कुछ पल
कुछ पल
प्यार ना कभी जीता है न कभी मरता है ये तो ज़िंदगी के साथ चलता ही रहता है । हाँ कभी कभी प्यार हमपर जादू कर देता है और कभी कभी हम इस जादू को पहचान नहीं पाते। वैसे हम इसे पहचान भी ले तो कुछ कर नहीं सकते । क्योकि जब ये होता है तो पता सब होता है दिखाई सब देता है पर फिर भी एक बूत की तरह हम सब देखते रहते है और प्यार से खुद को बचा नहीं पाते। दोस्त जब ये होना होता है न, तो होकर ही रहता है।
ऐसे ही बस में बैठा एक किताब पढ़ रहा था साथ में कब एक लड़की आकर बैठ गई पता ही नहीं चला। बैठी लड़की ने किताब पर ही नोक किया और मैंने जैसे ही किताब अपनी आँखों से हटा कर उसे देख तो लगा की अप्सरा ज़मीं पर उतर आई है मैंटक उसे देखता ही रह गया।
लड़की: सर, आप ये किताब थोड़ा धीरे धीरे मन में पढ़ सकते है क्या ? मैं इम्तिहान देने जा रही हूँ और मुझे अपनी बुक के कुछ जरुरी सवाल के जवाब याद करने है।( रविशंकर उस लड़की को देखता ही रह गया और जवाब देते हुए कहा )
रविशंकर: हाँ, जी बिलकुल, क्यों नहीं मैं अपने मुँह पर ताला लगा लेता हूँ आप बिलकुल आराम से अपनी इम्तिहान की किताब पढ़िए।
( कहकर रविशंकर अपनी किताब बंद करके बिलकुल कमर सीधी करके बैठ गया जैसे दुनियां का सबसे अच्छा इंसान वही है एक एकदम शांत )
( रविशंकर बार बार नज़र चुराकर उस लड़की को देखता और फिर सीधा बैठ जाता , पर आदत से मज़बूर रविशंकर से रहा नहीं गया और पूछ लिया। रविशंकर :जी, मेरा नाम रविशंकर है अगर आप बुरा ना माने तो आपका नाम ?
( लड़की ने एक बार रविशंकर को घुर्रा और किताब के पन्ने पलटते हुए बोली। )
कीर्ति : जी, कीर्ति और सिर्फ कीर्ति ही है मेरा नाम।
( रविशंकर समझ गया की आगे बात करना बेकार है इसलिए सिर्फ देखकर ही गुज़ारा किया जाये । तो बेचारा उसे देखता ही रहा और कीर्ति भी अपनी किताब में मशरूफ रही और बस स्टॉप आ गया। )
कीर्ति : वो जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद , आपको मेरी वजह से कोई परेशानी हुई हो तो माफ़ कीजियेगा।
रविशंकर : जी, ऐसी कोई बात नहीं है मैंने कोण सा इंतिहान देना था।
( दोनों बात करते करते बस से उतर जाते है )
कीर्ति : मुझे लगता है आप मेरे सेंटर ही जा रहे है।
( रविशंकर ने एक बार बस की तरफ देखा और बोला )
रविशंकर : जी मैं तो आपसे बात करते करते ही उतर आया।
कीर्ति : तो जाइये आप, आपकी बस निकल जाएगी।
( रविशंकर ने एक बार कीर्ति की आँखों में देखा और कुछ पलों के लिए देखता ही रहा और मुड़कर चल दिया और बस की सीढ़ियों पर बस का डंडा पकडे कीर्ति की तरफ देखता रहा । कीर्ति भी कुछ दूर जाकर मुड़ी जैसे ही कीर्ति मुड़ी रविशंकर ने इशारे से कीर्ति का नंबर माँगा। कीर्ति ने पहले कॉपी पर हवा में ही नंबर लिखकर बताया पर रविशनकर को कुछ समझ नहीं आया उसने इशारा कियारविशनकर : नहीं समझ आया
( कीर्ति अपने बेग में लिखने के लिए पैन खोजने लगी, पैन खोजने में कुछ पल ही लगे होंगे और ऊपर मुँह करके देखा तो बस निकल गई थी और मोड़ भी मुड़ गई थी तो कीर्ति को बस भी दिखाई नहीं दी दोनों अपनी अपनी जगह बुत से बने रह गए। ) ( कीर्ति ने पेन को होठों के निचे दबाया और अपने सेंटर की और बार बार पीछे मुड़कर देखती हुई चली गई उधर रविशंकर भी बस को रोकने के लिए हाथ मारता रह गया और बस की सीढ़ियों में ही बैठ गया। )
( दिन गुज़रे महीने चार साल हो गए फिर एक दिन। एक पिक्चर हॉल की लाइन में एक आदमी से प्राथना कर रहा था )
रविशंकर : भाई साहेब मेरे भी दो टिकट ले दो ।
