AMIT SAGAR

Abstract

4.7  

AMIT SAGAR

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भगवान भीग रहे थे

भगवान भीग रहे थे

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सात साल के राहूल को माँ ने हर वो बात सिखाना शुरू कर दिया था , जो आगे चलकर उसे एक अच्छा ईन्सान बनने में  सहायक हों , भगवान में आस्था , गरीबो की सहायता , सदाचारता , बड़ो की इज्जत करना , इसके अतिरिक्त हमारी भारतीय सभ्यता में और भी जो अच्छी आदते थीं वो सब। माँ का सोचना था कि बेटा पढ़-लिखकर डिप्टी कलैक्टर ना बने ना सही , डॉक्टर इंजीनियर ना बने ना सही , पर एक अच्छा और सच्चा इन्सान तो बन ही सकता है। राहुल का परिवार गरीब था , पर वो लोग अपनी गरीबी के दुखड़े रोते नहीं फिरते थे। तंगहाली फाकापरस्ती में भी उन्होने कभी भगवान की आस्था का दामन ना छोड़ा , राहुल को भी माँ की बातें अच्छे से समझ आती थी। एक बार जो माँ कोई बात सिखाती वो उसके दिमाग में ऐंसे बैठ जाती थी , जैंसे प्राचिन काल में ऋषिमुनि गुफाओं मे तपस्या करने के लिये घुँस जाते थे , कि एक बार जो घुँसे तो सौ साल बाद ही उ‌न गुफाओं से निकलते थे। 

राहुल एक बार माँ के साथ बाजार जा रहा था , रास्ते में उसे हनुमान जी की मुर्ती दिखी जो कि घर से कुछ ही दूरी पर सड़क के किनारे एक छोटे से पार्क में पूजा करने के लियें कुछ लोगो ने गाढ़ दी थी। मूर्ती के सर पर ना तो छत थी ना कोई पैड़ था , और ना ही मूर्ती के चारो ओर कोई दिवार थी। मंगल का दिन था एक लड़का वहाँ हुनुमान जी को पर्साद चढ़ाने आया था। उसने हनुमान जी के माथे पर टीका लगाया और फिर उनके मुख पर लड्डू का भोग लगा दिया। 

यह देखकर राहुल बोला - यह कौन हैं ? 

माँ बोली - बेटा यह बजरंग बली भगवान हैं। जो बुरे वक्त में हमैशा हमारी सहायता करते हैं। 

राहुल - माँ क्या बजरंग बली भगवान लड्डू खाते हैं ? 

माँ - हाँ बेटा सच्चे मन से इन्हे कोई कुछ खिलाता है तो जरूर खाते हैं। और बेटा जो झूठ बोलता है , बेईमानी करता है , कभी किसी के काम नहीं आता उसे यह सजा भी देते हैं। लेकिन यह बच्चो को माफ कर देते हैं और उनसे बहुत प्यार करते हैं। साथ ही यह बच्चो से दोस्ती करते हैं , और बच्चो के साथ खेलते भी हैं। 

राहुल - पर यह मेरे साथ तो कभी नहीं खेलते। 

माँ - खेलेंगे बेटा लेकिन तब जब तुम अच्छे अच्छे काम करोगे , किसी की मदद करोगे। 

राहुल को माँ की सारी बाते अच्छे से समझ आ गयीं थीं , और उसके दिमाग में यह बैठ गया कि भगवान इन्सानों की तरह ही होते हैं , जो खाते हैं पीते हैं और बच्चो से प्यार करते हैं।

पिछे से सत्ते नाम का आठ साल लड़का भी अपनी माँ के साथ बाजार जा रहा था , अजी जा क्या रहा था , माँ खीँच के ले जा रही थी। वो लगातार माँ से चीज के लिये पैसे माँग रहा था। माँ‌‌ भी लगातार बच्चे को डाटती हुई और भगवान पर लाछन लगाती हुई आगे बढ़ रही थी। 

माँ‌- इस बेरी भगवान ने भी ‌ना जाने कौन से जन्म काम बदला लिया है , जैंसा आदमी दिया है वैसी ही औलाद दी हैं। ‌नाकारा , नालायक। 

बजरंग बली की मूर्ती का जो द्रश्य राहुल ने देखा वही सत्ते ने भी देखा , और उसने माँ से पूँछा - 

सत्ते - माँ क्या भगवान लड्डू खाते हैं ? 

माँ - इस पत्थर की मूर्ती के दाँत है जो लड्डू चबा पाये , यह तो दुनिया वालो ने ढोंग रचा रखे है , गरीबो को लूटने खसोटने के , अरे यह सारे लड्डू तो चिटियोँ , मक्खियों और कीड़े कपाड़ो के ही नेगे लगेगें। गरीब भूँखा मर रहा हो पर उसको कोई गेँहू का एक दाना ने देगा और इस पत्थर के भगवान को तेल से तले और रस से भरे लड्डूओ का भोग हर मंगलवर को लगेगा। अरे भगवान होता तो क्या हमे इतने कष्ट देता। 

सत्ते ने देखा कि जिस आदमी ने भगवान को लड्डू का भोग लगाया था उसी ने जेब से एक रुपिया निकालकर वहाँ रखे एक छोटे से बोक्स में डाल दिया। सत्ते ने फिर माँ से पूँछा - 

सत्ते - माँ इस आदमी ने यह पैसे डिब्बे में क्यो डाले हैं ? 

