Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

5.0  

Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

केजरीवाल

केजरीवाल

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595



बिजली गई हुई थी और मैं मोबाइल पर समय व्यतीत कर रहा था। इतने में वाटसएप पर एक मैसेज आया। मुझे एक अवार्ड फंक्शन के लिए निमंत्रण भेजा गया था। गर्मियों के दिन थे। भयंकर गर्मी पड़ रही थी इसलिए चार-पाँच घंटे का सफर करके जाना भी एक बहुत मुश्किल काम लग रहा था। पर मैंने सोचा मौका जीवन में बार-बार नहीं मिलता इस लिए जाने का पक्का मन बना लिया। लेकिन दिमाग में वही चल रहा था कि भयंकर गर्मी मे यात्रा करना वगैरह-वगैरह।

अवार्ड फंक्शन का समय सांय चार बजे था तो सुबह दस बजे बस स्टैंड के लिए घर से निकला। तेज धूप से बचने के लिए मेरा चश्मा और छाता ही एक मात्र विकल्प थे। दो कि.मी. पैदल चल कर बस स्टैंड पहुँचा। 

बस स्टैंड में घुसने से पहले बस स्टैंड से बाहर आने वाली बसों को ध्यान से देख रहा था। इस बीच मैं बताना भूल गया कि मुझे दरअसल दिल्ली की बस पकड़नी थी। एक बस पर दिल्ली लिखा देखा तो छाता बंद कर भागा और उसमें चढ़ गया। बस में बहुत भीड़ थी। कंडक्टर ने कहा भाई क्यों गर्मी में मर रहे हो? पीछे ओर भी बसें आ रहीं हैं और सीट भी आसानी से मिल जाएगी। यह सुन कर फटाफट दूसरी बस पकड़ने को उतरा और दिल्ली की बस ढ़ूँढने लगा।

एक ए.सी. बस दिल्ली जाने को तैयार खड़ी थी जिसका किराया तो ज्यादा था पर देख कर बड़ी खुशी हुई कि घंटों के सफर में गर्मी, पसीने और भीड़ से कुश्ती नहीं लड़नी पड़ेगी। बहुत बढ़िया सीट भी मिल गई थी। कंडक्टर को टिकट काटते वक्त अपने गंतव्य पर उतारने को कहा। साथ में ही माथे पर टीका लगा एक लड़का बैठा था। बातचीत में पता चला कि वह था तो हरियाणा का पर नौकरी बैंगलोर में करता था। सामने वाली सीट पर एक शादीशुदा जोड़ा बैठा था। दोनों का आपस में इस तरह हँसी मजाक चल रहा था कि दुनियादारी से उनका कोई लेना देना नहीं था। बोल चाल से लड़की यू.पी. व बिहार की लग रही थी और लड़का ठेठ हरियाणवी बोल रहा था। अच्छी बात है दोनों खुश लग रहे थे। 

बस विडियो कोच थी जिसमें एक पंजाबी फिल्म चल रही थी। फिल्म में बंदूक वाली दादी का जोरदार रोल था जिससे सारा पिंड डरता था। वहीं दादा जी छोटे कद के सूखी हड्डी थे जो अपने में ही मस्त रहते थे। फिल्म की कहानी में लड़की का होने वाला दूल्हा उसकी बहन से प्यार करता है और आते-जाते अपनी होने वाली साली से प्यार का इजहार करता रहता था। इतनी ही देर में न जाने कब मेरी आँख लग गई और जब आँख खुली तो फिल्म से पूरा ध्यान हट गया था। 

