Meeta Joshi

Inspirational

4.7  

Meeta Joshi

Inspirational

मान

मान

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"क्या बात है पापा आज इतना तैयार होकर कहाँ चल दिए ?"

"बेटा आज शर्मा जी ने सब साथ वालों को पार्टी दी है। सारी मित्र मंडली जमा होगी। "

"क्या जी आप लोग भी !अभी तो उनकी बहू को आए कुछ समय ही हुआ है। क्या सोचेगी.... !"

"क्यों मिश्राइन जब शादी से दो दिन पहले बच्चे बैचलर पार्टी कर रहे थे तब तो तुमने ये नहीं कहा, ये फ़िज़ूल खर्ची क्यों ?ओह !तब तो तुम ये मान चुकी होंगी कि बेटे की स्वतंत्रता का आज अंतिम दिन है। "कह जोर जोर से हँसने लगे।

"चिंता मत करो भाग्यवान पार्टी घर में नहीं हैं। एक मित्र के फार्म-हाउस में है। सारे मित्र साथ खाना-पीना खाएंँगे,गप्पें मारेंगे। ...चलो चलता हूँ। वैसे ही देर हो गई है। "

मिश्रा जी के पहुँचने तक सारे मित्र मौजूद थे।

"आइए-आइए मिश्रा जी अब आप मान लीजिए कि आप बूढ़े हो गए हैं देखिये ना सबसे पहले पहुँच व्यवस्था देखने वाले सबसे बाद में पहुँचे हैं। "

"सबसे पहले तो शर्मा तुझे बेटे के विवाह की बहुत-बहुत बधाई और सुन !बुड्ढा होगा तू। तू ससुर बना है मैं तो अभी दो जवान बेटों का पिता ही हूँ। "

गप्पें जोरो-शोरों से चल रही थीं।

"शर्मा जी कैसी है बहू ?"

"खुद बढ़िया तो सामने वाले को आपका जैसा बनना ही पड़ता है। "

"मतलब ?"

"आधुनिक है पर हमने भी सोच लिया है रोकेंगे-टोकेंगे नहीं। अपनी ज़िंदगी में हर हाल में खुश रहेंगे। अब वो जमाना तो रहा नहीं कि कहें बहू लाल रंग पहनो,सर ढको,हमारी सेवा करना तुम्हारा धर्म है। आजकल शादी हुई और बेटा,बहू का। सब अपने हिसाब से जीते हैं जी। हमारा जमाना तो रहा नहीं जब आते ही अपनी धर्मपत्नी को परिवार की,माँ-बाप की पसंद-नापसंद समझाई थी। सर पर पल्ला रखने से बड़ों की इज्जत होती है ये कहा था। अब कहो तो जवाब मिलेगा इज्जत नजरों में होती है,पल्ला सिर पर रख चाहे बत्तमीजी कर लें। समय-समय का अंतर है जी आज बच्चों को समझाने से अच्छा है खुद समझ चुप हो लें। "

शर्मा जी मन की कह चुप हो गए। लगा रहा था ख्वाब कुछ और थे और शुरुआत कुछ और हुई है। मिश्रा जी मित्र को भावुक देख अपने विचार कैसे न रखते..,

"बात इस जमाने या उस जमाने की नहीं होती। बात होती है रीति-रिवाज,संस्कार,वातावरण,मान-सम्मान या फिर हमारी सोच की। सिर पर रखा पल्लू कभी संस्कार का परिचायक होता है तो कभी वही पल्लू पिछड़ापन दिखाता है यही नहीं वही पल्लू कभी भीड़ में बहू की पहचान अलग से करवाता हैं। सिर पर पल्ला रखना कितना गलत है या कितना सही,इस विषय को यहीं खतम कर दिया जाए तो बेहतर है क्योंकि दुनिया में अनगिनत लोग और उनकी अनगिनत राय होती है।। मैं इसके पक्ष में हूँ या नहीं... नहीं जानता क्योंकि आज के जमाने के बच्चे इसे दकियानूसी सोच का दर्जा देंगे लेकिन मेरे बच्चे जो अभी तो मेरे विचारों का सम्मान करते हैं देखें शादी के बाद.... सब वक्त पर छोड़ दिया है और वक्त के साथ चलना मैंने सीखा है। "अपने मन की कह मिश्रा जी मित्र- मंडली को छोड़ खड़े हो गए,"लेकिन हाँ इतना जानता हूँ कि अपने मन को मारकर मैं नहीं जी सकता। अपने विचार सामने वाले तक जरूर पहुँचाने चाहिए। "शर्मा जी हँसे," सब कहने की बात है मिश्रा जी,बेटे की शादी होने दो या तो उनके हिसाब से जीने लगोगे या अपनी बात रखोगे तो घर में अशांति। "

