Meeta Joshi

Inspirational Others Children

4.7  

Meeta Joshi

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खाँसी

खाँसी

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उहह...ऊँह.. ख..ख ...आss थू..


"पता नहीं क्या बीमारी है सारे दिन खाँसते रहते है। ये नहीं घर में बच्चे हैं, बच्चों से थोड़ी दूरी बनाए रखें। कहो तो इन्हें बुरा लगता हैं। इन बड़े-बूढ़ों ने तो दिमाग चाट रखा है।"


माधुरी... घर के पास वाली छत पर , बड़बड़ाती कामिनी की बात सुन रही थी।


"क्यों कामिनी, आज कपड़ों पर इतना गुस्सा ?आज सुबह-सुबह क्या पति देव से झड़प हो गई।"


"नहीं रे, अब क्या बताऊँ। इनके पापा को इतनी खाँसी है सारे दिन खों-खों करते रहते हैं। कफ भी बहुत निकलता है लेकिन ये नहीं कि बच्चों से थोड़ी दूरी बना कर चलें। डॉक्टर को दिखा समय पर इलाज करवा लें। अभी हम कहेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा।"

पापा, मास्टरजी नाम से प्रसिद्ध रहे हैं लोगों को ज्ञान देते थे लेकिन सच है सारा ज्ञान दूसरों के लिए होता है। हालत तो ये है कि मम्मी जी भी नहीं समझना चाहतीं। कहो तो कहती हैं बुढ़ापा है।"


"हाँ सही कहती हैं कामिनी। इस उम्र के लोगों को मैंने अक्सर खाँसते हुए देखा हैं ।कहते हैं बढ़ती उम्र में खाँसी अक्सर हो जाती है।"

"सही है। लेकिन सावधानी तो रखनी चाहिए ना। छोटे-छोटे बच्चे हैं जल्दी इंफेक्शन होता है। मेरे पापा को देखो, हर बात को इतनी गंभीरता से लेते हैं। कहते हैं कल को बच्चे परेशान हों उससे पहले समय पर इलाज करवा लें ।"


कामिनी कह चली गई। अब पिताजी की खाँसी, जी का जंजाल बन चुकी थी।


बहुत समय बाद मास्टरजी व उनकी धर्मपत्नी छत पर बैठे थे जैसे ही उन्हें खाँसी आती पत्नी पीठ व छाती मसल बार-बार हिदायत देती, "सुनो थोड़ा रोकने की कोशिश करो। हाथ आगे क्यों नहीं लगाते।"


मास्टरजी की खाँसी के अलावा कभी कोई आवाज़ नीचे से सुनाई नहीं देती थी। आज पत्नी पर भड़क कर बरसे, "तुम भी कैसी बातें करती हो! क्या मुझे महसूस नहीं होता होगा। क्या मैं अपनी तरफ से रोकने की कोशिश नहीं करता हूँ। बुढ़ापा है, एक दम से खाँसी नहीं आती तो दोनों हाथों से बिस्तर पर जोर देकर खाँसता हूँ। कमजोर शरीर है, हाथ लगाने से पहले निकल जाती है। तुम्हें इतना समझाया है, खाने का पाचन वात-पित्त-कफ तीन रूप में होता है अब बढ़ती उम्र में कफ ज्यादा बनता है और फिर इतने ऑपेरशन हुए हैं कि एलर्जी है ऊँह ह..आह...खों-खों...।"


"धीरे-धीरे बोलिये जी गुस्सा मत करिए ,सब समझती हूँ लेकिन कोशिश करती हूँ कि शांति बनी रहे।"


"देखो ,जिसको परेशानी है उसे किसी भी रूप में रहेगी। इतना नादान मैं भी नहीं, याद है तुम्हें, कैसे बाऊजी को भी बुढ़ापे में ऐसी ही खाँसी हो गई थी।तुमने उन्हें कष्ट न हो इसलिए उनके पास एक-डिब्बा, थैली लगाकर रख दिया था। मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन तुम कितने धैर्य से रोज उसमें लगी थैली बदल ,उनके आस-पास साफ रखती थीं। तुम्हारे इस व्यवहार को देख हम सब बदल गए थे। तुम्हीं कहती थीं ना बच्चे जो देखेंगे वही सीखेंगे... मेरे बच्चे ने भी तो वही सब देखा था। अपनी माँ के द्वारा की सेवा तो फिर...। "देखिये समय-समय का अंतर है। बात इतनी गहराई से लेने की जरूरत नहीं है। अरे! मैं आपको कहना भूल गई अजय बच्चों को ले कुछ दिन के लिए आ रहा है। देखिये जी, अब बच्चे बड़े हो गए हैं कुछ बुरा लगे तो तुनक कर मत बोलियेगा। वो तो बचपन से आपका स्वभाव जानते हैं। बहुओं को बुरा लगेगा।"