बस में थोड़ी-थोड़ी भीड़ दिखाई देने लगी थी। एक दो लोग मेरे आसपास बैठे दिखाई दिए। बस में पास की सीट पर एक छोटा बच्चा अपने परिचित के साथ बैठा था। मैं कुछ समझ पाता इतने में ही बच्चा जल्दी से अपनी सीट से उठ कर बाहर आने लगा कि उससे कंट्रोल नहीं हुआ और बस में बैठे यात्रियों पर उल्टी की बौछार कर दी। बेड़ा गरक हो तेरा, साथ बैठी ताई जोर से चिल्लाई। शादीशुदा जोड़ा, बैंगलोर वाला लड़का और आसपास बैठे सभी लोगों के बैग कपड़े सब कुछ खराब हो गया था। शुक्र है मेरा बचाव हो गया। बस में दुर्गंध फैल गई। उसकी हालत देख कर मुझे भी उल्टी आने लगी। एक दो लोगों ने बच्चा कह कर स्थिति को संभाल लिया। सब चुपचाप रहे। किसी ने बच्चे को कुछ भी नहीं कहा। एक मिनट बाद ही उसका स्टापेज आ गया और वह अपने परिचित के साथ उतर गया। 

मैं जी.पी.एस. से मोबाइल पर मेरे स्टोपेज को चैक कर रहा था। लेकिन यह क्या बस चालक ने मेरे स्टापेज पर बस को रोका ही नहीं। मैं जल्दी से कंडक्टर के पास गया और शिकायत की। उसने आगे उतरने को कहा। उससे ज्यादा उलझने का फायदा नहीं था इसलिए अगले स्टापेज पर उतर गया।

मेरे गंतव्य स्थान पर पहुँच कर लोकल बस के लिए पूछताछ करने लगा और बस स्टाप पर बस का इंतजार करने लगा। बस के आने पर उसमें सवार हो गया। 

कंडक्टर ने बिना टिकट दिए दस रूपये किराया लिया और मुझसे पूछा कहाँ जाना है? मैंने कहा पीतमपुरा जाना है। उसने कहा आगे बैठ जाओ। अभी बीस मिनट और लगेंगे। मेरे मोबाइल पर जी.पी.एस. ऑन था। मुझे दोबारा बेवकूफ नहीं बनना था। जी.पी.एस. के हिसाब से स्टापेज के लिए मुझे दो मिनट और लगने थे। सो चुपचाप बैठा रहा। कंडक्टर से कुछ नहीं कहा और अपने स्टापेज पर उतर गया। बिल्कुल सामने ही अवार्ड स्थल था।

प्रोग्राम शुरू होने में अभी ढ़ाई घंटे बाकी थे। सोचा आसपास कहीं जाकर खाना-पीना कर लिया जाए।

दोबारा से अपना चश्मा पहन और छाता खोल कर इधर-उधर कोई खाने-पीने की जगह खोजने लगा। पूछताछ करने पर पता चला कि पास में ही कोई खाने वाला है। पहुँच कर देखा तो दो रेड़ियों पर लोग खाना खा रहे थे। चालीस रुपये थाली रेट में दो सब्जियाँ, चटनी, रायता, दो पराठें और प्याज। घाटे का सौदा नहीं लगा सो एक थाली ऑडर कर दी। कहते हैं भूख में किवाड़ भी पापड़ लगते हैं। खाना स्वादिष्ट था और ऊपर से भूख भी बड़ी लगी थी सो खाने का मजा आ गया। काफी दिनों बाद थोड़ तीखा खाया था। रेहड़ी वाले को पैसे देकर मैं कुछ देर वहाँ रुक कर हाथ-मुँह धोकर बूट पॉलिश वाले को ढ़ूँढने लगा पर आसपास कोई न मिला।

उसके बाद सोचा क्यों न अवार्ड स्थल पर जाकर आराम कर लिया जाए। वहाँ पहुँचा तो चपरासी ने अंदर नहीं जाने दिया।

