Dr. Vikas Kumar Sharma

Horror

4.8  

Dr. Vikas Kumar Sharma

Horror

भूत बंगला

भूत बंगला

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रुटीन लाइफ से जैसे ही कुछ समय मिला दोस्तों के साथ कुफरी जाने का प्लान बना लिया, क्योंकि यही वो मौका था, जिसके जरिए बर्फ की वादियों में लाइफ प्राब्लम और स्ट्रैस को भूल कर नए एहसासों को महसूस किया जा सकता था। संकरे रास्तों से गुजरते हुए हम आगे बढ़ रहे थे कि तभी ड्राइवर ने बस रोक कर कहा, साहब कुफरी आ गया है। इससे आगे बस नहीं जाएगी, केवल घोड़े और खच्चर ही आगे जा सकते है। बस से उतर कर देखा तो सच में वहाँ कुछ भी नहीं था। यहाँ तक की सड़क भी नहीं। सारा रास्ता कंकड़, मिट्टी और पत्थर से भरा हुआ नजर आ रहा था। एक बार तो लगा कि जिन वादियों के लिए यहाँ पहुँचे है वैसा कुछ मिलेगा भी या नहीं। मगर जैसे ही हम कुफरी पहुँचे तो दिख गया कि बिना सड़क ही यह रास्ता तो सीधा स्वर्ग जैसी जगह का था। नजारा देख कर सारी थकान दूर हो गई। साथ ही यूँ लगा जैसे शरीर में नई उर्जा का संचार हो रहा था। वहाँ एक नई बात भी सुनने को मिली। वह थी कि और आगे मत जाना। आगे भूत बंगला है।


यह सुन कर तो मेरी आगे जाने की इच्छा और बढ़ गई। मैंने सबसे कहा भूत-वूत कुछ नहीं होते। डरने की जरूरत नहीं है। आओ सब चलते है। सबने साथ आने से मना कर दिया। उन्होंने मुझे भी आगे जाने से रोका। लेकिन मैंने भी किसी की नहीं सुनी और अकेले ही भूत बंगले के रास्ते पर चल पड़ा।


रास्ता एकदम सुनसान था। थोड़ी दूर चलने पर मैंने देखा कि एक बैंच पर कोई बैठा हुआ था। पास पहुँचने पर पता चला कि लगभग मेरी ही उम्र की एक सुंदर लड़की बैंच पर बैठी। मैंने उससे भूत बंगला जाने का रास्ता पूछा। उस लड़की ने कहा कि मैं भी वहीं जा रही हूँ। थोड़ा थक गई थी इसलिए आराम करने को बैठ गई हूँ। तुम भी थक गए होंगे। मेरे साथ तुम भी कुछ देर आराम कर लो। उसके बाद दोनों साथ चलेंगे। वह लड़की बहुत ही सुंदर थी और साथ ही बहुत ही मीठा भी बोल रही थी। लग रहा था जैसे वह किसी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ी हो। काफी अमीर घराने की भी लग रही थी। मैं बस उसको देखता और सुनता रहा। उसने दोबारा से बैठने को कहा। जी बैठता हूँ कह कर मैं भी उस बैंच पर बैठ गया। बैंच थोड़ा छोटा था। सो अपनी एक सीट पर ही बैठ गया। उसने कहा शर्माओ नहीं। थोड़ा पास होकर ठीक से बैठ जाओ।


मुझे उसके साथ थोड़ा सट कर बैठने में अजीब लग रहा था। परन्तु थोड़े समय के बाद सहज महसूस करने लगा। मैंने उससे उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम रूहानी बताया। फिर मैंने उससे पूछा क्या आप अकेले ही घूमने आई है? उसने मुस्कुरा कर मुझसे कहा कि तुम मुझे रुही बुला सकते हो। जी और आप में उलझने की कोई जरूरत नहीं है।

