इज़हार
इज़हार
दो साल से ऊपर हो गए थे रोज़ाना मिलना, बातें करना और घर चले जाना। कोई तीसरा आदमी भी नहीं कह सकता की इन दोनों में थोड़ी भी प्यार मोहब्बत है हर बात पर लड़ना झगड़ना और महीनों-महीनों रूठ जाना। इस बार दोनों की काफी अनबन हो गई इसलिए एक बार भी कॉलेज की छुटियों में नहीं मिले। कॉलेज की छुटियाँ खत्म हुई तो दोनों फिर मिले। एक दिन......
गौरव : सुरभि तुम आज भी आलू के परांठे लाई हो यार तुम इतनी मोटी होती जा रही हो और खाने पीने का बिलकुल भी ध्यान नहीं रखती।
सुरभि : मुझे खाने के मामले में टोका मत करों मुझे खाना खाना अच्छा लगता है।
गौरव : खाना खाना किसको अच्छा नहीं लगता पर हर चीज़ एक लिमिट होती है तुम्हारा वजन मुझसे भी ज्यादा हो गया है।
सुरभि : तुमने कब मुझे उठाया और मैंने कब कहा की तुम मेरा बोझ झेलो।
गौरव : ठीक है मरो यार।
सुरभि ओके ठीक है थोड़ा कण्ट्रोल कर के देख लूँगी गर हुआ तो।
ऐसे ही इनका दिन नोक झोक में निकल जाता था। कभी क्लास में पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया। ये एक ऐसे दोस्त थे जो कई बार घंटों कॉलेज के पार्क में बैठे रहते और बात नहीं करते, लड़कर नहीं बस यूँ ही चुपचाप बैठे रहते। वो भी एक दूसरे को कोई अटेंशन दिए बिना। कोई दूर से देखकर बता सकता था की ये अच्छे दोस्त भी नहीं होगें।
कॉलेज का आखिरी साल, कॉलेज का रिजल्ट आया दोनों पास हो गए फाइनल ईयर था दोनों ने एक दूसरे के नंबर पूछे-
गौरव : सुरभि तुम्हारे नंबर कैसे आये हैं।
सुरभि : जैसे तुम्हारे आये है वैसे ही हैं।
( दोनों हँसने लगे और एक दूसरे की मार्क शीट देख कर एक-दूसरे को चिढ़ाने लगे )
गौरव : बड़ी अपने आप को इंटेलीजेंट बताती थी देख क्या नंबर आये हैं।
सुरभि : तुम भी तो देखों कॉलेज के टॉपर बने हो वो भी सबसे नीचे से। हाँ हाँ हाँ..।
( बस ऐसे ही नोक झोंक होती रही और फिर दोनों अपने अपने घर चले गए। फिर ना किसी ने किसी को याद किया ना ही मिलने की तकलीफ उठाई। ऐसे ही कई साल बीत गए सुरभि अपने जीवन में उलझ गई और गौरव भी काम काज की तलाश करते करते एक छोटी सी कंपनी में सहायक ब्राँच मैनेजर बन गया। सुरभि भी एक छोटे मोटे कॉल सेंटर में टी.अल बन गई। कुछ साल बाद एक दिन गौरव ऑफिस से आया तो देखा की सुरभि की बहन वंदना, घर आई हुई है गौरव ने मुँह हाथ धोये और वंदना के पास जा बैठा तो पता लगा की सुरभि की शादी का कार्ड लेकर आई हुई है। )वंदना : गौरव अच्छा हुआ तुम मिल गए वो दीदी की शादी है और उन्होंने कहा है की बोलना की गौरव ज़रूर आये।
( गौरव हाथ में कार्ड लेते हुए )
गौरव : अरे वाह इतनी बड़ी हो गई वो की शादी करने चली है।
वंदना : हाँ गौरव २६ साल की हो गई है अब तो तुम्हे भी शादी कर लेनी चाहिए।
( शादी के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं गौरव ने, थोड़ा अटपटा लगा सवाल। )
गौरव : वो तो ठीक है मैंने एक बार कॉल किया था उसका नंबर नहीं मिला शायद बदल गया होगा। अच्छा हुआ तुम आज आ गई पहले उसका नंबर नॉट करा दो।
( वंदना गौरव को नंबर लिखवाती है। )
वंदना : तुम भी तो घर आ सकते थे तुम भी कभी नहीं आये।
गौरव : बस ऐसे ही कॉलेज के बाद जॉब से कभी टाइम ही नहीं मिला और फिर जब नंबर नहीं मिला तो लगा की।
वन्दना : क्या लगा हम घर ज़मीं बेचकर कहीं और चले गए।गौरव : फ़ोन तो कभी सुरभि का भी नहीं आया। चलों कोई नहीं जाने दो सब बाते अब मिल लेंगे। वक़्त का पता ही नहीं चला कब ५ साल निकल गए।
( फिर गौरव ने वन्दना को ड्राप किया और घर आ गया। और अपने बेड पर आकर लेटे गया कब आँख लगी पता ही नहीं चला। सुबह आँख खुली तो गौरव की माँ दरवाज़ा पर खड़ी बोल रही थी )
माँ : गौरव आज ऑफिस देर से जाना है क्या ? आज अभी तक सो रहे हो।
( गौरव ने दरवाज़े की खड़की खोलो और बाहर की तरफ देखा हल्की बारिश हो रही थी बाहर देखते हुए )
गौरव : माँ ये कौन से वक़्त की बारिश है बारिश का मौसम तो चला गया।
माँ : बेटा, ये बेमौसम बरसात है चल उठ जा ऑफिस नहीं जाना क्या ?
