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AMIT SAGAR

Abstract

4.7  

AMIT SAGAR

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लव के कीड़े

लव के कीड़े

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332


मेरा नाम‌ रामप्रासाद है, और मेरी उम्र 21 वर्ष हो चली है । युवा होने के कारण मेरे मन के बगिचे मे नित नई कलियाँ खिल रही थी, और हर कली को देखकर दिल उससे प्यार कर बैठता था। पर रामप्रसाद नाम होने के कारण कोई लड़की मुझे लव वाली फीलिंग से देखती ही ना थी। रॉकी, लक्की, अक्की, विक्की जैंसे नाम सुनकर लड़कियों के दिल की घण्टियाँ बजने लगती हैं, पर मेरा नाम सुनकर हर लड़की के मन में सिर्फ धूप और अगरवत्ती ही जलती थी । ऊपर से पिताजी मुझे कपड़े भी मेरे नाम की छवी के अनुसार ही लाकर देते थे। उन कपड़ो पहनकर मैं ड्यूटी पर जाता हूँ तो ऐंसा लगता है जैंसे मैं किसी प्राइमरी स्कूल का एग्जाम लेने जा रहा हूँ। मैंने इसी वर्ष ग्रेजुएशन किया है, और इसी वर्ष ईत्तेफाकन मेरी एक प्राईवेट कम्पनी में कम्युटर ऑपरेटर की जॉब भी लग गयी। लोग हर नये काम की शुरुआत मन में कुछ नया सोचकर करते है, और मेरे मन में भी कुछ नया ही चल रहा था। लोग माता पिता के पाँव छूते हैं, और भगवान से प्रार्थना करते हैं, कि मेरी खूब तरक्की हो पर मैंने तो आज अपने मन के मन्दिर में बैठे मोहब्बत के खुदा की दिल की घण्टी को बजाया और अपने लियें एक अच्छी सी राधा के मिलने की प्रार्थना की, वैसे तो मेरा नाम राम है, पर हम हिन्दुस्तानियों को लव के लियें तो राधा ही भाती है।

मेरे दिमाग के बक्से में आज ढैरो लव की मछलियाँ पकड़ने वाले नजरों के जाल थे । इस इश्क के समुन्दर में मुझे आज जहाँ भी कोई लव की मछली दिखेगी वहीं अपना नजरो का जाल फैँककर उसे फाँस लुंगा, और यही सोचकर मैं पहले दिन जॉब पर गया था। घर से निकलते ही, दूसरी गली के तीसरे घर में एक लड़की थी, जो की अपने घर की पहरी पर बैठी थी, मैंने सबसे पहले अपनी नजरों का जाल‌ उसी लड़की पर फैंका। मौहल्ले के कई लड़के उस पर फिदा थे, पर वो सारे के सारे गधे थे, और उनमें से किसी भी गधे को उसने घास नहीं डाली। आज मेरा नम्बर था, पर मै गधा नहीं भई मैं तो अभी आशिक हूँ गधा तो तब बनुंगा जब वो मुझे भी घास नहीं डालेगी। मै उससे अभी पच्चीस कदम दूर था, और उतनी दूर से ही मैंने उसे ताड़ना शुरू कर दिया। कुछ पलो में उसकी निगाह मुझ पर पड़ी, उसने मुझे निगाह भर कर देखा, और फिर निगाह नीचे कर ली, पर मैंने उसके चेहरे से अपनी नजरो का जाल नहीं हटाया, उसने फिर मेरी तरफ देखा और निगाह नीचे कर ली, इन पच्चीस कदमों की दूरी पर ऐंसा चार बार हुआ। मुझे अब पाँचवी बार का ईन्तेजार था, पर पाँचवी बार जब उसने मुझे देखा तो उसके चेहरे के एक्सप्रेसन बदले हुए थे। मै गली पार कर चुका था, और इस बदले हुए एक्सप्रेसन का रिजल्ट मुझे कल मिलने वाला था, कि मेरे जाल में लड़की फँसी या मुझे भी उसने गधा ही समझ लिया है। वहाँ से निकलकर मैं बस स्टेशन जाने के लियें ऑटो में बैठ गया, ऑटो में भी मेरे सामने वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी, उस लड़की को देखकर दिल हिचकौले खाने लगा। मैंने उस पर भी अपनी नजरो का जाल फैँक दिया, उसने मुझे नॉटिस तो किया पर कोई खास तवज्जो ना दी, पर एक नजर में लड़कियाँ कहाँ तवज्जो देती हैं, मैं उसे लगातर घूर रहा था, और वो भी बार बार मुझे देखती और फिर अपनी ही नजरों में खो जाती। ऐंसा पाँच मिनट तक चला और पाँच मिनट के बाद उसने अपने बैग से फोन निकाला और सायद अपनी किसी सहेली को फोन किया। वो फोन पर बात कर रही थी, और कह रही थी - 