"सही कह रही हो अजय की माँ, सारा ठेका अब मेरा ही तो है ,अंजान को भी मैं ही समझूँ और अपने बच्चों को भी। पूरी कोशिश करूँगा मेरी वजह से किसी को कोई कष्ट न हो।"


"छोड़ो जी क्यों हर वक्त कुड़कुड़ाते रहते हो। आप ही के बच्चे हैं क्या बुरा मानना। आप मौका ही मत देना किसी को कुछ बोलने का।"


"समझ रहा हूँ तुम्हें भी और तुम्हारे इशारे भी। अजय की बिटिया छः सात महीने की हो गई उसे कुछ दिया भी नहीं ऐसा करो उसके लिए कुछ ले भी आना।"


आज अजय आने वाला था माँ ने उसकी पसंद का हलुवा बनाया। कामिनी जुबान की थोड़ी कड़वी थी, माता-पिता के समान्य क्रिया-कलाप में भी हर बात तुनक कर बोल देना उसकी आदत में आ चुका था।

आज मास्टरजी को सुबह से ही तेज खाँसी थी। कमरे से लगातार खाँसने की आवाज़ आ रही थी।


टिंग टोंग... टिंग टोंग...


"अह...उह.…आaasss...सुनो ऊँह...उठो देखो दरवाजे पर ....शायद बच्चे आ गए हैं।"


"जाती हूँ जी।" जैसे ही धर्मपत्नी जाने लगी मास्टरजी ने आवाज़ लगा कहा, "सुनो मुझे एकदम से बाहर मत बुलाना। आज खाँसी कुछ ज्यादा ही है।"


आँखों में आँसू भर जी कह चली गईं। जान रही थी पति के अंदर का दर्द।


"दादी..!" कह सोमिल दादी से लिपट गया।

"दादी आप कहानी सुनाओगी ना, अब मैं आप ही के साथ सोया करूँगा। आप मुझे पापा के बचपन की बातें भी बताना।" और भी न जाने क्या-क्या उसकी फरमाइशें खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। "दादा कहाँ है?"

"आएँगे बेटा, बैठ कह माँ ने थोड़ा वक्त बिता दिया।

बड़ी बहू ने बच्ची को माँ की गोद में रख दिया।


"बिल्कुल अपने पापा पर गई है ये भी बचपन में ऐसा ही था बिलकुल शांत और सजीला। नाक बिल्कुल अपने पापा जैसी है।"


थोड़ी देर में छोटा-बेटा, बहू सब साथ थे। हँसी के ठहाके लग रहे थे लेकिन बड़ी बहू का मन पापा की अनुपस्थिति को महसूस कर रहा था।


"माँ पापा ठीक हैं ना। उन्हें तो सबके साथ बैठना अच्छा लगता है तो फिर आज.....।"


"कोई चिंता की बात नहीं बेटा, कमरे में हैं। थोड़ी खाँसी तेज थी तो ....।"

बहू-बेटा, छोटी-बिटिया को ले पिताजी से मिल आए।

दिन हँसी-खुशी में बीत रहा था। रसोई में खड़ी जेठानी से छोटी बोली "वैसे तो मम्मी जी की कमर में दर्द रहता है लेकिन आज लाड़ला बेटा आ रहा था तो ..हलुवा कैसे न बनातीं ....हमें तो कभी बना कर नहीं खिलाया।"


मास्टर जी का सारा दिन आज खुशनुमा बीता। बच्ची को गोद में ले उसके साथ खेलने में आज खाँसी और उससे सम्बंधित परेशानी दोनों पर ही ध्यान न था।बड़ी बहू भी कभी अदरक कस कर, कभी दूध में हल्दी डालकर उन्हें देती रही। रात को सोते समय खाँसी का धसका उठा तो बेटा भाग कर आया और पिताजी को जिद्द कर भाप दिलवाई जिससे कफ से थोड़ी राहत मिली और वो पूरी रात चैन से सो पाए।