उसकी सुंदरता को देख कर मैं पहले ही उसका दीवाना हो गया था और ऊपर से उसकी मीठी-मीठी बातें। उसने जवाब हाँ में दिया और कहा, दीपक घूमने का मजा तो अकेले में ही है। तभी अचानक मैंने उससे कहा, तुम्हें मेरा नाम कैसे पता लगा? मैंने तो अभी तक तुम्हें अपना नाम बताया ही नहीं। वो बोली, अभी तुमने ही तो बताया था। मैंने कहा, मैं भी कितना भुलक्कड़ हूँ। आजकल बातें भूलने लग गया हूँ। शायद उसकी मीठी-मीठी बातों में इस कदर डूब गया था कि नाम बता कर भी भूल गया था। मैंने उससे सॉरी कहा। उसने मुस्कुरा कर कहा, इट्स ओके डियर।

थोड़ी देर आराम करने के बाद हम दोनों भूत बंगले की ओर चलने लगे। चलते-चलते वह बेचारी नाजुक-सी लड़की अचानक लड़खड़ा गई। उसकी आवाज सुन कर मैं उसे संभालने के लिए आगे बढ़ा। उसका पाँव मुड़ गया था। मैंने उसे बड़े प्यार से उठाया। उसने अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया। हम दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। उसके स्पर्श से मेरे मन में प्रसन्नता की तरंगें उठने लगी। कुछ-कुछ सोच कर मन में ख्याली पुलाव बनाने लगा।


रास्ते में दोनों ने खूब बातें की। हम दोनों के ख्यालात एक दूसरे से काफी मिलते थे। वो बिल्कुल वैसी ही लड़की थी जैसा मैंने सोचा था। एकदम मेरे सपनों की रानी जैसी। वो भी मुझे पसंद करने लगी थी।

अचानक से वह पूछ बैठी, दीपक क्या तुम्हारी शादी हो गयी है? मैंने कहा, नहीं। उसने कहा, कि मेरी भी शादी नहीं हुई है।


उसके बाद उसने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। उसने कहा, दीपक क्या तुम मुझसे शादी करोगे? मुझे कुछ नहीं सूझा और झट से हाँ कह दी। मन में सोचा वाह बेटा दीपक तू तो बहुत किस्मत वाला है।

धीरे धीरे अंधेरा हो रहा था। मैंने पूछा, रुही अभी और कितनी दूर है भूत बंगला? उसने इशारा किया। सामने रंग-बिरंगी लाइटों से सजा आलीशान महल खड़ा था। मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी। उस सुनसान जगह पर ऐसे खूबसूरत महल की सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी। रूहानी ने मेरा हाथ पकड़े रखा और मुझे उस महल के अंदर ले गई।


मैंने कहा, रुही ये तो महल है और कहीं से भी भूत बंगला नहीं लग रहा है। उसने कहा, पता नहीं दीपक लोग इस महल को भूत बंगला क्यों बुलाते है। मैं हर रोज शाम को उस बैंच पर बैठ जाती हूँ जहाँ पर हम मिले थे। लेकिन पिछले पाँच सौ सालों से कोई भी उस रास्ते पर नहीं आया। पिछले पाँच सौ सालों में मैं वहाँ बैठ-बैठ कर ऊब गई हूँ। कोई भी बोलने बतलाने वाला नहीं था। अच्छा हुआ कि तुम आ गए। तुम मुझे बेहद पसंद हो।


उसके बाद रूहानी ने मुस्कुरा कर कहा, ये बताओ मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ? उसकी बातें सुन-सुन कर मेरे माथे पर पसीना आ रहा था। मैंने कहा, बहुत सुंदर। उसने मुझे बड़े प्यार से गले लगा लिया।


मैंने कंपकंपाते हुए कहा, रूही मुझे काफी गर्मी लग रही है। मुझे एक गिलास पानी पिला दो, प्लीज।

उसने अपने दुपट्टे से मेरे माथे का पसीना पोंछा और मुस्कुराते हुए पानी लेने चली गई।


उसके बाद मैं जो भागा था वहाँ से। बाप रे बाप! उसको शब्दों में नहीं बता सकता। अपनी पूरी ताकत लगा कर बस भागता ही गया। मुझे समझने में अब ज्यादा देर नहीं लगी। मेरी सारी दीवानगी उतर चुकी थी। उसके बाद भविष्य में कभी भी भूत बंगला जाने का नाम भी नहीं लिया।

लेकिन रुहानी का वो भोला, मासूम और प्यारा-सा सुंदर चेहरा आज भी मेरे दिमाग में है।

कई बार मन में सोचता हूँ। काश! यार दीपक! अगर...


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