।

एक दिन अवस्थी जी को गुस्सा आ गया उन्होंने उसे डांट कहा,"क्या तरीका है ये छोटा भाई है तुम्हारा।दोनों को बराबर अधिकार है।प्यार से मिल जुलकर रहो।तुम्हें ये संस्कार तो हमने नहीं कभी नहीं दिए थे। इस तरह के व्यवहार से तो तुमने हमें लज्जित कर दिया।"

पापा के मुंँह से ये वाक्य सुन उसका दिल टूट गया।अब वह घर में कम से कम बोलता।शांत रहने की कोशिश करता। धीरे-धीरे चेहरे की हँसीं भी जाती रही। कुछ समय ऐसा ही चलता रहा।सब बोलने की कोशिश करते पर वह मौन हो गया था। आज सुबह से कहीं दिखाई नहीं दिया। सब जगह पता किया।

रात को पड़ोसी छत पर घूम रहे थे।फोन कर कहा,"देव तो यहीं है छत पर!आप जल्दी ऊपर आईये।" छत पर जा देखा तो उसके मुंँह से झाग निकल रहा था और वह बेसुध पड़ा था। हॉस्पिटल लेकर भागे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उसके हाथ में एक पत्र अवस्थी जी के नाम था।


"पापा जानता हूंँ।मैं गलत हूंँ।मानता भी हूंँ पर आप और मांँ मेरे लिए क्या हो उसको मैं अभिव्यक्त नहीं कर सकता। मेरे चले जाने के बाद आलोक को अपना मान लेना। मैं आप लोगों का अपने हिस्से का प्यार बँटते नहीं देख पाया। चाहे गलती मेरी हो पर आप दोनों सिर्फ मेरे हो। आप इसे मेरी जलन भी समझ सकते हैं और बेइंतहा चाहत भी। मुझे माफ कर देना यह समझना कि आपका बेटा बुजदिल निकला। प्यार के हजार रंग होते हैं आप लोगों का कौन सा रंग मुझ पर चढ़ा मैं समझ नहीं पाया।"

देव चला गया।अपने तमाम प्यार के रंगों से अवस्थी जी की जिंदगी को रंगहीन कर।बेशक वो गलत था बुज़दिल था पर उसकी बेइंतहा मोहब्बत... उसके वजूद को कभी धूमिल नहीं होने देगी।

अवस्थी अंकल को हमेशा यही तकलीफ रही कि वो इतनी पीड़ा में था और हम समझ भी न पाए।एक बार कहता तो सही।क्यों अपने आप को इस कदर......

फिर आंटी सांत्वना दे कहतीं,"हम ही बदकिस्मत थे।संतान सुख नहीं लिखा था तब भी उस बच्चे को गोद ले,उसका जीवन बर्बाद कर दिया।"


उसकी जिंदगी से एक सबक जो मैंने सीखा वह यही था कि किसी को चाहो तो बेइंतहा चाहो इतना की किसी से दूर चले जाने के बाद भी आपके आसपास उसकी महक के हजारों रंग बिखरे हों।आज आंटी-अंकल के पास उसके साथ बिताए प्यार के हज़ारों लम्हे हैं जिन्हें वो याद करते हैं।जीवन बढ़ने का नाम है।


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