"देखते हैं शर्मा जी मन की कहूँ तो....चाहे मेरी दकियानूसी सोच मानो या ज़िद्द लेकिन मेरे विचार यही हैं कि बहू पर लाल-साड़ी और सिर पर रखा पल्लू मुझे व्यक्तिगत रूप से पसंद है।

शर्मा जी एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी। पदोन्नति कर जहाँ भी रहे अपने उसूलों के कारण जाने जाते हैं। बीवी बिल्कुल साधारण जैसा पति ने चाहा सर माथे रख उनके आदेश का पालन किया। पूरे परिवार की संस्कारी कुशल बहू। हमेशा सास-ससुर ने जैसा चाहा वैसा किया। अब बेटे की शादी की तैयारी में हैं। दोनों बेटों में मात्र दो साल का अंतर है। दोनों के लिए लड़की साथ भी मिल जाए तो एक ही मंडप में शादी कर दें। बेटे भी पिता की तरह आज के जमाने के होते हुए भी पारिवारिक हैं। मित्र-मंडली भी लम्बी चौड़ी है लेकिन सब सीमा में दोनों में कोई ऐब नहीं। रहन-सहन आधुनिक है। लेकिन सोच एक मध्यमवर्गीय परिवार का पिता जैसी चाहे बिल्कुल वैसी। कुल मिलाकर दोनों मिश्रा जी का स्वाभिमान है हर जगह उनकी होशियारी व संस्कारों की चर्चा है।

जब लड़की जोर-शोर से देखनी शुरू की तो छोटे ने कुछ न छुपाते हुए पिता के सामने अपनी बात रख दी," पापा अंकिता की मेरे साथ ही पोस्टिंग है। हम एक-दूसरे को पिछले साठ -साल से जानते हैं। मैं आपको उससे मिलवाना चाहता हूँ। वैसे आप,उससे व उसके पिताजी से कईं बार मिल चुके हैं। "

मिश्रा जी जानते थे ना-नुकुर का मतलब शुरुवात ही बिगाड़ लेना है। लड़की व उसके पिताजी को व्यक्तिगत रूप से भी जानते थे,"बेटा लड़की में कोई ऐब नही अच्छे घर की है। हांँ आधुनिक कुछ ज्यादा ही है लेकिन जब तुमने मानस बना ही लिया है तो मुझे कोई एतराज नहीं। याद रखना कच्ची मूर्ति को कलाकार जिस साँचे में ढालता है वो उसी का रूप ले लेती है। अपने घर के संस्कार सिखाना तुम्हारा फ़र्ज़ है। हम जल्दी ही भैया का रिश्ता तय कर मेहता जी से तुम्हारी शादी की बात करने जाएँगे। "आज बड़े बेटे के लिए लड़की देखने जाना है। अच्छी पढ़ी-लिखी,साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की। सारी बातें कर लड़की देख मिश्रा जी वापिस आने लगे।

"आप जवाब दे जाते तो। "

"घर पहुँच आपसी सलाह मशविरा कर जल्द ही आपको सूचित कर देंगे। आपकी बेटी एक योग्य लड़की है आपको उसके लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। "

लड़की एकता दो बहनों में बड़ी जैसे ही देखा वो लोग जा रहे है बहन को मिश्रा जी की नकल कर बताने लगी,"बेटा सोच-समझकर फैसला करना...। " वो मिश्रा जी की नकल कर जैसे ही मुड़ी, मिश्रा जी सामने खड़े थे सकपका गर्दन नीचे कर वहीं रुक गई।

मिश्रा जी ने हाथ जोड़कर कहा,"बेटा ये तुम्हारी ज़िन्दगी का फैसला है किसी भी दबाव में आकर निर्णय मत लेना। लड़कियों को अपनी व्यक्तिगत राय, समय रहते माता-पिता के सामने रखनी चाहिए और तुम समझदार हो ऐसा मुझे विश्वास है। "

