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AMIT SAGAR

Tragedy

4.7  

AMIT SAGAR

Tragedy

लव की लत को लात

लव की लत को लात

8 mins
491


कल , परसो और आज में प्यार की परिभाषाओं में बहुत अचम्भित और विषेश बदलाव देखने को मिले हैं । लैला मजनू , हीर राँझा , शिरी फरहाद आदि की प्रेम कहानियाँ इतिहास के पन्नो में अमर हो चुकी हैं । इन प्रेम कहानियोँ का अन्त तो दुखदायी था, पर यह प्रेम कहानियाँ निहायती पाक और पवित्र थीं । कल तक लोग इन्हीं प्रेम कहानियोँ को फॉलो करते थे । पर आज  का प्यार तो पिज्जा , बर्गर , मोमोस और नुडल्स की तरह हो गया है , रोज नया मँगाओ , नया बनाओ , नया खाओ । 


पर मेरी प्रेम कहानी आज वाली नहीं थी , मेरी प्रेम कहानी तो कल के पवित्र प्यार को ही दर्शाती थी । जो कि आँखो की गहराइओं में गोते लगाने से शुरु हुई थी और वादो की वादियों पर चढ़ने के वाबजूद शादी की चाँदनी वाली झिलमिलाती रात ना देख पाई , वो प्रेम कहानी जाति बन्धन और अमिरी गरीबी की खाई में जा गिरी , और शायद उसका दम सा घुट गया था । कहानी तो खत्म हो गई थी पर यादों के तार कभी कभी दिल की धड़कनो को झटका सा दे देते थे । 


मेरी शादी कहीं ओर हो चुकी थी और उसकी भी , शादी के बाद मैं खुश था , और शायद वो भी खुश थी । आठ साल यूहीँ बीत गये थे , और इन आठ सालों में मुझे आठ बार भी उसकी याद नहीं आयी थी । पर आठ सालो वाद उससे फिर मेरी मुलाकत होगी इसका मूझे आभास ना था । एक परिचित की शादी में अचानक ही उससे मेरा मिलना किसी यादगार लम्हे से कम ना था । जब आँखो से आँखो का स्पर्श हुआ तो दिल धीमी धीमी यादों की जगमगाती रोशनी से जगमगाने लगा । पर तभी सात फेरों के समय पत्नी को दिये गये वचनों ने उस दिल के दरबाजे को बन्द कर दिया । दिल अब उन सात वचनों की कैद में था , पर प्रेमिका से किये हुऐ वादों की  यादे उस दिल के दरबाजे को जौर जौर से खटखटा रहीं थी , खटखटाहट इतनी तेज थी की सात फेरो के सात वचन अब टूटने की कगार पर थे , तभी मेरा चंचल मन उन यादो और वचनो की सुलाह के लिये बीच में कूद पड़ता है , और उन दोनो को समझाता है कि हे इश्क तेरे वादो और यादों की इन्तेहाँ , और रिश्तो के बन्धन की उम्मीद में से हार जीत का तभी पता चलेगा जब दोनों को आखिरी हद तक स्वतंत्र  छोड़ दिया जाये । प्यार इस शर्त से खुश था पर रिश्ता सर्दी की बारिश मे भीगे हुए अन्जाने से मुसाफिर कि तरह काँप रहा था ,  ठिठुर रहा था , पर अब चाहेँ कुछ भी हो शर्त तो मन्जूर करनी ही थी सो कर ली । 


मेरी जिन्दगी अब मुझसे ही दो तरफा गेम खेल ‌रही थी , दिल तराजू की तरह दो पलड़ो में बट गया था । एक पलड़े में पवित्र पत्नी का प्यार और बच्चो का बचपन था और दुसरी तरफ पहले प्यार का एहसास, शरीर की भूख और वासना से ज्यादा कुछ ना था । पर ना जाने क्यों फिर भी वासना वाला पलड़ा ही नीचे की ओर झुक रहा था । अपने पहले प्यार से बाते करने को दिल बैचेन हो रहा था , इन आठ सालो में जो कुछ भी हुआ उसके पल पल का जिक्र करने के लिये जुबाँ से निकलने वाले अल्फाज बाहर आने को बेकरार थे । और अब तो दिल वैसे भी स्वतंत्र था । दिल अब सिर्फ और सिर्फ अपने पहले प्यार के लिये धड़क रहा था , पर दिल की  धड़कनो पर अभी भी पत्नी और बच्चो का कब्जा बरकरार था । 


