Dr. Vikas Kumar Sharma

Inspirational

5.0  

Dr. Vikas Kumar Sharma

Inspirational

मंत्री जी की फजीहत

मंत्री जी की फजीहत

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कैप्टन सुरेश कुमार कश्मीर घाटी के एक गाँव के बॉर्डर पर तैनात थे। एक दिन शाम को अचानक आतंकवादियों ने हमला कर दिया। कैप्टन सुरेश कुमार लड़ते हुए निरंतर अपने फौजियों की टुकड़ी के साथ आगे बढ़ कर आतंकवादियों को खदेड़ते रहे। कुछ देर बाद दोनों ओर से गोलीबारी बंद हो गई। सभी को लगा आतंकवादी डर कर भाग गए थे। परंतु फिर भी कैप्टन सुरेश कुमार अपनी टुकड़ी के साथ वहीं डटे रहे। 

अंधेरा होने लगा था। कैप्टन सुरेश कुमार को पहाड़ी के पीछे से कुछ आहट सुनाई दी। उन्होंने अपने साथियों को पहाड़ी के दूसरी ओर भेज दिया। इतने में तीन खूंखार आतंकवादी एकदम से उनके सामने आ गए और गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। कैप्टन सुरेश कुमार अकेले थे। कैप्टन सुरेश कुमार ने भी उन पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में उन्होंने तीनों आतंकवादी मार गिराए। इतने में पहाड़ी के दूसरी ओर से भी फायरिंग शुरू हो गई। 

एक गोली सुरेश कुमार के पैर में आकर लगी जिससे वह नीचे गिर पड़े। इतने में दो आतंकवादियों ने पीछे से आकर उन्हें पकड़ लिया और घसीटते हुए ले जाने लगे। कैप्टन सुरेश कुमार ने बहादुरी दिखाते हुए एक आतंकवादी की गर्दन को कसकर पकड़ लिया और उसे मार डाला। परन्तु दूसरे आतंकवादी ने गोलियाँ चला दी और कैप्टन सुरेश कुमार को मार दिया। आतंकवादियों ने उनकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। 

उनके शहीद होने की खबर ने पूरे देश को गम में डूबो दिया। उनके पार्थिव शरीर को गाँव में ले जाया गया जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके परिवार वालों का रो-रोकर बुरा हाल था। गाँव के हर घर में गम का माहौल था। 

गाँव के बड़े-बुजुर्गों ने बताया कि बचपन से ही सुरेश बहुत बहादुर था और सभी का बड़ा सम्मान करता था। गाँव वालों ने शहीद सुरेश कुमार के परिवार वालों को नौकरी और उनके नाम पर गाँव में एक अस्पताल खोलने की माँग सरकार से की। परन्तु उनकी माँग सरकारी फाइलों में कहीं दब कर रह गई थी। 

कैप्टन शहीद सुरेश कुमार के जाने के पाँच महीने बाद गाँव में 15 अगस्त पर कार्यक्रम होना था। जिलाधिकारी जी ने गाँव के सरपंच के पास कार्यक्रम से संबंधित एक पत्र भेजा और बताया कि इस बार 15 अगस्त के कार्यक्रम में मंत्री जी झंडा फहराने आएंगे इसलिए आयोजन की तैयारियाँ शुरू कर दें। 

मंत्री के आने का पता चलने पर गाँव वालों ने इसका विरोध किया। इसके दो कारण थे। एक तो गाँव वाले कैप्टन शहीद सुरेश कुमार के परिवार के सदस्यों को मुख्य अतिथि के रुप में बुलाना चाहते थे। दूसरा गाँव वालों द्वारा कैप्टन शहीद सुरेश कुमार के परिवार के लिए की गई माँगों को अभी तक पूरा नहीं किया गया था।

गाँव के बड़े-बुजुर्ग सरपंच को साथ लेकर जिलाधिकारी से मिलने पहुँचे और मंत्री जी को बुलाने का विरोध किया। जिलाधिकारी जी ने समझाया कि मैं तो सरकारी मुलाजिम हूँ। मैं तो बस अपनी ड्यूटी कर रहा हूँ। ये आदेश तो ऊपर से आए हैं। मैं इन आदेशों को नहीं रोक सकता। 