बेटे से वो कितना प्रभावित हुई नहीं जानती पर भावी ससुर जी की बातों ने दिल जीत लिया उसे लगा वो बहुत सुलझे हुए और आधुनिक विचारों वाले हैं।

विवाह संपन्न हुआ। मुहूर्त साथ नहीं निकल पाया तो छोटे का विवाह एक महीने बाद का रखा गया।

बहू ने कुछ दिन में ही सास के साथ मिल घर संभल लिया। मिश्रा जी की पत्नी बार-बार बहू के सिर पर पल्ला रखती लेकिन बहू को सर पर पल्ला तनिक भी पसंद न था वो हर बार यही कहती,"माँ इज्जत नजरों में होती है। "कुछ दिन में बहू ने अपना पहनावा भी बदल लिया।

"सुनिए आज इसे नहीं रोकेंगे तो कल को नई आने वाली के,पर तो पहले ही लगे होंगे। वो इसे देख किसी हालत में हमारी नहीं मानने वाली। "आज तो बहू ने हद कर दी आज मिश्रा जी के चाचाजी जब आए तो दादा-ससुर के आगे वो बिना सर ढके आ गई। वो विवाह के समय मौजूद नहीं थे। बेटा ऑफिस था तो बहू उन्हें स्कूटी में लेकर आई थी।

मिश्राइन जी आज भी उनके सामने सिर पर पल्लू रखती हैं। आज उनके सब्र की अति थी। गुस्से में भड़कीं,"हमारे सामने का तो छोड़ो तुम तो दादाजी के सामने सूट में आ गईं और वो भी सिर पर बिना पल्ला रखे। हद कर दी तुमने !तुम्हें क्या दोष दूँ, जब बचपन से देखने वाला बेटा तुम्हें नहीं सिखा सका।

"माफ़ कीजिएगा माँ,कहा था इन्होंने,सिर पर पल्ला रखूँ लेकिन एक बात बताइये पापा ही कहते हैं ना 'जैसा देश वैसा भेष' दादाजी अपनी बहू के साथ स्कूटी में आए। बहू जो उम्र में मुझसे दुगुनी है कुर्ता और जीन्स में थी जब उन्हें अपनी बहू से कोई फर्क नहीं पड़ता तो हम उनके लिए संस्कारविहीन कैसे हो सकते हैं। उल्टा मुझे उनके सामने आप पुराने जमाने की लगीं। माँ जिनकी बहुएँ मेरे सास-ससुर के सामने सिर ढक,पाँव छूऐंगी यकीन मानिए उनके लिए आपको मुझे कहना भी नहीं पड़ेगा। यही मैंने जब इनको कहा तो इन्हें मेरी बात सही लगी और माँ, अभी छोटी को तो आने दो उसका तो रहन-सहन इतना आधुनिक है कि आप उसे किस-किस बात पर टोकेंगी। इससे तो अच्छा है आप समय के साथ बदल जाएंँ। "

"तुमसे तो बहस करना बेकार है। "कह माँ गुस्सा होकर चल दी।

मिश्रा जी दोनों की बातें सुन रहे थे वो बीच में बोले,"क्या गलत कह रही है बहू, सही तो कह रही है 'जैसा देश, वैसा भेष। 'मैं उसकी इस बात का आदर करता हूँ। "मिश्राइन जी मिश्रा जी के शब्द सुन असमंजस में थीं।

क्यों जी आप खुद ही तो टोकने को कहते हैं और उसके सामने.... !"