छोटी व्यंग्य में पीछे कैसे रहती ,"क्या बात ,कल आप लोग क्या आए पापा तो चैन की नींद सो गए।"

एक-एक कर दिन बीतने लगे। छोटी बीच-बीच में अपनी भड़ास निकाल लेती।" "दी पता नहीं आप कैसे सहन कर लेती हो हम तो पूरी रात आँखों में गुजारते हैं । पापा जी इतना खाँसते हैं कि क्या बताऊँ। बच्चों को इंफेक्शन न हो जाए, डर लगता है। आजकल तो फिर भी पता नहीं कैसे रात को सो रहे हैं।"


"कामिनी ये बुढ़ापे की खाँसी है इस उम्र में अक्सर लोगों के साथ ये परेशानी होती ही है। यदि हम ही छोटी सी बात को तूल देंगे तो अगलों को क्या कहेंगे।उन्होंने भी दुनिया देखी है, बच्चों से उनका सामना आज ही नहीं हुआ है ।"


कुछ दिन रह बड़े बेटा-बहू चले गए।

आज कामिनी कुछ परेशान सी लग रही थी।

"हलो... अब कैसे हैं पापा। अच्छा यहाँ आ रहे हो। हाँ ले आओ। नहीं मेरे घर में.....बहुत मुश्किल हो जाएगी।"


माँ ने चिंता देख पूछा कामिनी क्या बात है कुछ परेशानी।?"

पापा की तबीयत ठीक नहीं ।दिखाने यहाँ आ रहे हैं। मैंने कह दिया कि हमारे यहॉं जगह नहीं ।"


"ये तो बहुत गलत किया तुमने। अपना घर होते हुए वो बाहर इंतजाम करेंगे।"


"लेकिन मम्मी वो बीमार हैं पापा का कहना है कि तुम्हारे घर में बुजुर्ग हैं कहीं मेरे आने से खुदा न खास्ता कोई......।"


कामिनी के पिताजी को मास्टरजी ने जिद्द कर घर बुलवा लिया।

"कैसी बात करते हैं समधी जी आप लोग। बेटी का घर होते हुए बाहर रहेंगे। यदि हम साथ न होते तो कामिनी क्या आपको बाहर रहने देती।"


अब कामिनी के माता-पिता व सास-ससुर घंटों बातों में लगे रहते। रात-रात भर जब उन्हें परेशानी होती तो बेटी से पहले ससुर जी पहुँच, उन्हें अपने अनुभव सुना मौरल सपोर्ट देते। डॉ का कहना था हार्ट के ऑपेरशन के बाद अक्सर सूखी खाँसी छूट जाती है।चिंता की कोई बात नहीं। कामिनी ने देखा जबसे उसके माता-पिता आए हैं, ससुर जी उनकी सेवा में अपनी परेशानी भूल गए। चारों घटों गप्पें लगाते। कामिनी को बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

सास के पास जा बोली, "माँ मुझे माफ़ कर दो। कहते हैं ना जब तकलीफ खुद को हो तब समझ आती है। मैंने आप लोगों के साथ गलत व्यवहार किया तब भी मेरे पापा की तकलीफ में आप लोगों ने पूरा साथ दिया। मैं अपने किए पर शर्मिंदा हूँ माँ ।समझ सकती हूँ ये खाँसी महज बीमारी ही नहीं अपनों के साथ न होने का संकेत है। जहाँ सब साथ होते हैं वहाँ बिना तकलीफ चुटकियों में आकर चली भी जाती है।"


"खुद को गलत मत समझो कामिनी तुम माँ हो इसलिए बच्चों की चिंता होना स्वाभाविक है।'

पीछे खड़े मास्टरजी सब सुन हँस रहे थे बोले, "तुम्हें माफी मिलेगी पहले मेरी खाँसी से राहत के लिए एक कड़क चाय की प्याली हाज़िर करो।"


तीनों हँस पड़े और ये हँसी यक़ीनन तकलीफों के बादल छँटने के बाद कि हँसीं थी।

अपनों की तकलीफ प्यार व साथ से दूर कर खुशहाल जीवन जीयें।


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