मैंने उसे बताया भाई आज मुझे अवार्ड मिलना है। लेकिन उसनें अंदर एक न सुनी और ठीक चार बजे आने को कहा। ऐसी बेवकूफी भी पहली बार देखने को मिली थी। खैर इधर-उधर छाता लेकर घूमने लगा। वहीं कुछ दूर एक बूट पॉलिश वाला दिखाई दिया। सोचा बूट पॉलिश वाले से ब्रश लेकर खुद ही मार लूँगा। ऐसा ही किया। लेकिन प्रोग्राम में अभी भी दो घंटे बाकी थे। बूट पॉलिश वाले को जूते में नए पतावे डालने को कहा ताकि उसे कुछ पैसे दे सकूँ। उसने जूते में नए पतावे डाल कर ब्रश से रगड़ कर जूतों को खूब चमका दिया। मैंने उसे बीस रुपये दिए और सोचा थोड़ी देर यहीं बैठ जाऊँ। कुछ तो टाइम पास होगा। इतने में एक जवान लड़का दो थैलियों में चाउमीन लेकर आया और एक थैली उसे खाने को देकर वहाँ से चला गया। बूट पॉलिश वाले ने अपनी पानी की बोतल से हाथ धोए और चटनी मिला कर चाउमीन खाना शुरू कर दिया। मैं चुपचाप वहीं बैठा रहा और अपना मोबाइल चैक करता रहा। काफी देर हो गई थी गर्मी ज्यादा थी और अब बहुत प्यास लग रही थी। मेरी बोतल का पानी गर्मी के मारे उबल रहा था। घूमते समय पास में ही एक ठंडे पानी की मशीन देखी थी। वहाँ पहुँच कर अपनी बोतल में दस रुपये का पानी भरवाया। पानी पीकर जान में जान आ गई। इसी बीच देखा मेरी पॉलीथीन पर कुछ चीटियाँ घूम रही थी। शायद बूट पॉलिश वाले के पास पॉलीथीन नीचे रखने पर चढ़ गई होंगी। पास के चबूतरे पर पॉलिथीन खाली कर सारी चीटियाँ भगाई और सारा सामान पॉलिथीन में दोबारा से समेट लिया। प्रोग्राम शुरू होने में अभी भी समय था। कोई और जगह दिखाई न दी तो वापस जाकर फिर से बूट पॉलिश वाले के पास बैठ गया। वह चाउमीन खा चुका था। एक गिलास में अंग्रेजी दिखा कर मुझे बोला। देखो साहब थोड़ी-सी देकर गया है। चलो कोई बात नहीं। पानी पिला कर थोड़ी-थोड़ी मजे से पीऊँगा। मैं कुछ न बोला और उसे ही सुनता रहा। थोड़ी देर बाद उससे पूछा महीने में कितना कमा लेते हो? उसने बोला साहब सात-आठ हजार कमा लेता हूँ। अपनी दो मंजिल पक्की झोपड़ी बना ली है जिससे तीन हजार रुपए किराया भी आ जाता है। बिजली पानी का बिल भरता हूँ और राशन कार्ड भी बनवा रखा है। मेरे मकान के कागज भी मेरे ही नाम हैं। तीन बेटे हैं। मकान का किराया बेटे ही लेते हैं। मेरा और बुढ़िया का खर्चा दुकान से चल जाता है।

