वे इच्छाएं जो ....
वे इच्छाएं जो ....
नवरात्रि के नव रंग
(आठवां दिवस - मयूर हरा रंग)
नौ देवियों के रूप में आठवीं नारी शक्ति बहु को नमन है।
नवरात्रि का आठवां दिवस माँ महागौरी के नाम है। माँ महागौरी तपस्या और वरदान की देवी है।
मयूर हरा रंग उन इच्छाओं का प्रतीक है जो पूरी होती है। आज का रंग, प्रतीक, देवी और देवी का रूप (बहु) सब एक दूसरे से जुड़े है। महागौरी त्याग, तपस्या और वरदान का प्रतीक है। बहु को ससुराल में त्याग और तपस्या करनी होती है तभी उसे वरदान रूप में अच्छा पति और परिवार मिलता है। साथ ही मयूर हरा रंग प्रतीक है उन इच्छाओं का जो पूरी होती है पर त्याग और तपस्या के बाद भी इच्छाएं कहां पूरी होती है। इच्छाये पूरी हो जाएं तो चमत्कार ना हो जाये। पर वास्तविक जीवन में चमत्कार नहीं हादसे होते है। पर कहानियों में चमत्कार हो सकते है। या यूँ भी कह सकते है इच्छाएं पूरी होती नहीं, पूरी करनी होती है। मतलब अगर आपकी इच्छा पूरी नहीं हुई तो क्या, आप किसी और कि इच्छा तो पूरी कर ही सकते है। चलिये आज की कहानी पढ़ते है।
आज सरोजिनी जी के घर में खूब चहल-पहल है मानो किसी उत्सव का माहौल है। घर को सजाया जा रहा है और हो भी क्यों ना कल से नवरात्रि जो शुरू होने वाली है। वहीं सरोजिनी जी अपने कमरे में कॉफी के कप और बारिश की बूंदों के साथ अपने अतीत में डूबी हुई गुनगुना रही थी "अबकी बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाए रे, लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ दीजो संदेशा भीजाए रे" गाना गुनगुनाते गुनगुनाते उनकी आँखों से आँसू बह निकले। यह गाना तो उनका दिल पिछले तीस सालों से गा रहा है। अब तो बाबुल भी नहीं है। भैया तो एक आवाज पर हाजिर हो जाए इतना अच्छा है। पर उनके नसीब में शायद सावन में मायके जाना लिखा ही नहीं है। बचपन की सखियाँ भी अब क्या मायके आती होंगी ? या फिर वह सब भी उनकी तरह बच्चों के स्कूल, परिवार के दायित्व, में मजबूर हो गई होंगी l शायद वह सब एक आध दिन के लिए पहुँच भी पाती होंगी ? उनके दिल में फिर एक टीस उठी और वह गाना गुनगुनाने लगी , "मैं बाबुल तेरे अंगना की चिड़िया काहे को ब्याही विदेश रे।" सच में क्यों मुझे इतनी दूर ब्याह दिया I जहाँ से मुझे आने जाने में भी ट्रेन से छह: दिन लग जाते हैं I सात दिन की छुट्टी लो तो एक दिन रुकने को मिले।
वह गंगा किनारे से ब्याह कर सागर किनारे आ गई थी। सिर्फ बोली भाषा ही नहीं खानपान त्यौहार तक का अंतर था। उन्हें याद है जब वह गाना आया था ना "बरसात में जब आएगा सावन का महीना मैं तुम को बना लूंगी अंगूठी का नगीना" वह कितना हंसती थी। कितने पागल लोग हैं , बरसात में सावन का महीना नहीं आता ,सावन के महीने में बरसात आती है। पर शादी के पाँच महीने बाद ही पता चल गया था। यहाँ तो बरसात में सावन का महीना आता है। कितनी खुश थी वह शादी के बाद पहली बरसात और इतने प्यारे पति का साथ I यह खुशी दूनी हो गई थी जब पापा ने बोला था वह भाई को भेज रहे हैं सावन में उसे लाने के लिए। तब का जमाना अलग था तब सास ससुर से, पति से इजाजत लेनी पड़ती थी I और सास ने बोल दिया था हमारे यहाँ पहला सावन ससुराल में बिताते हैं। उनका पहला सावन क्या बाद के सारे सावन गुजराती, मराठी दक्षिण भारतीय लोगों के बीच में शीतला सातम, राधा अष्टमी, नवमी नोम ना जाने कौन-कौन से त्योहार मनाते हुए बीतते गए I नवरात्रि में मम्मी ने आने को कहा, तो पति प्यार से बोले अरे इतने सालों से प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि पत्नी के साथ गरबा खेलूंगा तो फिर नवरात्रि, दीवाली, भाईदूज पर कभी जा ही नहीं पायी। ऐसा नहीं है कि वह मायके ही नहीं गयीं। गयीं, लगभग हर साल गयीं पर कभी सावन में, तीज त्योहार में मायके नहीं पहुँच पाई I पहले सास ससुर फिर बच्चे, उनके स्कूल जिम्मेदारियां, सावन और त्योहार सपना बन कर रह गये। वह आज भी अपने बचपन के त्योहारों, गुड़िया, सुजिया, सहेलियों और झूले की पेंगो, गोवर्धन, अन्नकूट, भाईदूज आदि त्यौहारों को कितना याद करती हैं।
