अनुशासन
अनुशासन
बचपन में बंटी बहुत शरारती था। वह न तो किसी का कहना मानता था और न ही किसी से डरता था। उसके स्कूल के सारे अध्यापक, अध्यापिकाएं व सारे घरवाले उसकी शरारतों के कारण उससे परेशान थे। सभी उसे बड़ा समझाते थे पर उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती थी।
एक दिन बंटी अपने माता-पिता के साथ ट्रेन में जा रहा था। मैं भी उसी ट्रेन में जा रहा था। बंटी के पिता शर्मा जी मेरे अच्छे मित्र है। ट्रेन में एक बौद्ध भिक्षु भी बैठा था। वहाँ भी बंटी बाज नहीं आया और बार-बार उसके पास जाकर उसके गंजे सिर पर हाथ फेरने लगता। सबके साथ मेरी भी हँसी छूट रही थी। लेकिन शर्मा जी का सिर शर्म से झुका जा रहा था।
बौद्ध भिक्षु ने उसे कई बार समझाया परन्तु वह नहीं माना। उसने आसपास के लोगों से पूछा यह किसका बच्चा है। शर्मा ने जी कहा माफ कीजिए महाराज यह मेरा बेटा है। बहुत शरारती है। किसी का भी कहना नहीं मानता। आप इसके एक-दो लगा दीजिए तभी मानेगा।
बौद्ध भिक्षु बोला तुम्हारा बच्चा बीमार है। मारने पीटने से कुछ नहीं होगा। शर्मा जी ने कहा महाराज जी यह बीमार नहीं है इसकी माँ ने इसे बहुत बिगाड़ रखा है। आप ही कुछ उपाय बताइए इसका क्या करें। सभी इससे बहुत परेशान हैं।
बौद्ध भिक्षु बोला इसका दाखिला हमारे स्कूल में करवा दो। उसके बाद तुम्हें कुछ भी करने की जरुरत नहीं। तुम्हारी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएगी। बौद्ध भिक्षु ने शर्मा जी को अपने स्कूल का पता बतलाया और अगले स्टेशन पर उतर गया।
इसके बाद हम सब भी अगले स्टेशन पर उतर गए।
शर्मा जी के घर पर सलाह बनी कि इस बार बंटी का दाखिला बौद्ध भिक्षु के स्कूल में ही करवाएंगे। मैं और शर्मा जी बंटी को बौद्ध भिक्षु के स्कूल में छोड़ने गए। बौद्ध भिक्षु ने कहा यह बहुत मुश्किल था परन्तु आप ने बहुत अच्छा निर्णय लिया है। अब आप एक साल बाद ही आना। बड़े भारी मन से और आँखों में नमी लिए शर्मा जी ने मुझसे चलने के लिए इशारा किया। उस दिन घर से निकलते समय बंटी की मम्मी बहुत रोई थी।
एक साल के बाद मैं और शर्मा जी बंटी को वापस लाने के लिए गए। स्कूल के मेन गेट पर पहुँचने पर एक छोटे गंजे बौद्ध भिक्षु ने झुककर हमें प्रणाम किया। उसके बाद वह हमें अंदर ले गया और एक ऑफिस में जाने का इशारा किया। अंदर बौद्ध भिक्षु बैठा था। हमने उसे प्रणाम करके उसका हाल-चाल पछा। उसने आदरपूर्वक हमें ऑफिस में बैठाया। इतने में ही एक बौद्ध भिक्षु बालक आया और हमें पानी देकर चला गया। शर्मा जी ने बौद्ध भिक्षु से बंटी के बारे में पूछा तो उसने कहा बंटी बिल्कुल ठीक है। उससे भी आपको मिलवाऊँगा। आइए पहले आपको हमारा स्कूल दिखाता हूँ। बाहर गए तो देखा एक बौद्ध भिक्षु बालक अन्य भिक्षुओं को बोर्ड पर पढ़ा रहा था।
छोटे-छोटे बौद्ध भिक्षु बहुत प्यारे लग रहे थे। कुछ बौद्ध भिक्षु बालक तो बहुत ही छोटे थे। परन्तु कोई भी बालक किसी प्रकार की शरारत व शोर नहीं कर रहा था। अनुशासित तरीके से एक के बाद एक सारा काम हो रहा था। एकदम शांति से सभी अपना काम कर रहे थे।
बौद्ध भिक्षु ने हमें एक पेड़ के नीचे कुर्सियों पर बैठाया। इतने में एक बौद्ध भिक्षु बालक आकर चाय व नाश्ता दे गया और सामने मैदान में जाकर अन्य बौद्ध भिक्षु बालकों को युद्ध अभ्यास करवाने लगा।