उन्होंने गाँव वालों से कहा- मैं तो इसे अच्छा ही समझता हूँ। कार्यक्रम में मंत्री जी को आने दीजिए और वहीं पर उनसे अपनी माँगों के बारे में बात कीजिए। कैप्टन शहीद सुरेश कुमार पर पूरे देश को गर्व है। उनके परिवार का मैं भी बहुत सम्मान करता हूँ। उनके परिवार को हम अति विशिष्ट अतिथि के रुप में बुलाएंगे। गाँव वालों को जिलाधिकारी जी की बात अच्छी लगी और कार्यक्रम के लिए अपनी सहमति दे दी।

15 अगस्त को कार्यक्रम के दिन मंत्री जी के स्वागत में गाँव को सजाया गया। कार्यक्रम का आयोजन सुबह 9 बजे से 12 बजे तक था। सुबह-सुबह ही कई पुलिस वाले मंत्री जी की सुरक्षा के लिए गांँव में अपनी ड्यूटी पर पहुँच गए थे। सारे गाँव वाले सरकारी स्कूल के प्रांगण में झंडा फहराने के कार्यक्रम के लिए एकत्रित हो रहे थे। देशभक्ति गाने चल रहे थे। स्कूल के बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए तैयारी कर रहे थे। सभी बेसब्री से मंत्री जी के आने का इंतजार कर रहे थे। जिलाधिकारी कार्यालय की तरफ से मुझे उस दिन कार्यक्रम में मंच संचालन करने की ड्यूटी दी गई थी। सरकारी स्कूल की बिल्डिंग की छत पर तिरंगे झंडे में गुलाब के फूलों की खुशबुदार पँखुड़ियों को लपेट कर रस्सी को नीचे तक लटकाया गया था। मंत्री जी के मंच पर स्वागत के लिए कैप्टन शहीद के परिवार को मंच के एक ओर खड़ा किया हुआ था।

तकरीबन 10 बजे मंत्री जी की लाल बत्ती लगी गाड़ी चीं-चीं करती हुई सरकारी स्कूल के प्रांगण में प्रवेश कर गई। पुलिसवालों ने गाँव वालों को दूर तक खदेड़ दिया। मंत्री जी के प्रांगण में पहुँचने पर उन्हें सोफे पर बैठाया गया। उसके बाद मैंने अपनी ड्यूटी करना शुरू कर दिया और सुंदर-सुंदर शब्दों का चयन करते हुए मंत्री जी का गुणगान शुरू कर दिया जो कि उनके चरित्र व कार्यशैली से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता था। गाँव वालों में मंत्री जी के लिए गहरी नाराजगी थी इसलिए कोई भी उनका गुणगान सुनने में रुचि नहीं ले रहा था।

परन्तु जब मैंने कैप्टन शहीद सुरेश कुमार की देशभक्ति, बहादुरी और बलिदान के बारे में बोलना शुरू किया तो सभी गाँव वालों की आँखें नम हो गई। गाँव वालों ने शहीद सुरेश कुमार अमर रहे के जोर-जोर से नारे लगाने शुरू कर दिए। 

उसके बाद मैंने मंत्री जी से गुजारिश की कि वो मंच पर आएं और झंडा फहराये।

मंत्री जी अपनी सीट से खड़े हुए और चेहरे पर गोल्डन फ्रेम का काला चश्मा लगा लिया। शायद अपने किए वादों को पूरा नहीं करने पर लोगों से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

जैसे ही मंत्री जी मंच की ओर आगे बढ़े इतने में ही छत पर एक बंदर आ गया और उसने झंडे की रस्सी खींच दी। तिरंगा झंडा खुल गया और झंडे में लिपटी गुलाब के फूलों की पँखुड़ियाँ चारों ओर उड़ गयी और मंच के पास नीचे खड़े कैप्टन शहीद सुरेश कुमार के परिवार के लोगों पर गिरने लगी। तिरंगा झंडा हवा में लहराने लगा।

कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोग हँसने लगे और जोर-जोर से तालियाँ व सीटियाँ बजाने लगे।

मंत्री जी की काफी फजीहत हुई परन्तु चेहरे पर झूठी हँसी लाकर मुस्कुराने लगे और मंच के नीचे से ही तिरंगे झंडे को सैल्यूट कर फोटो खिंचवाई।

कैप्टन शहीद सुरेश कुमार के परिवार का गुलाब के फूलों की खुशबूदार पँखुड़ियों से स्वागत होता देख मुझे काफी प्रसन्नता हुई। उस अद्भुत पल का साक्षी होने और एक भारतीय होने पर मुझे गर्व महसूस हो रहा था।


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