माँ - हराम‌ की दौलत आ रही होगी घर में , या फिर किसी से लूटलाट करके लाया होगा यहाँ भगवान को हिस्सा देने आया है , रात को कोई इस जैंसा ही चोर चपाटा आयेगा और इसमे से‌ सारा पैसा निकालकर  ले जायेगा। 

माँ के इन कुवाक्यो में सत्ते को कुछ समझ आया और कुछ समझ नही आया , जो समझ में आया वो थी भगवान के प्रति घ्रणा , भविष्य के प्रति निराशा , समाज के प्रति बेरुखी , और साथ ही उसे दिखी खुद के लियें बेईमानी , चोरी , कट्टरपंथी और पाप के अँधरे कुए वाली दिशा। 

माँ ने सत्ते के सामने भगवान का जो बखान किया उसमें भगवान एक पत्थर के सिवा कुछ ना थे जो लोगो को मुर्ख बनाने के लिये यहाँ गाड़ दिये गये हैं। 


उधर राहुल और उसकी माँ दोनों बाजार से वापिस आ गये , और रोजाना की तरह खाना खा-पिकर सो गये। सुबाह चार बजे जोर की बारीस होने लगी , तेज बिजली की आवाज से राहुल की नीँद खुल गयी। मम्मी पापा दोनो गहरी नींद मे सो रहे थे। राहुल को माँ की सिखाई हुई सुबाह वाली बाते याद आ रहीं थी , कि कैंसे सुबाह एक आदमी भगवान को लड्डुओ का भोग लगा रहा था। एकाएक उसे याद आया अरे भगवा‌न के सिर पर छत तो थी ही नहीं , वो तो ऐंसी वारिस में भीग रहे होंगे , ठिठुर रहे होंगे। राहुल माता पिता की नींद खराब नहीं करना चाहता था , क्योकि यह शिष्टाचार माँ ने राहुल को सिखा रखा था। वो दबे पाँव बिस्तर से उठा, अरगनी से छतरी उतारी और बजरंग बली की मुर्ती के पास जाकर छतरी खोलकर वहीँ बैठ गया। कुछ दैर बाद वहाँ सत्ते आया और बोला - 

सत्ते - ऐ , तु इस पत्थर को छतरी क्यो उड़ा रहा है ? 

राहुल - यह पत्थर नही़ बजरंग बली भगवान है। 

सत्ते - कौन कहता है ? 

राहुल - मेरी माँ कहती है। 

सत्ते - पर मेरी माँ तो कहती है यह सिर्फ एक पत्थर है। 

राहुल- क्या तुम यहाँ भगवान को लड्डू खिलाने आये हो ? 

सत्ते - मैं यहाँ इस डिब्बे से पैसे निकालने आया हूँ। 

राहुल - यह पैसे तुम्हारे हैं ? 

सत्ते - नहीं , माँ कहती है पत्थर के दाँत नहीं होते वो चीज नहीं खा सकता , पर मेरे दाँत तो हैं , इसलिये मैं इन पैसो की चीज खा लुंगा। 

राहल - भगवान के पैंसे मत लो भगवान तुम्हे सजा देंगे। 

सत्ते - मेरी माँ भी मुझे रोज सजा देती है। अगर भगवान मुझे मारेंगे तो में सह लुंगा। 

राहुल - मैं तुम्हे पैसे नहीं ले जाने दुंगा। 

यह कहता हुआ राहुल सत्ते के पास जाकर उससे डिब्बा छीन लेता है , पर सत्ते राहुल को धक्का देकर पैसो का डिब्बा लेकर भाग जाता है। 

उधर राहुल के माता पिता की आँख भी खुल जाती है , वो राहुल को अपने पास ना पाकर घबरा जाते हैं , ढूडंते - ढूडंते वो राहुल के पास पहुँच जाते है, राहुल बजरंग बली भगवान के पास छतरी खोले बैठा रो रहा था। सत्ते के धक्के से गिरकर उसके कपड़े मिट्टी में सन गये थे। 

माँ‌ ने वजह पूँछी तो राहुल ने बताया कि माँ मैं तो भगवान के लियें छतरी लेकर आया था , मुझे डर लग रहा था कहीं भगवान भीग ना जायें। पर एक लड़का यहाँ आया और वो भगवान के सारे पैसे लेकर और मुझे धक्का देकर भाग गया। राहुल की माँ उसके मन में भ्रम पैदा नहीं करना चाहती थी। उसने कहा - बेटा वो लड़का भगवान के घर पैसा लेकर गया है , और वो भगवान से तुम्हारी तारीफ कर रहा था। वो कह रहा था , राहुल बहुत होशियार और बहादुर है , वो बड़ा होकर पुलिस बनेगा। 

पुलिस का नाम सुनकर राहुल खिलखिलाकर हँसने लगा। और वो लोग घर चले गये। 

दोस्तो एक सामान गरीब होने पर भी जहाँ राहुल माँ से सच्चाई और सभ्यता के सबक सीख रहा था , वहीँ सत्ते माँ से बुराई की बाते और बद्तीमिजीयोँ का ज्ञान ले रहा था।  बुरे हालात नहीं बुरे अकलात होतें है जो एक जैंसी स्थितियाँ होने पर भी विपरित परिस्थितियाँ पैदा कर देते हैं। 



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