Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

5.0  

Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

संदली का बड़बोलापन

संदली का बड़बोलापन

5 mins
771


संदली बचपन से ही शरारती लड़की थी। घर, परिवार व पड़ोस के सभी लोग उसकी शरारतों से परेशान रहते थे। आमतौर पर लोग लड़कों को लड़कियों से ज्यादा शरारती समझते हैं। परन्तु यहाँ स्थिति एकदम उलट थी। संदली के पिता मोतीलाल और माता बिमला देवी उसको बहुत समझाते थे। परन्तु वह किसी की भी नहीं सुनती थी। प्रायः अपने माता, पिता व अन्य लोगों से बदतमीजी से बात करना उसकी आदत बन चुकी थी। पड़ोस की जानकी आंटी भी उसे बहुत समझाती थी।

संदली आत्मनिर्भर बनना चाहती थी। इसलिए उसने एक नौकरी ढ़ूँढ़ना शुरू कर दिया। घर से वह कॉलेज की कह कर निकल जाती थी और पूरा दिन इधर-उधर इंटरव्यू देने पहुँच जाती थी। एक बार एक ऑफिस में उसे एक नौकरी मिल भी गई। बस फिर क्या था? संदली अपने आप को आत्मनिर्भर समझने लगी। उसकी बदतमीजियाँ पहले से भी ज्यादा बढ़ गई। अपने ऑफिस में उसे अपने ही जैसी दो और महिला कर्मचारी बबीता और सुनीता मिल गई थी जो उसे अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कुछ न कुछ सिखाती रहती थी। संदली बिना कुछ सोचे समझे उनसे अपशब्द प्रयोग करते हुए लड़ने-झगड़ने लग जाती थी। संदली को अन्य कर्मचारियों के साथ लड़ता-झगड़ता देखकर बबीता और सुनीता बहुत खुश होती थी। 

बबीता और सुनीता दोनों ही विवाहित थीं। बबीता का पति घर पर ही रह कर एल. आई. सी. का काम करता था और सुनीता का पति एक ऑफिस में बाबूगिरी करता था। दोनों ही महिलाएँ अपने-अपने पतियों के कहे से बाहर थीं। संदली अभी अविवाहित थी। उसके बुरे व्यवहार और बड़बोलेपन के कारण उसके माता-पिता उसकी शादी के लिए चिंतित रहते थे।

संदली बिना मेहनत व परिश्रम करके पैसा व नाम कमाना चाहती थी। वह ऑफिस जाकर या तो कुर्सी पर बैठ जाती थी। या फिर बबीता और सुनीता के साथ इधर-उधर की चुगली करके अपना समय व्यतीत करती थी। ऑफिस में बॉस व अन्य कर्मचारी उसके इस व्यवहार से दुखी थे। उसे ऑफिस से अच्छी तनख्वाह मिलती थी परन्तु वह पूरी तरह से कामचोर थी।

उसकी यही आदत एक दिन उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन गई थी।

एक दिन बॉस ने उसे कामचोरी करने की वजह से ऑफिस में बुला कर डाँट लगाई। संदली ने यह बात बबीता और सुनीता को बताई तो उन्होंने संदली की बेवकूफी का फायदा उठाया और उससे कहा कि बॉस ने ऑफिस के कर्मचारी रमेश कुमार की शिकायत की वजह से उसे डाँट लगाई थी। उन्होंने संदली को रमेश कुमार के खिलाफ भड़का दिया क्योंकि बबीता और सुनीता की रमेश कुमार से बिल्कुल नहीं बनती थी। 

संदली ने तुरंत जाकर रमेश कुमार से लड़ना शुरू कर दिया और उसे खूब भला-बुरा कहा। रमेश कुमार ने उसे अपने कमरे से जाने के लिए कहा तो और संदली भड़क गई। संदली ने रमेश कुमार को झूठे केस में फँसाने की धमकी भी दी थी। उस समय वहाँ अन्य कई कर्मचारी भी मौजूद थे जिन्होंने संदली के बुरे व्यवहार की निंदा की। 