हाँ वैसे तो यहाँ सब ठीक ठाक है पर लगता है कुछ बैगेरत लड़को को भगवान ने शक्ल तो ईन्सानो की दे दी पर आँखे गिद्ध की, और जीव कुत्तो की लगाकर भेजा है, और भगवान ने उनसे कहा भी होगा कि इस जीव का और आँखो का भरपूर ईश्तेमाल करना, जहाँ भी कोई लड़की दीख जाये उसे गिद्ध की निगाह से देखना, और कुत्तो की तरह जीव से लार टपकाना। उसके यह शब्द सुनकर मुझे थोड़ी शर्मिन्दगी हुई और मैंने उसे घूरना बन्द कर दिया। पर उसके लानतो भरे शब्दो का मुझपर कुछ दैर ही असर रहा, क्योकि भईया किसी का प्यार पा‌ना है तो इन सारे शब्दो को सुनने की आदत तो डालनी ही होगी। कुछ ही दैर में मेरा स्टॉप भी आ गया, और मैं ऑटो से उतरकर बस में बैठ गया, लगता हे मेरी किश्मत भी आज मुझपर मेहरबान थी, बस में भी मेरी बगल वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी। अबकी बार मैनें उस पर नजरो का  जाल ना फैँककर अपने शरीर के स्पर्श का सहारा लिया, मैंने अपनी टाँग से उसकी टाँग को टच किया। फिर मैंने खिड़की देखने के बहाने उसके चेहरे को देखा तो उसके चेहरे के हाव भाव नॉर्मल थे। दूसरी बार मैंने अपने कन्धे से उसके कन्धे को टच किया। उसने अब भी कोई रिसपॉन्स ना दिया। मैंने सोचा सायद इसे अच्छा लग रहा है , मैं अब बार बार कभी अपने कन्धे से तो कभी अपने घुटने से तो कभी अपनी कोहनी से उसे टच कर रहा था। उसने मेरी इस हरकत पर कोई एतराज ना जताया। मुझे लगा कि इसके दिल में भी वही हलचल हो रही है जो मेरे दिल में हो रही है। कुछ दैर बाद उसने मुझसे कहा कि क्या आप अपने कान को मेरे नजदीक लायेंगे मुझे कुछ कहना है, मैंने खुशी खुशी उसकी तरफ कान कर दिया । उसने मुझसे धीरे से कहा - यह हरकत जो आप मेरे साथ कर रहे हो क्या अपनी बहन के साथ भी करते हो, हर लड़की इन बाह्मयाद हरकतो से नहीं फँसती है, लड़कियोँ को प्यार भरी बाते करने वाले लड़के पसन्द आते हैं, यह बैतुकी हरकत तो तुम से बेहतर कोई गली का खुजली वाला कुत्ता भी कर सकता हैं, पर लड़कीयाँ उन खुजली वाले कुत्तो से प्यार तो नहीं कर सकती, और हाँ मै चाहती तो एक आवाज लगाकर तुम्हारे इश्क का भूत यहीँ उतरवा सकती थी, पर तुम्हारा बिगड़ा हुआ नक्शा देखकर तुमसे ज्यादा दर्द सायद तुम्हारी माँ को होगा इसलियें तुम्हे छोड़ रही हूँ, आगे से सोच समझकर किसी के साथ यह हरकत करना मेरी तरह हर लड़की शरीफ नहीं होती। इतना कहकर वो लड़