पर इन सभी चीजो को भूलकर मैंने उससे बातो का सिलसिला शुरु किया , अब जैंसा कि प्यार में होता है कुछ झूठा , कुछ सच्चा , कुछ दिखावटी , कुछ बनावटी दूध के उबाल की तरह जुबाँ से बाहर आने लगा । कुछ दैर बात करने के बाद उसने मुझे अपना फोन न० दिया और कहा कल बात करना । यह कहकर वो चली गयी । और मैं पगला अभी से ही कल का इन्तेजार करने लगा । 


खैर कल भी आ ही गया और फोन पर फिर से बातों का लम्बा दौर शुरु हो गया यह दौर तब तक चला जब तक मोबाइल की बेटरी का दम ना निकला । और एक दिन यूँ ही गुजर गया । अब मेरी आत्मा किसी ओर के पास थी और शरीर पत्नी के पास था , घर में‌ सबकुछ सूना उदास सा लगने लगा , बच्चो की हँसी और पत्नी की बाते अब नीरस ही लगती थीं । अब तो हर पल उसके फोन आने का इन्तेजार ही रहता था । उसका फोन आने पर फिर से वही बेमतलब और बेबुनयादी बाते शुरू हो जाती थी जो कि मुझे बहुत प्यारी लगती थी । सबकुछ जानते हुए भी मैं एक ऐंसे दलदल में घुँसता चला जा रहा था जिसमे मन के सिवा सबकुछ डूब चुका था । पर ना चाहकर भी वो दलदल मुझे गुलाबजल सा प्रतीत हो रहा था ।


मैं यह दोहरी जिन्दगी नहीं जीना चाहता था , पर यह लव की ऐसी लत थी जिससे पीछा छुड़ाना अब मुश्किल होता जा रहा था । प्यार की पहली इनिंग सामन्य सी थी , जिसमें एक तरफ प्रेमिका अपनी चुलबुली अदाओ की धीमी धीमी बॉलिंग करा रही थी , और हम उस पर बदमाशियों के चौके छक्के लगा रहे थे । पर अब दूसरी इनिंग मे ऐंसा नहीं है अब तो ऐसा लग रहा था जैंसे वक्त मेरी परिक्षा ले रहा है । अब मैं दो फुटबॉल खिलाडियों के बीच एक फुटबॉल सा बनकर रह गया हूँ जिसे घड़ी घड़ी ठोकर खाने के बाद भी ऊँचा-ऊँचा उछलना और कुदना पड़ रहा है । इस बनावटी और दिखावटी जिन्दगी से मन अब ऊबने लगा । बच्चो और पत्नी के मासूम चेहरे बार बार आँखो के सामने आकर फरियाद करते थे कि हमसे क्या खता हुई हे जो हमसे बैगानो सा व्यवहार करते हो । बच्चो के भविष्य के बारे में सोचकर दिल झन्ना उठता था , कि मेरे इस दोहरे रवैये से उन पर बुरा ही प्रभाव पड़ेगा ।  जो पलड़ा पहले प्रेमिका की तरफ झुका हुआ था , वो अब धीरे धीरे ऊपर उठने लगा और दुसरा पलड़ा पत्नी की तरफ झुकने लगा । 