तभी उनके यहाँ काम करने वाली राधा ने आकर उनसे बोला, "जीजी मैं कल ना आऊँगी। स्थापना का पहला दिन है ना माई के घर जाऊँगी।"
ठीक है पर रुको, उन्होंने अंदर से लाकर एक साड़ी, चूड़ियों का डिब्बा, श्रृंगार का सामान उसे दिया। राधा बोली, "जीजी तुम कभी देना भूलती नहीं।" वह बोली, "तुम सभी मेरे लिए मातारानी का ही स्वरूप हो। तुम को अर्पण करती हूँ तो मन को संतोष होता है कि मातारानी ने ग्रहण कर लिया। अच्छा सुन ब्लाउज भी सिलवा दिया है। कल यही पहन कर पूजा करना और हाँ परसो समय से आ जाना क्योंकि मेरी बेटियां आने वाली है ना।" राधा खुशी से सिर हिलाते हुए चली गयी।
अब आप पूछोगे सरोजिनीजी को कितनी बेटियां हैं ? तो जवाब है बहुत सारी, संख्या रजिस्टर में लिखी होगी।
बात शुरू होती है, उस दिन, उस समय से जब एक दिन उन्होंने रास्ते पर जाते समय एक सामान बेचने वाली लड़की को देखा। उससे बातें की, उस लड़की के कपड़े पूरे खून से डूबे थे। जिसका शायद उसे एहसास ही नहीं था। उससे बात करने पर पता चला कि उसकी माँ मर चुकी है और बाप शराबी है। वह ममता के चलते उसे घर पर लेकर आई। उन्होनें सोचा था लड़की को दुनियादारी समझा कर, थोड़े माँ के कर्तव्य पूरे करके, उसके घर छोड़ देंगी। पर उससे तो ममता का ऐसा रिश्ता जुड़ गया कि उन्होंने उसे अपने साथ ही रख लिया। ऐसे करते-करते एक-एक करके बच्चियां आती गई। एक बार तो एक नवजात बच्ची को एक पत्र के साथ कोई औरत रख गई थी कि मैं जिस दलदल में हूँ अपनी बच्ची को मैं वहां नहीं रखना चाहती। आपके बारे में सुना है। आप संभाल लेंगी तो लड़की का जीवन बन जाएगा।
वैसे तो भगवान की कृपा से अच्छा खासा रुपया पैसा था और पति का सहयोग भी। पर बच्चियों की बढ़ती संख्या जिसमें जेल में पैदा हुई बच्चियां, जिनकी माँ अपराध के कारण जेल में बंद थी, वह भी शामिल थी। तो अब उन बच्चियों को अच्छी शिक्षा, अच्छा रहन-सहन देने के लिए उन्होंने लोगों से दान स्वीकार करना शुरू किया I बाद में जब उनकी बच्चियां बड़ी होकर अच्छी पोस्ट पर आयीं तो सरकार और उन बच्चियों ने भी सहयोग देना शुरू कर दिया।
इस घर की विशेष बात यह है कि यहाँ शादी करके जाने के बाद भी नवरात्रि में बच्चियों को आना ही पड़ता है। जिसे सब लड़कियां खुशी-खुशी स्वीकार करती है। सब कोशिश करती हैं वह सब पूरे नौ दिन खासतौर पर त्यौहार के दिन वह माँ के साथ ही रहे। कल कलश स्थापना है। सब बच्चियां महादुर्गा का पूजन करके उनसे अच्छे पति. . . जी नहीं अच्छे जीवन की कामना करेंगीं। इस तरह से यह सब बच्चियाँ मिलजुल कर नौ दिन माता की पूजा करेंगी गरबा खेलेंगी। अष्टमी को हवन के बाद एक दूसरे को रक्षासूत्र बांध कर उनके सबल और सक्षम बनने की कामना करेंगी। एक दूसरे की रक्षा वादा करेंगी।
सरोजिनी जी सब तैयारी देखती हुई और तैयारी करवाती हुई यह सोच कर मुस्कुरा रही थी कि भले ही पिछले तीस सालों से त्योहारों पर अपने मायके नहीं जा पायीं हैं पर ना जाने कितनी अनाथ बच्चियों के त्योहार और मायका उन्होंने खूबसूरत और यादगार बना दिया है।