AMIT SAGAR

Inspirational

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कौहरा और ट्राफिक नियम

कौहरा और ट्राफिक नियम

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मेरा नाम लखवीर है, दस साल पहले तक मैं गाँव में रहता था, पर शादी के बाद मेरी पत्नी को गाँव भाया ही नहीं, वो शहर की रहने वाली थी , इसलियें उसे गाँव के टिमटिमाते जुगनूओ की शाम से बैहतर शहर की झिलमिलाती और जगमगाती राते पसन्द  आती थीं। उसे गाँव में प्रभात की शुद्ध हवा और सरल व्यवहार वाले सज्जनो से बेहतर शहर की धुऐं धफाड़े वाली दुषित वायु, बनावटी और दिखावटी लोग पसन्द आते थे। उसके रंग ढंग और चाल ढाल घर के लोगो कें साथ - साथ गाँव के लोगो को भी नही़ भाते थे, पर घर वालो ने और गाँव वालो ने उसके साथ सात फेरे नहीं लिये थे, उसकी माँग में सिन्दूर मैंने भरा था, और उसके साथ जीवन निबाह भी मुझे ही करना था, इसलिये मुझे वो हर रुप हर रंग में अच्छी लगती थी। बी, ए, पास है, खूबसूरत है, खाना बनाना जानती है। इसके अलावा मुझे और क्या चाहियें। हाँ थोडी़ समझ कम है, पर ज्यों ज्यो उमर बढ़ैगी, बच्चे होंगे, ग्रहस्थी को सभाँलेगी वैसे वैसे समझ भी अपने अाप आ ही जायेगी। पर घर वालो और गाँव वालो को तो मानों आज ही उसे समझदारी का नेशनल अवार्ड राष्टपति के हाथो दिलबाना था। जो समझ अपनी पत्नी के लियें मै रखता था वो घर वालो को समझाना मुश्किल था। पत्नी की नासमझी और घर वालो की जिद की वजह से घर मे आये दिन कलह रहने लगी, और इसी घर की कलह और क्लेश से बचने के लियें मुझे अपनी पत्नी के साथ गाँव से शहर आना पड़ा।

शहर आकर सबसे‌ पहले मुझे एक अच्छी नौकरी ढूंडनी थी, कई दिन हाथ पैर मारने के बाद मुझे गार्ड की नाईट ड्यूटी मिल गयी, और पिछले दस सालो से में वही नौकरी कर रहा हूँ। इन दस सालों में मुझे कई बार बहुत विचित्र विचित्र परेशानियोँ का सामना करना पड़ा। जिसमें से मुझे वो सर्द कौहरे वाली रात कभी नहीं भूलती जब मैं आधी रात को घर से ड्यूटी जा रहा था। पिछले दस सालों मे मैंने गाँव से शहर आकर कुछ खरीदा था, तो वो थी ड्यूटी जाने के लियें मेरी साइकिल, और रोजाना की तरह उस दिन भी मैं उसी साईकिल पर ड्यूटी जा रहा था। ठन्ड अपने रुद्र रूप में थी, जो कि लोगो को घर से बाहर ना निकलने की कस्मे खाने पर मजबूर कर रही थी। पर यह कस्मे निठल्ले और हरामखौर लोग ही खाते हैं , जिन्हे अपने बीवी बच्चो से प्यार होता है उनके लिये हर मौसम सुहावना ही होता है। इस कड़कड़ाती ठन्ड को तो मैं सहन कर रहा था, पर यह जो कौहरा था उसने मुझे आज अन्धा सा बना दिया । आज मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि मैं बीच सड़क पर चल रहा  हूँ या फिर साईड में चल रहा  हूँ। इस घनघौर अन्धेरे में मुझे तो आज ऐसा लग रहा था जैंसे इस कालीकलूटी रात ने़ गोरा होने के लियें अपने चेहरे पर इस सफैद कौहरे का पऊडर मल‌ लिया हो। पिछे से पीँ पीँ की आवाज करती हुई कोई गाडी़ अाती थी तो मुझै ऐंसा लगता था जैंसे व्भैँ व्भैँ करता हुआ यमराज का वाहन आ रहा हो।

मेरा मन भी आज कन्फयूज हो रहा था कि इतने कौहरे मैं साईकिल आँखे खौलकर चलाऊ या फिर बन्द करके क्योकि दौनो ही सूरत में मुझे कुछ भी नहीं दीख रहा था। मैंने सबकुछ भगवान पर छोड़ दिया और अपनी आखोँ मे बच्चो और पत्नी की तस्वी्र लियें आगे बढ़ता गया। बीच बीच में अपने गाँव की याद भी मेरे मन का दरवाजा खटखटा देती थी, जिसमे मुझे माँ, पिताजी, भाई,बहन और गाँव में रहने वाले मेरे बचपन के मित्रो की तस्वीरे भी धूल के कणों के माफिक मेरी आँखो में आती और यादो की चुभन पैदा करके चली जाती।मैं उन यादो में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं रहा कि मैं बीच सड़क पर साइकिल से ड्यूटी जा रहा हूँ । इस समय मैंने ट्राफिक नियम के सारे नियमों और कायदे कानूनो को ताक पर रख दिया था। मुझे ना तो कुछ सुनाई दे रहा था और ना ही कुछ दिखाई दे रहा था, ऐंसा लग रहा था जैंसे मुझ पर मानो आज यादो की अफीम का कुछ ज्यादा ही नशा चड़ गया हो। तभी अचानक एक गाड़ी से निकला तीर सामान हॉर्न मेरी यादो के सी‌ेने में जा घुँसा और और एकाएक उन यादों का दम निकल गया। इससे पहले कि मैं जागती आखौँ की सपनो की नीँद से जागता और अपना सारा ध्यान अपनी साइकिल और सड़क के कौहरे पर लगाता वो गाड़ी वाला मुझे ठोककर चला गया, उस रात के हादसे में मुझे चोट तो छोटी सी ही आयी पर सबक बहुत बड़ा मिला कि भैया रात हो या दिन भीड़ हो या सन्नाटा हमे हमैशा सभी ट्राफिक नियमों का पालन करना चाहियें।


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