की बस से उतर गयी। पर उसकी बस मुझे एक ही बात समझ में आयी कि लड़की को टच नहीं करना चाहियें, उसकी जगह उससे प्यार भरी बाते करनी चाहियें। कुछ दैर बाद मैं भी बस से उतरकर अपने ऑफिस पहुँच गया। और वहाँ जाकर देखा तो ऑफिस के रिशेप्सन पर भी एक लड़की ही बैठी हुुई थी। अबकी बार मैंने उस पर ना तो नजरो का जाल फैँका और ना ही स्पर्श का जाल फैँका बल्कि बस वाली लड़की की बात को ध्यान में रखकर मैंने अबकि बार लड़की पर मीठी मीठी बातो का शहद फैँका।

मैने उससे कहा - मैडम मैंने आज ही यहाँ ज्वाइनिंग की है, क्या मै आपसे पूँछ सकता हूँ कि आप कहाँ रहती हैं।

लड़की थी हरयाणवी वो अपनी कड़क आवाज में बोली - क्यूँ मने शाम को घर छोड़ने अवेगा के, या फिर तू मने म्हारे घर के सामने वाली चाय की दुकान पर कुल्हड़ वाली चाय पियावेगा। पहले मने म्हारे घर का पता पूँछने का मतलब बतला दे फिर मैं थारे को खुद अपने घर ले जाऊगीं।

मैंने कहाँ - अरे मैं तो बस यूँ ही प्यार से पूँछ रहा था।

वो बोली- प्यार, प्यार का ट्यूशन तो म्हारे दो भाई पढ़ावे हैं तने पढ़ना तो हो बता दे थारा एदमिशन बिना फीस के ही करवा दूँगी, और म्हारे भाईयो से पढ़कर तू सीधा प्रेमनगर का डिप्टी - कलैक्टर बनजावेगा, बोल बात करुँ अपने भाईयों से।

इस हरयाणवी लड़की की बात सुनकर मुझे उस बस वाली लड़की की बात याद आ गयी कि हर लड़की शरीफ नहीं होती, मैं नौकरी खोना नहीं चाहता था, मैंने बात को रफा दफा करने के लियें अपना मिजाज बदला और उससे कहा - अरे बहन जी आप तो बुरा मान गयी।

वो बोली - क्यूँ म्हारी चटपटी बात सुनकर थारे को बहन याद आ गयी। पर तू डर मत मैं यहाँ शिकयत सुनने के लियें बैठी हूँ, करने के लियें नहीं, तू तो आज का पहला है, अभी शाम तक थारे जैंसे पचास और आवेंगे। अभी शराफत की कमीज पहन के ऑफिस में जा,और बाई तरफ के तीसरे कमप्युटर सेट पर जाकर बैठ जा।

उसकी बात सूनकर मैं चुपचाप वहाँ से खिसक लिया, भाई लड़कियाँ हरी मिर्च होती है ऐंसा सुना तो बहुत बार था, पर देखा पहली बार था। ऑफिस मे घुँसा तो वहाँ भी मेरी बगल वाली सीट पर एक लड़की ही बैठी थी। उस लड़की को देखकर मैंने सबसे पहले सीधे भगवान से बात की और उन से पूँछा कि है भगवान आप चाहते क्या हो, सुबाह से जहाँ जा रहा हूँ वहाँ लड़कियाँ मिल रही हैं, पर उस लड़की से मुझे कब मिलाओगे हो मेरा दिल ले मुझे दिल दे, या फिर आज तुम्हे कोई नहीं मिला तो तुम मेरे साथ गेम खेल रहे हो। बाकी लड़कियों की तरह उस लड़की को देखकर भी मेरा मन खुश हुअा, मेरे सारे जाल खत्म हो चुके थे, अब तो बस एक ही जाल बचा था जिसको हम आशा कहते हैं , जिसमे हमें इन्तेजार करना पड़ता है कि अगर लड़की खुद हमें लाईन दे तो हमे अपने इजहार का इन्जन उस लाइन पर दौड़ा देना चाहियें । मै चूपचाप बिना किसी हरकत के उसकी लाइन का इन्तेजार करने लगा, इस बीच कभी कभी वो मुझे देख रही थी, और कभी कभी मैं भी उसे देख रहा था। तीन घन्टे हो गये थे हमे साथ में काम करते हुए तीन घन्टे बाद उसने मुझसे कहा - क्या वो पास वाली फाईल पास करोगे, मैने कहा हाँ क्यो नहीं।

फिर मैने उससे पूँछा - बॉस लोग कभी आयेंगे ?