भला हो केजरीवाल का उसकी मदद से जल्दी ही तीसरी मंजिल भी बना लूँगा। केजरीवाल बहुत ही मेहनती व ईमानदार है साहब और भ्रष्टाचार के तो एकदम खिलाफ। केजरीवाल मेरे तो आदर्श हैं साहब। मैं तो उन्हें ही वोट देता हूँ। किसी और पर विश्वास ही नहीं होता साहब। साले सारे बेईमान हैं। हम गरीबों का पैसा भी खा जाते हैं। केजरीवाल का नाम सुनते ही मैंने उससे पूछा केजरीवाल कैसा काम कर रहा है? उसने बोला साहब एक नम्बर । मैंने पूछा इतना अच्छा काम कर रहा है तो इस बार लोकसभा में उसे एक भी सीट क्यों नहीं मिली। वह बोला साहब ये सारा बक्सों की गड़बडी के कारण हुआ है। केजरीवाल बहुत बढ़िया काम कर रहा है। उसे काफी वोट मिले थे। लेकिन मोदी के विदेश से वोट आने के कारण केजरीवाल हार गया। अब दिसम्बर में विधानसभा के चुनाव हैं। देखना फिर से केजरीवाल ही आएगा। बूटपॉलिश वाले की आँखों में गजब का आत्मविश्वास था जिससे साफ था कि वहाँ की आम जनता को उससे फायदा हो रहा था। बातों बातों में काफी समय हो गया था। परंतु अभी भी एक घंटा बाकी था। मैंने अवार्ड समारोह के आयोजक को फोन करके बताया कि काफी समय से बाहर धूप में भटक रहा हूँ और चपरासी अंदर तक नहीं आने दे रहा है। फोन चालू था। उसने तुरंत आयोजन स्थल से बाहर आकर मुझसे पूछा सर आप कहाँ हो? मैं कुछ ही दूरी पर खड़ा आयोजन स्थल को देख रहा था। एक आदमी गेट पर खड़ा फोन पर बात करते हुए दिखाई दे रहा था जिसने पीली शर्ट पहन रखी थी। मैंने फोन पर पूछा क्या आपने पीली शर्ट पहन रखी है? उसने कहा हाँ। मैंने कहा तो पीछे मुड़ कर देखिए। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो मैंने भी अपना हाथ हिलाकर संदेश दिया कि आ रहा हूँ। जैसे ही आयोजन स्थल की ओर जाने लगा तो बूट पॉलिश वाला मेरे पास आकर बोला साहब खर्चा पानी तो देकर जाओ। मैंने कहा किस बात का खर्चा पानी। तुम्हें काम दे दिया था और बदले में बीस रुपये भी तो दिए थे। मैंने कहा केजरीवाल को इतना मानते हो तो तुम्हारी मेहनत से तुम्हें जो मिला है उसी में सब्र करो। थोड़ी देर पहले तुम्हीं ने कहा था ना कि केजरीवाल ईमानदार है, भ्रष्टाचार के तो बिल्कुल खिलाफ है और तुम्हारे आदर्श हैं तो अब उनकी बातें क्यों भूल रहे हो। बूट पॉलिश वाला बोला क्या साहब आप भी। मैं बोला तुम भी तो गलत माँग रहे हो। यही तो कमी है हमारे में। हमें औरों में बहुत कमियाँ नजर आती हैं परंतु हमारी कमियाँ व गलतियाँ नहीं दिखाई देती। बिना बात के लिए मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा। जिसको अपना आदर्श मानते हो उसकी बातों का अनुसरण भी करो। केजरीवाल को तुम्हारी इन हरकतों का पता तो तो उसे कैसा लगेगा। तुम ठीक कहते हो साहब मैं गलती पर हूँ। सही बात है। तुमने मेरी आँखें खोल दी। आगे से ध्यान रखूँगा। फिर कभी जरूर आना। इसके बाद मैं वहाँ से निकल लिया। आयोजन स्थल पर पहुँच कर कपड़े बदले और ऑडिटोरियम में जाकर बैठ गया। वहाँ आयोजक महोदय से मुलाकात हुई। तैयारियाँ चल रही थी। कार्यक्रम थोड़ी देर में शुरू हुआ। मेरी उपलब्धियों को बड़ी स्क्रीन पर चलाया जा रहा था। सभी विजेताओं को अपना विचार रखने का मौका दिया जा रहा था। मेरी बोलने की बारी न आई। बढ़िया यह हुआ कि कुछ लोगों को पुरस्कृत कर मुख्य अतिथि नीचे आकर बैठ गए थे मेरी बारी में वो पुनः स्टेज पर आए और मुझे पुरस्कार दिया। मुख्य अतिथि को जाने की जल्दी थी। उन्हें फलाइट भी पकड़नी थी। मुझे भी बस पकड़नी थी। मैंने अपना पुरस्कार आदि जल्दी से पैक किया और मैं भी वहाँ से बाहर निकलने लगा। मुख्य अतिथि भी उसी समय आयोजन स्थल से बाहर निकल रहे थे। जल्दी में थे। मैंने उन्हें साइड देकर विश किया। उन्होंने भी बहुत अच्छे से विश किया। बस स्टैंड पहुँच कर बस पकड़ी। भीड़ बहुत ज्यादा थी सो पूरा रास्ता खड़े होकर आना पड़ा। मन में एक विजेता व प्रसन्नता का भाव होने से सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा था। देर रात घर पहुँचा। अगले दिन फिर से आउट ऑफ स्टेशन जाना था इसलिए अलार्म लगा कर सो गया।





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