AMIT SAGAR

Tragedy

4.7  

AMIT SAGAR

Tragedy

तीसरी लहर

तीसरी लहर

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हमने खतरनाक वाइरस पर बनी अनेको फिल्मे देखी हैं, जिनमे दिखाया जाता है कि कैंसे कोई वाइरस इन्सान के अन्दर घुँसकर उसके प्राण ले लेता है। फिल्मो में दिखाया जाता है कि इन्सान जॉम्बी बनकर इन्सान को ही मार रहा होता है, फिल्मो में दहशत का इतना भयानक रूप देखकर मन में कई तरह के सवाल उठते थे, कि यह कैंसे सम्भव है कि एक ना दिखने वाला सुक्ष्म सा वाइरस हम इ‌न्सानो पर इतना भारी पड़ जाता हे कि हम उसके आगे लाचार नजर आते हैं । वैसे तो यह सब काल्पनिक फिल्मे होती है, पर चीन के इस वाइरस ने उन कल्पनाओं के मुँह पर ऐंसा तमाचा जड़ा कि हमारी धरती माँ के सीने की सूजन साल भर होने पर भी कम नही हो पा रही है । सबकुछ फिल्मो जैंसे ही तो लग रहा है, सामान्य सी चलने वाली जिन्दगी में अचानक से इतनी उथल - पुथल मच जाती है, जिसमे सबकुछ बिखर जाता है।

आज रविवार है और हर रविवार की तरह आज भी मैं अपने दोनो बच्चो को बाजार घुमाने ले गया। बाजार के कुछ लोगो से बच्चे इतने घुल मिल गये थे, जैंसे हम उनके ग्राहक नहीं सगे सम्बन्धी हों। गुब्बारे वाला बच्चो को देखते ही उनके लिये गुब्बारा हाथ मे लिये खड़ा हो जाता था।

टिक्की वाला भी बिना मिर्च वाली टिक्कियों के पत्ते हमे देखते ही बनाने लगता था, गन्ने के जूस वाला गन्ने को कोल्हू में‌ पेलने लगता, और सब्जी वाली अम्मा भी देखते ही बोल उठती थी बेटा आज गौबी ले जाना बहु को गौबी बहुत पसन्द है । उधर बाल काटने वाले चाचा भी हमैशा  बच्चो से ठिठोलियायी किया करते थे, बच्चो को देखते ही कहते थे, आओ बच्चो तुम्हारी दाड़ी बना देता हूँ। बच्चे शर्माकर मेरी कोलिया भर लेते थे। परिवार से दूर रहने पर भी इन बैगाने लोगो का प्यार अपनो की खुश्बु का एहसास दिलाता था। इनका व्यवहार और मीठे बोल किसी अम्रत रस से कम नहीं लगते थे। पर इस कोरोना काल के बाद आज बाजार आकर देखा तो उन रंग- बिरंगी गुब्बारो को पकड़े हुए हाथ आज बाजार में नजर ही नहीं आये।

उस टिक्की वाले की फीकी टिक्कियों की खुश्बु कहीं खो सी गयी थी। उस गन्ने के रस वाले कोल्हू के पास खुशनुमा दिलफैक चेहरे की जगह उसकी पत्नि का फरियादों और उदासी भरा चेहरा था। सब्जी वाली अम्मा का टोकरा भी आज कहीं छुपा बैठा था। और हमारे नाई चाचा की जगह आज उनका पन्द्राह साल का लड़का ग्राहको के आने का इन्तेजार कर रहा था।आज इस बाजार मे भीड़ तो थी ही ना थी पर फिर भी मुझे अनेको अपनो के चेहरे कहीं दीख ही नहीं पा रहे थे वो तो इस कोरना की आँधी में कहीं गुम से हो गये।

अब तो डर उस तीसरी लहर का है जिसके बारे में सुनकर दुनियाँ थरथरा रही है कपकँपा रही है। 


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