हफ्ता भर पहले जिस प्रेमिका की बाते कोयल की कू कू लग रहीं थी वही अब कौए की काँये काँये लगने लगी । उसका बार बार फोन आना अब बैतुका सा लग रहा था । ऑफिस में , घर में , ऑटो में यहाँ तक कि खाना खाते वक्त भी उसके फोन आने लगे , जो अब मुझे फिजूल से लगते थे । दिल अब पछतावा कर रहा था कि आखिर क्यों मैंने यह रोग दुबारा पाल लिया । खैर बूरी तरह फँसने के बाद तो इन्सान को सबसे पहले भगवान की ही याद आती है , सो मैंने भी भगवान के सामने फरियादो की पीपनी बजानी शुरु कर दी , कि है भगवान अब किसी तरह से मुझे इस दोहरी जिन्दगी से निजात दिला दे । मैंने अपने परिवार को जोड़ने के लियें फरियाद की थी सो भगवान को तो सुनना ही था । 


अगले दिन ही मेरा एक बहुत पुराना दोस्त अपने छोटे भाई की शादी की दावत मुझे देने के लियें आया । हम दोनो दोस्तो में कुछ भी छुपा ना था , हम एक दुसरे के हर वो राज जानते थे जो गोपनीय होते हैं । बातो बातो में उसने मेरे पहले प्यार का जिक्र मुझसे छेड़ दिया , और बोला क्या शादी के बाद वो तुझे कभी मिली । मैंने अन्जान सा बनकर ना कह दिया । 


वो बोला - "अच्छा मुझे तो रोज मिलती है , कभी किसी लड़के के साथ कभी किसी लड़के के साथ । "


मैं उसके बारे में बुरा नही सुनना चाहता था । मैंने कहा - "अरे यार उसके भाई बगेराह होंगे ।"


वो बोला- "भाई नहीं है हमारे मोहल्ले के अवारा लड़के हैं , हमारे घर से दो गली छोड़कर ही तो उसका घर है । उसका पति बाहर काम करता है , और पति की गैर मौजुदगी में वो रंगरलियाँ मना रही हैं । और उसने मुझे उन लड़को के नाम भी गिनवा दिये जिनके साथ वो घूमती थी ।" 


इतना सुनकर दिल ऐसे टूटा जैंसे दिल पर एक साथ हजारो हथोड़ो की बरसात हुइ हो , कल मैंने भगवान से माँगा था कि हमे अलग कर दे पर यह तो ना माँगा था कि थप्पड़ मार कर अलग करना । दिल चाहकर टुटे या अन्जाने में पर दर्द उतना ही होता है । और कहते हैं कि दिल टुटने पर इन्सान एक शेर जरुर अर्ज करता है सो मैं भी कर रहा हूँ - 


जिसे हम समझते थे एक फूल पर बैठने वाली कोमल तितली 

वो निकली हजारो लोगो पर एक साथ गिरने वाली बिजली


खैर अब लव की लत को लात मारने का वक्त आ गया था । अगले दिन उसका फोन आया और हमैशा की तरह मीठि मीठि बातो का रस वो मुझ पर डालने लगी , पर उसे क्या पता था कि मुझे कल से लव वाला सुगर हो गया था । मैंने उससे कुछ लड़को के नाम गिनाकर पूँछा क्या तुम इन लड़को को जानती हो


वो बोली -" हाँ "


मैंने कहाँ - "कौन हैं वो ।"


वो बोली - "जो तुम हो । "


इतना सुनकर दिल की जमीन से दर्द के अंगारो का लावा निकलने लगा । माथा पीटने को दिवारे कम पड़ गई । मन दहाड़े मार- मार कर रो रहा था । दिमाग में उसके लियें अब ड्रम भर- भरकर गालियाँ आ रहीं थीं , पर वो गालियाँ भी उसके लियें कम पड़ रहीं थी । वो चुप थी , और मैं भी चुप था , मेरी आँखो से दो आँसू टपके । मन में तो बहुत बुरा- बुरा आ रहा था उसके लियें , पर अपने लव की लत को लात मारने के लियें मैंने कहा़- सुन वैश्या आज से अपने ग्राहको की लिस्ट में से मेरा नाम काट देना । इतना कहकर मैंने फिर कभी उसको फोन नहीं किया और ना ही उसका फोन उठाया । और अपनी दूसरी इनिंग को मैंने सस्ते में ही निबटा दिया । अब मैं अपनी फैमिली के साथ बहुत खुश हूँ । 



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