( गौरव बाथरूम की तरफ गया और शीशे की तरफ देख कर खुद से ही बोला। )
गौरव : माँ लगता है ये बेमौसम बरसात बहुत कुछ धो गई है।
( आज गौरव सुरभि के सपनो में खोया था सुबह उठा तो उसकी याद थी उसकी बाते मुलाकाते सब याद आ रही थी। गौरव ये भी सोच रहा था की ५ साल बीत गए ऐसा कभी महसूस नहीं हुवा जैसा आज हो रहा है टेबल पर रखा कार्ड गौरव ने उठा कर फिर देखा और वापस टेबल पर रखा दिया। )
गौरव : बस २५ दिन है।
( फ़ोन उठाया सोचा कॉल करूँ फिर वापस रख दिया। और फ़ोन कुछ इस तरह रखा जैसे की सब हार गया था गौरव के चेहरे पर थकान, माथे पर पेशानी, और कुर्सी का सहारा लेकर कुर्सी पर बैठ गया। )( ये २५ दिन गौरव के कैसे गुज़रे ये बयां कर पाना भी मुश्किल है। गौरव की हालत इन दिनों में शक्ल-अक्ल और सेहत दिनों ही ख़राब होने लगी थी। ऐसे ही दिन रात २५ दिन निकल गए और शादी की के दिन गौरव तैयार होकर सुरभि की शादी में जा पहुँचा। सभी लोग सुरभि को गिफ्ट और शादी की बधाई दे रहे थे इसी बीच गौरव भी स्टेज पर जा पहुँचा और सुरभि के हाथ में फूलों का गुलदस्ता देते हुए बोला। )गौरव : सुरभि तुम्हें इस की हार्दिक शुभकामनायें नई ज़िंदगी और नए साथी की बहुत बहुत बधाई।( सुरभि गौरव को देखकर इतनी खुश हुई की उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। सुरभि ने फूलों को एक तरफ रखकर, गौरव के गले लग गई और बोली। )
सुरभि : तुम नहीं जानते मुझे तुम्हारा कितना इंतज़ार था मैं हमेशा सोचती रही तुमसे बात करूँ मिलने आऊँ।
( इतना सुनते ही गौरव ने सुरभि को झटक दिया और तिलमिला उठा। )
गौरव : ये क्या बकवास कर रही हो तुम्हे मेरी कभी याद नहीं आई और ना आज के बाद आएगी।
( सुरभि एक टक देखती रह गई सुरभि का पति भी एक दम आश्चर्य से देखता रह गया। )
सुरभि : गौरव तुम्हे क्या हुआ तुम ऐसे व्यवहार क्यों कर रहे हो। हम तो बहुत अच्छे दोस्त है।
( गौरव का गुस्सा सतावे आसमान पर जा पहुँचा। )
गौरव : ये अपनी बकवास बंद करो और आज के बाद कोई बात नहीं होगी तुम खुश रहों और बस। अब कोई बात नहीं।
सुरभि : देखों गौरव हम आराम से बैठ कर बात करेंगे मैं जानती तुम नाराज़ हो। पर तुमने भी कभी बात नहीं की तो और हम ऐसे तो नहीं थे ये कैसे बात कर रहे हो तुम।
( गौरव ने कुछ नहीं सुना और स्टेज से उतर कर चला गया। सुरभि गौरव को आवाज़ लगती रही पर गौरव नहीं रुका। सुरभि गौरव को देखती रह गई। सुरभि के हस्बैंड ने कहा की हम फंक्शन के बाद दोनों चलेंगे मना लेंगे पर सुरभि की समझ में कुछ नहीं आ रहा था क्योंकि ये व्यवहार सुरभि की आँखों में नमी ले आया था और अब सुरभि उसी कंडीशन में जा चुकी थी जिस कंडीशन में गौरव था। )