वो बोली - वो लोग तो आज नहीं आयेंगे, आपको कोई काम है तो मुझे बता दिजिए।

मैं फिर से अपनी औकात पर आ गया, क्योकि आज हर हाल मैं मुझे किसी एक लड़की को फसाँना था। मैंने उससे चिकनी चुपरी बाते करनी शुरु कर दी। वो भी लगातार मेरी हर बात का जवाब दे रही थी। मैने मन ही मन मान लिया कि यह लड़की तो मेरे जाल ‌में फँसी ही समझो, चलो भगवान ने मेरी प्रार्थनाओ की लाज रख ली। अब मैं टाईम बर्बाद नहीं करना चाहता था, वक्त की नजाकत को देखते हुए मैने अपने मतलब की बात करना बेहतर समझा।

मैंने उससे पूँछा - आज शाम को आप क्या कर रही हो।

वो बोली - आज शाम को पहले मैं अपने ब्वायफ्रेण्ड के साथ मार्किट से कपड़े खरीदने जाउगीं फिर उसके बाद वो मुझे पिक्चर दिखाने ले जायेगा, और उसके बाद वो मुझे अन्धेरी गलियोँ की सैर करवायेगा।

उसकी बात सुनकर मैं स्तब्ध रह गया, मैंने आज तक इतनी बैबाक लड़की नहीं देखी। साथ ही उसके ब्वायफ्रेण्ड के बारे में जानकर तो मैं शौक्ड ही हो गया।

मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर वो बोली क्या हुआ झटका लगा ना, तुम जैंसे लड़के हम लड़कियों से यही उम्मीद रखते हो ना, कि हम ऐंसी होंगी हम वैसी होंगी। मिस्टर , हम लड़कियाँ जॉब इसलिये करने आती है कि हम अपने परिवार का हाथ बटा सकें अपने पति का हाथ बटा सकें, लड़कियाँ अपनी ईज्जत आबरू निलाम करने नहीं आती। लड़कियों को खेलने की चीज समझना छोड़ दो मिस्टर। यह प्यार व्यार के चक्कर किताबो और कहानियों में ही अच्छे लगते हैं। हर लड़की को इसका शौक नही होता। पर हर लड़के को इसका शौक जरूर होता है। इन सब चीजो को छोड़कर अपने क‌ाम पर ध्यान दोगे तो ज्यादा बेहतर होगा।

इतना कहकर वो चूप हो गयी। अब तक मेरे लव के सारे दरवाजे बन्द हो चुके थे, बस एक मौहल्ले वाली लड़की का रिजल्ट आना बाकी था। मैं ड्युटी ऑफ करके घर गया तो दरवाजे पर ही माँ और पिताजी खड़े थे, मुझे देखते ही पिताजी की भोँहे ऊपर तन गयीं । जैंसे ही मैं उनके पास गया उन्होने दो जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर रख दिये, और कहा समझ गया यह थप्पड़ क्यों पड़े हैं। मैं बिना कुछ कहे सुने चुपचाप अन्दर चला गया। साथ ही मैं यह भी समझ चुका था कि यह मेरी सुबाह सबसे पहले वाली परिक्षा का रिजल्ट था, जो कल आने वाला था, पर आज ही आ गया।

मेरा नाम तो रामप्रसाद था, पर मेरी आज की सारी हरकते रावण वाली थी। पर साथ आज पूरे दिन लड़कियों की लानते और शर्मिन्दगी भरी बाते सुनकर मेरे दिल में छिपे सारे लव के कीड़े मर ‌चुके थे।


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