बहू हिलमिलकर घर के काम समेटती लेकिन सासू माँ ने उसे, उस दिन से कुछ भी कहना बन्द कर दिया था। हांँ मिश्रा जी को देख लगता था, कहीं वो भी निराश हैं लेकिन छोटे की शादी तक वो घर का वातावरण कलह पूर्ण नहीं बनाना चाहते थे।

मिश्रा जी कईं बार बहू की बात का समर्थन करते, वो समझ नहीं पाती थी पापा क्या चाहते हैं। शादी की तैयारी जोरों पर थी।

छोटे बेटे की शादी धूम-धाम से हुई। घर के सभी सदस्यों ने अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाई। शादी के सुअवसर पर जब बड़ी-बहू रानी को कपड़े-गहनों में लदा देखते तो मिश्रा जी हर बार उसकी तारीफ करते। आने वाले सब मेहमानों से अपनी बहू को शान से मिलवाते।

"बहू इतने भारी बेस, में सर पर पल्ला रख लेती तो कितना अच्छा लगता। पापा बार-बार यही कह रहे थे। "मिश्राइन बार बार उसे देख गुस्से में बोलतीं।

"मम्मी जी पापा ने मुझे एकबार भी नहीं कहा। उल्टा आज अपने हर मित्र से मिलवाया। आपने देखा वहाँ किसी ने सर नहीं ढका था और फिर जैसा देश वैसा भेष। "

बहू घर आ गई। दो-तीन दिन से मिश्रा जी की तबियत नासाज थी रंग में भंग न हो इसलिए किसी से जिक्र भी नहीं किया। धीरे-धीरे समय बीतने लगा और उन्हें कोई न कोई परेशानी रहने लगी। कमर और पांव का दर्द इतना बढ़ गया कि बिस्तर पर आ गए। जल्द ही ऑपेरशन की सलाह दी गई। दोनों बहुएँ घर में मिलजुल कर रहतीं लेकिन मिश्रा जी के मन को पूरा करने वाली एक भी न थी। दीवाली पास थी मिश्रा जी हॉस्पिटल से घर आए। आज कुछ अच्छा महसूस कर रहे थे हर त्योंहार को उत्साह से मनाने वाले मिश्रा जी अपनी इस हालत से परेशान थे। दीवाली से एक दिन पहले बहुओं को बुलाया,"बेटा जानता हूँ तुम्हारे और मेरे विचारों में समय का बहुत अंतर है। तुम दोनों मेरी बेटी जैसी हो। अपने मन की कहना चाहता हूँ, ये जो सीढि़यांँ देख रही हो ना जब पैसे कि तंगी के समय मैने ये सीढियाँ बनवाईं थीं तो तुम्हारी माँ कहती," क्या करोगे ऊपर कमरों का ?"तो मेरा एक ही जवाब होता ये कमरे मेरी बहुओं के लिए हैं। इन सीढ़ियों से लाल-साड़ी में लिपटी, सिर पर पल्ला रख जब मेरी बहुएँ उतरेंगी ना ! तो लोग देखते रह जाएंँगे। ""तब तक वक्त बदल चुका होगा जी। कौनसी बहू आपकी दकियानूसी सोच को मानेगी और क्यों ?"

"देखना मिश्राइन मेरी बहुएँ मेरे ख्वाब को पूरा करेंगी।

बच्चों आज तुम्हें एक सच बताता हूँ,तुम्हारी सास पुराने सोच वाली नहीं है वो तुम्हें खुद इसलिए टोकतीं है जिससे मैं कुछ ना कहूँ और तुम्हारे और मेंरे बीच में दूरी न आए। आज तुम दोनों के सामने मैं अपनी पसंद रख रहा हूँ मुझे दुनिया या दुनियावालों से मतलब नहीं ये मेरे ख्वाब हैं,मेरी इच्छा है जिसे मैं जानता हूँ तुम दोनों पूरा करोगी। बड़ी बहू कहेगी पापा आप तो हमेशा मेरा समर्थन करते थे "जैसा देश,वैसा भेष" तो ये सही है बेटा,तुम घर के बाहर क्या पहन रही हो, कहाँ जा रहे हो, या लोग आ गए तो तुम्हें सिर ढकना है नहीं... मुझे दूसरों को खुश नहीं करना तुम मेरी तरफ से पूरी तरफ से स्वतंत्र हो घर के बाहर तुम कैसे रहना चाहते हो वो तुम्हें तय करना है। मुझे दिखावे से मतलब नहीं,मैं चाहता हूँ मेरी बहुएँ मेरे सामने सिर ढकें। आगे तुम्हारी इच्छा है। मुझे दकियानूसी वाला समझो या कोई नाम दो, मेरी इच्छा मैने तुम्हारे आगे रख दी है। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं जैसा तुम्हारा मन गवाही दे वही करना। "