चाय पीते हुए मैंने कहा महाराज यह तो एकदम अद्भुत है। इतना अनुशासन तो मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। ये सब छोटे-छोटे बौद्ध भिक्षु बहुत प्यारे हैं और काफी मेहनती भी हैं। आपके स्कूल में आकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। चारों ओर बिल्कुल शांति है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण तो स्वर्ग से भी सुंदर है।
शर्मा जी बोले महाराज जी हमें आज ही वापस जाना है इसलिए कृप्या करके बंटी को बुला दें।
बौद्ध भिक्षु ने बड़ी हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कमाल है आप का बच्चा तो आपसे काफी बार मिल चुका है। शर्मा जी ने कहा नहीं नहीं महाराज, हम तो अभी तक उससे मिले ही नहीं।
बौद्ध भिक्षु बोला तुम्हारे आने पर जिस बौद्ध भिक्षु बालक ने तुम्हें झुककर प्रणाम किया व अंदर तक लेकर आया, जो बालक तुम्हें ऑफिस में पानी पिला कर गया, जो बालक अन्य बालकों को बोर्ड पर पढ़ा रहा था, जो बालक आपके लिए चाय नाश्ता देकर गया और उसके बाद सभी बालकों को युद्ध विद्या सिखा रहा है वही तो तुम्हारा बेटा बंटी है।
यह सुनकर मैं और शर्मा जी एकदम से अपनी कुर्सियों से खड़े हो गए। हमनें हैरानी से कहा महाराज हमें तो सभी बौद्ध भिक्षु बालक एक जैसे लग रहे थे। शर्मा जी बोले मुझे लगा कि हर बार अलग-अलग बालक हमारे सेवा के लिए आ रहे थे।
और तो और बंटी ने भी मुझे पापा कहकर नहीं बुलाया।
बौद्ध भिक्षु बोला यही तो आत्मसंयम है। मैं यहाँ बच्चों को आत्मसंयम, अनुशासन में रहना, मानसिक व शारिरिक रूप से मजबूत बनना, अतिथि सत्कार व जीवन के कई महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य भी सिखाता हूँ।
शर्मा जी ने कहा महाराज जी ये तो अद्भुत है। जो बालक किसी की भी नहीं सुनता था और हर समय शरारतें ही करता रहता था, उस बालक में इतना बड़ा बदलाव। ये सब आप ही कर सकते थे। आप ने मेरे बच्चे के जीवन को व्यर्थ होने से बचा लिया। आप सचमुच भगवान का रूप हैं।
बौद्ध भिक्षु बोला मैं कोई भगवान नहीं हूँ। मैं भी तुम्हारी तरह ही एक साधारण इंसान हूँ। मैं महातपस्वी भगवान बुद्ध की दी हुई गुणकारी शिक्षा को मानव सेवा के लिए प्रयोग करने को वचनबद्ध हूँ और उनके आशीर्वाद से यह सब कर रहा हूँ।
बौद्ध भिक्षु ने कहा यह सब चीजें बहुत मुश्किल हैं। परन्तु निरन्तर अभ्यास करने से अपनी इंद्रियों को नियन्त्रित कर मन की चंचलता को काबू किया जा सकता है। जैसा तुमनें आज देखा बंटी में भी बहुत बदलाव आ गया है। वह बहुत ही आत्मसंयमी बालक बन गया हैं। वह पढ़ाई, खेल-कूद, योगाभ्यास व अन्य गतिविधियों में भी अव्वल है। अब वह अपनी सारी उर्जा का सही दिशा में प्रयोग करता है।
तुमनें जिस उद्देश्य से बंटी को यहाँ भेजा था वह पूरी तरह सफल हो गया है। अब भविष्य में कभी भी तुम्हें बंटी के व्यवहारिक ज्ञान की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी।
उसके बाद बौद्ध भिक्षु ने बंटी को बुलाकर कहा तुम्हारी प्रारंभिक शिक्षा पूरी हो गई है। अब तुम सफलतापूर्वक अपने वास्तविक जीवन में प्रवेश करने लायक हो चुके हो। तुम्हारे पिता जी तुम्हें लेने आए हैं। तुम जा सकते हो।
बंटी ने शर्मा जी व मेरे पाँव छुए। बंटी का सारा सामान पहले से ही तैयार था। बौद्ध भिक्षु का धन्यवाद कर हम सभी वहाँ से निकल पड़े।