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Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

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Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

भाषण

भाषण

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बचपन में मुझे तुतलाने की बुरी आदत थी। कक्षा में सभी मुझे तोतला कह कर मेरी नकल उतारते और मेरा मजाक उड़ाते थे। मैं घर आकर माता जी व बाबू जी से शिकायत करता और बहुत रोता। धीरे-धीरे मेरा कॉन्फिडेंस लेवल भी कम हो रहा था। बाबू जी मेरे ही स्कूल में शिक्षक थे। मुझे रोता देख कर माता जी बाबू जी से कहती आप उसी स्कूल में मास्टर हो, हमारे टप्पू को परेशान करने वाले बच्चों को डाँट-फटकार क्यों नहीं लगाते?

बाबू जी कहते ये तो बच्चों के आपस की बात है। मेरा बोलना ठीक नहीं है। हर बच्चे में कोई न कोई कमी या बुरी आदत होती ही है । किसी को ज्यादा बोलने, किसी को कम बोलने, किसी को ज्यादा खाने की और किसी को कम खाने की आदत होती है। कोई मोटा, कोई पतला, कोई ठिगना और कोई काला होता है। 

बच्चे नासमझ होते हैं। दो मिनट में लड़ पड़ते हैं और अगले ही पल फिर से एक हो जाते हैं।

माता जी गुस्से में थी। बाबू जी से बोली भाषणबाजी से कुछ नहीं होता मास्टर जी। ये तो हर रोज की बात हो गयी। या तो आप कुछ कीजिए नहीं तो मैं स्कूल में आकर हैडमास्टर जी से बात करुँगी। मुझसे टप्पू का रोना नहीं देखा जाता।

बाबू जी बोले अच्छा कल मैं उन बच्चों से बात करूँगा।

रात को बाबू जी के दिमाग में एक उपाय सूझा। बाबू जी माता जी बोले तुम क्या कह रही थी? भाषण से कुछ नहीं होता मास्टर जी। भाषण से बहुत कुछ हो सकता है मास्टरनी।

बाबू जी ने मुझे बुलाया और कहा देखो टप्पू तुम कक्षा में सबसे होशियार हो। अगले हफ्ते स्कूल में भाषण प्रतियोगिता है। तुम तैयारी करो। 

मैं बाबू जी से बोला - मैं थैथे बाथन दूँदा (मैं कैसे भाषण दूँगा)। थब हथेंदे (सब हँसेंगे)। 

बाबू जी बोले तुम फिक्र नहीं करो। तुम तो बस तैयारी करो। देखना तुम सबकी छुट्टी कर दोगे।

भाषण का विषय था - "मैं कैसा हूँ"

मेरी बारी आने पर सबने जोर-जोर से हँसना शुरू कर दिया। 

बाबू जी ने पहले ही कह दिया था कि सभी हँसेंगे पर तुम ध्यान न देना। भाषण देने के लिए डटे रहना और कुछ भी हो अपना भाषण पूरा करके ही आना। बस फिर देखना।

मन मजबूत करके मैं वहाँ खड़ा रहा और भाषण शुरू किया।

थुब पलभात (शुभ प्रभात)। मेला नाम तप्पू (टप्पू) अ। मैं थाथवीं तलात में पलता उ (मैं सातवीं क्लास में पढ़ता हूँ)। मेली तलात में पत्तीत बत्ते अ ( मेरी क्लास में पच्चीस बच्चे हैं)। तोई दाली (कोई गाली) देता अ। तोई द्हूथ (झूठ) बोलता अ। तोई तोली तलता (चोरी करता) अ। तोई मालपीत तलता (मारपीट करता) अ। तोई पलाई (पढ़ाई) नी तलता (करता)।

मेले बाबू दी और माता दी ने मुदे (मुझे) ये तीदें (चीजें) नी थिथाई (सिखाई)।

उनोने मुदे थिथाया अ (उन्होंने मुझे सिखाया है) थथ (सच) बोलना, द्हूथ (झूठ) न बोलना, तोली न तलना (चोरी न करना) औल (और) न तिती तो तोतला त ते तिड़ाना (न किसी को तोतला कह के चिढ़ाना)।

मैं तलात में अल बाल फस्त आता उ (मैं क्लास में हर बार फर्स्ट आता हूँ)।

तुम थब में बी थो-थो तमियाँ अ (तुम सब में भी सौ-सौ कमियाँ हैं)। मैं तो तिती तो तबी नी तिलाता (मैं तो किसी को कभी नहीं चिढ़ाता)।

मेली इतनी साली अथ्थी बातें तो तिती तो नी दिथाई देती (मेरी इतनी सारी अच्छी बातें तो किसी को दिखाई नहीं देती) । थाला दिन तोतला-तोतला बोलते ओ (सारा दिन तोतला-तोतला बोलते हो)।

आद मैं थबते थामने बोलता उ (आज मैं सबके सामने बोलता हूँ), आँ मैं तोतला उ (हाँ मैं तोतला हूँ)।

लेतिन ओलो ती तलअ बुले ताम नी तरता (लेकिन औरों की तरह बुरे काम नहीं करता)।

मेरा भाषण सुन कर सबका सिर शर्म से झुक गया। उस दिन का भाषण देकर मेरा कॉन्फिडेंस भी बढ़ गया। उसके बाद मेरी कक्षा के बच्चों ने मुझे चिढ़ाना भी छोड़ दिया और धीरे-धीरे सभी मेरे अच्छे मित्र बन गए।


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