दोनों रात भर सोचती रहीं अगले दिन देखा तो छोटी- बहू लाल सूट में सिर ढके हुए थी,"भाभी मेरे पास एक भी लाल साड़ी नहीं आज दीवाली है मैं पापा की इच्छा का मान रख लाल साड़ी पहनना चाहती हूंँ। "

"पागल हो गई हो। ये कोई इच्छा है और ये कोई मान रखने का तरीका। लाल साड़ी, बहू के सिर पर पल्लू ,यदि एक बात मान ली तो न जाने कितनी फरमाइशें होंगी। "

"नहीं दी। आपने पापा की बात की गहराई नहीं समझी,जब हम उनसे बदलने की अपेक्षा रख सकते हैं तो वो हमसे क्यों नहीं और सबसे बड़ी बात कितने प्यार से और अपनेपन से उन्होंने अपनी पसंद हमारे सामने रखी,ना बेटों के माध्यम से ना मम्मी जी के। उन्हें इससे मतलब नहीं कि हम बाहर किस तरह से जाएँ। वो कहते हैं 'जैसा-देश,वैसा-भेष'। इतना साफ दिल किसी का कभी देखा है आपने ! मैंने तो सोच लिया है अब मैं जब भी पापा के सामने जाऊँगी सिर ढक कर। यदि उनके साथ के चंद लम्हे उन्हें खुशी दे सकें,तो उनका आशीर्वाद मेरे अपनों को भी लगेगा। "छोटी-बहू.. बड़ी की लाल-साड़ी ले पूजा के लिए तैयार होंने चली गई। शाम को पूजा में सब मौजूद थे सिवाय दोनों बहुओं के माँ ने दोनों को आवाज़ लगा,मिश्रा जी की तरफ आंँख से इशारा किया। बिस्तर में लेटे मिश्रा जी की खुशी का ठिकाना न था। दोनों बहुएँ साड़ी में सिर ढकी किसी देवी से कम नहीं लग रही थीं।

मिश्रा जी ने आने वाले सब मित्रों से अपनी बहुओं का परिचय करवाया और गर्व से बोले,"देखा शर्मा मैं न कहता था प्रेम की बोली सब समझते हैं। मैं अपना मन मार कर नहीं रह सकता। ये भी किसी पिता की बेटियाँ ही हैं तो इस पिता का मान क्यों न रखतीं। अपनी बात सामने वाले के सामने खुल कर रखो। "अब बहुओं का नियम बन गया ससुर के सामने सिर पर पल्लू रखने का। मिश्रा जी की तबियत दिन प्रति-दिन बिगड़ती ही गई। आज कुछ भावुकता में अपनी पत्नी से बोले, "चाहता तो तुम्हारा खयाल रखने को बहुओं को कहता लेकिन मुझे विश्वास है कि उन चारों से मन की बात कहोगी तो वो जरूर पूरी करेंगे। अपने बीच में दूरी मत आने देना। जो बच्चियाँ मेरी नाजायज़ मांँग को भी पूरा कर सकती हैं वो तुम्हें हमेशा खुश रखेंगी बस उन्हें बेटियाँ मान,अपने मन की कहना। पता चला मिश्रा जी को कैंसर की लास्ट स्टेज है बच्चों के विवाह के साल भर भी नहीं हुए थे मिश्रा जी चले गए। एक संतुष्ट मौत और वही संतुष्टि आज बच्चों के दिल में भी थी कि चंद समय के लिए ही सही, पापा की बात का विरोध न कर उन्होंने सही किया। सिर पर रखा पल्लू बहुत बड़ी चर्चा का विषय नहीं हैं। ये सच है कि इज्जत नजरों में होनी चाहिए लेकिन किसी बड़े का मान रख यदि हमने उनकी इच्छा की पूर्ति की है तो उसमें क्या गलत है। हांँ मांँग जायज़ और दुनिया के दिखावे से परे हो। आपसी समझ और सोच से कईं मसले आसानी से जल हो जाते हैं। क्यों बेवजह उनका बतंगड़ बना बात को बिगाड़ा जाए। किसी के जीवन का कोई भरोसा नहीं यदि हमने हर बात आधुनिकता के हिसाब से जोड़ ली तो परिस्थितियों को बदलना मुश्किल है।


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