रमेश कुमार एक शरीफ आदमी था। वह अपने काम के प्रति बहुत अनुशासन में रहता था और दूसरों द्वारा उसके काम में टाँग अड़ाना उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं था। 

रमेश कुमार उसी समय बॉस के ऑफिस में पहुँच कर संदली की शिकायत करता है। बॉस संदली को बुलाकर उसके व्यवहार के लिए डाँट लगाते हैं और उसे नौकरी से निकाल देते हैं। गुस्से में आकर संदली ऑफिस से बाहर आ जाती है और बबीता और सुनीता को सारी बात बता देती है। बबीता और सुनीता बड़ी चालाकी से उससे पल्ला झाड़ लेती है और अपने काम में व्यस्त हो जाती हैं। संदली मुँह लटका कर घर आ जाती है।

ऑफिस के बॉस संदली के पिता मोतीलाल को फोन करके उसके बुरे व्यवहार व उसे नौकरी से निकालने की जानकारी देते हैं। मोतीलाल संदली के बॉस से संदली के बुरे व्यवहार के लिए माफी मांँगते हैं। उन्होंने बॉस को बताया कि हर रोज संदली घर से कॉलेज की कह कर निकलती थी। उसके नौकरी करने का घर में किसी को नहीं पता था। उन्होंने कहा, "मैंने पूरा जीवन मेहनत करके जो इज्जत कमाई थी, आज संदली ने उसे बर्बाद कर दिया।"

संदली के घर आने पर मोतीलाल और बिमला देवी उसे बहुत डाँट लगाते हैं और उसका घर से बाहर जाना बंद कर देते हैं। संदली के मौहल्ले की लड़की गीता भी उसी ऑफिस में काम करती थी। संदली को ऑफिस से निकालने की खबर वह हर जगह फैला देती है। पूरे मौहल्ले में संदली के परिवार की बहुत बदनामी होती है। 

पाँच महीने रहने पर धीरे-धीरे संदली का सारा घमंड चूर-चूर हो जाता है। पाँच महीने घर पर रहने के बाद रिश्तेदारों के कहने पर संदली का दोबारा कॉलेज जाना शुरू हो जाता है।

एक दिन शाम को वह घर के बाहर चुपचाप अकेले बैठी थी। इतनी ही देर में पड़ोस में रहने वाली जानकी आंटी वहाँ आ जाती है और उससे पूछती है, "तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?" लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है, "आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूँ?"

उसकी शांत आँखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।

जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आँखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?

"संदली! क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूँ?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

"जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

"कैसी हो? क्या चल रहा है आजकल?", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

"बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज-पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया। "आप सुनाइये।"

"बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूँ।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

"अरे वाह! क्या सीख रही हैं इन दिनों ?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।

जानकी ने कहा, "आजकल कंप्यूटर सीख रही हूँ। सोच रही हूँ कंप्यूटर सीख कर किसी ऑफिस में नौकरी कर लूँ। कुछ कमाई भी हो जाएगी और इसी बहाने समय भी व्यतीत हो जाएगा। तुम्हारे अंकल के जाने के बाद तो...........।" कहते-कहते वह रोने लगी।

जानकी ने संदली से कहा, "अगर तुम्हारा कोई जान-पहचान वाला हो.............." इतने में ही घर के अंदर से संदली की माँ बिमला देवी की आवाज आती है। संदली कहाँ मर गई? एक मिनट में अंदर आ। संदली फटाफट उठ खड़ी होती है और अंदर चली जाती है। 

जानकी आंटी वहीं पर बैठे-बैठे मुँह चिढ़ाती है और इधर-उधर देखने हुए बुड़बुड़ाती है, "आजकल की लड़कियाँ। भगवान बचाए।"


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