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तुम्हारी अनु

तुम्हारी अनु

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प्रिय अंजली,

हर साल की तरह दुर्गा पूजा आई और तुम्हारा खत भी आया। पिछ्ले 20 सालों से ऐसा एक भी साल नहीं गया जब दुर्गा पूजा आई हो और तुम्हारा खत ना आया हो। 

हमारा मिलना ना मिलना सब माँ की मर्जी थी मगर दिलोंं का मिलना भी तो उनकी ही ख्वाहिश रही होगी ना। 

खैर इस बार खत में कुछ खास था।

इस लिये तुम्हें एक खत लिख रहा हूँ। जानता हूँ पिछ्ले 20 सालों में एक बार भी तुम्हारे खतों का जवाब नहीं दिया पर तुम मानोगी नहीं मैं पूरे साल पूजा का इन्तजार बस इसलिए करता हूँ की जानता हूँ तुम्हारा खत आयेगा। 

ये वॉट्सएप्प, फेसबुक और कॉल कभी हमारे बीच की खाई को भर नहीं पाये।

कभी हिम्मत नहीं होती थी की इतनी दूरी के बावजूद मैं तुमसे इतनी नजदीकी से बात कर सकता था। इस दूरी को दूरी बनाये रखकर खत हमारे बीच की खाई को भरने की कोशिश कभी नहीं करता। 

खैर मैंने तो उसकी कोशिश भी नहीं की कभी। तुम्हारा दिल ही इतना उदार रहा की तुमने खत लिखे। ये एहसान रहेगा।

खैर तुम पुछोगी ऐसा क्या खास था खत में तो बता दूँ इस बार तुमने "तुम्हारी अनु" नहीं लिखा था। ये अच्छा लगा। अब तुम मेरी नहीं हो। 

20 सालों से तुम्हारे खत में "तुम्हारी अनु" पढ़ता तो लगता अब भी वक़्त है तुम लौट आओगी। मेरा कुछ तो अधिकार है तुम पर मगर आज वो दंभ टूट गया।

अच्छा किया।

जरुरी हो जाते हैं कुछ शीशे तोड़ने जब वो हद से ज्यादा धुँधले हो जाते हैं और हम उनमें अपने ख्यालों से अपनी शक्लें बनाते हैं। 

आशा है तुम खुश हो अपनी जिन्दगी में क्यूंकि मैं तो तब भी खुश था जब तुम थी, तब भी जब तुम गई और आज तो तुमने भ्रम तोड़ मुझे उन्मुक्त ही कर दिया है।

उम्मीद है आगे भी खत लिखती रहोगी। बारिश बीतने पर आया तुम्हारा खत शरद के पहले ठंडे झोंखे सा मालूम होता है। लिखती रहना अच्छा लगता है। कम से कम तब तक जब तक मैं जिन्दा हूँ। 

प्रेम


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