( आदमी ने गुस्से में लाइन छोड़ दी और रविशंकर को ही लाइन में घुसाते हुए बोला। )
आदमी : लो भाई तुम ही लग जाओ लाइन में मुझे नहीं देखनी ये पिक्चर।
रविशंकर : मैडम मेरी भी दो टिकट ले दीजिये ।
( भीड़ की वजह से बहुत शोर था और सब बाहर परेशान से नज़र आ रहे थे। लड़की ने बड़े ही परेशान चेहरे से पीछे मुड़कर कहकीर्ति : आप ही लग जाओ लाइन में , अरे आप रविशंकर जी।
(रविशंकर तो जैसे ख़ुशी के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। बस आप ,, आप आप तो। .. तभी भीड़ ने गुस्सा दिखया अरे भाई ये जान पहचान बाहर आकर कर लो। दोनों भीड़ से बहार आ गये। रविशंकर : आपका एग्जाम कैसा रहा।
कीर्ति : बस ऐसा ही रहा कुछ खास नहीं।
( दोनों एक दूसरे से ऐसे बात कर रहे थे जैसे रविशंकर साहेब कीर्ति के पेपर खुद दिलवाने गए हो। )
रविशंकर ; ऐसा खास क्यों नहीं। मैंने तो आपको परेशान भी नहीं किया। फिर भी अच्छा नहीं हुआ।
कीर्ति : बस ऐसे ही। पता नहीं इतनी तैयारी कर के गई थी और एग्जाम में सब भूल गई।
( दोनों ने अपने हाथों की तरफ देखा और फिर ज़ोर से हँसने लगे और एक साथ बोले।
दोनों : भूल तो हम टिकट लेना भी गए है।।
( और हँसने लगे और अपने अपने पैसे अपनी पॉकेट में डाल लिए )
कीर्ति : तुम्हे पिक्टर नहीं देखनी क्या ?
रविशंकर : देखनी तो थी पर अब सोचता हूँ रहने दूँ।
कीर्ति : तुम किसके साथ आये हो पिक्टर देखने।
रविशनकर : ( रविशंकर थोड़ा मुस्कुराते हुए ) मेरी कोई गर्ल फ्रेंड तो है नहीं ! तो एक दोस्त के साथ ही आया था सोचा पहले टिकट ले लू , फिर बुला लूँगा पास ही है घर उसका। और तुम ?
कीर्ति : ( कीर्ति मुस्कुराते हुए ) मेरा भी कोई बॉय फ्रेंड नहीं है। मैं अपने भाई के साथ आई थी।
(दोनों ने एक दूसरे को बता दिया के अभी तक वो एक दूसरे की वो एक मुलाक़ात भूल नहीं पाए है।)
कीर्ति : तुम यँही रहते हो क्या ?
रविशंकर : हाँ थोड़ा दूर है घर पर इतना भी नहीं। और तुम ?
कीर्ति : मेरा थोड़ा दूर है घर ( पर ख़ुशी से ) और देखों आज हम यहाँ मिल ही गये। रविशंकर : हाँ उस दिन मैं बस रोकता ही रह गया और बस।
( उदास मन से कीर्ति भी )
कीर्ति : मैंने तो पेन निकाला ही था नंबर लिखने के लिए और तुम ?
रविशंकर : अच्छा छोडो मेरा नंबर लिखों।
( कीर्ति ने अपना पर्स खोला और पेन देखने लगी । तभी कीर्ति का भाई मानो भीड़ की हवा से निकल कर आया और कीर्ति का हाथ पकड़ते हुए ) भाई : कीर्ति मैंने दो टिकेट्स निकाल ली है जल्दी चलो एंटी हो रही है।
( उसके भाई ने इतनी जल्दी मचाई की कीर्ति रविशनकर को देखती रह गई और दोनों इसी सोच में चुप एक दूसरे को देखते रह गये की क्या बोले । उधर उसका भाई उसे जल्दी से खींच कर हॉल की तरफ ले गया पर कीर्ति और रविशंकर की नज़र एक दूसरे को देखती रह गई और कीर्ति भीड़ में खो गई और रविशंकर वंही खड़ा रह गया। बाद में दोनों ने सोचा की मुझे कुछ पल रुकना था। नंबर तो लेना था जरूर। इस बार दोनों की आँखों में अफ़सोस के आंसू टिमटिमा रहे थे।( दिन गुज़रे महीने गुज़रे साल बीत गए। पन्दरह साल बाद फिर एक दिन। एक एम सी डी के ऑफिस में कीर्ति गुस्से में सारे स्टाफ को सुनाती हुई ) कीर्ति : मुझे यहाँ के अफसर से मिलना है कितने दिन हो गये मेरे बेटे को यहाँ के चक्कर लगते, सारा स्टाफ सरकारी सैलरी उड़ा रहा है काम कोई कर के नहीं दे रहा।
स्टाफ : मैडम , कंप्यूटर ख़राब है जैसे ही ठीक हो जायेगा पहले आपके बच्चे के पिता का डेथ सर्टिफिकेट निकलवा देंगे।
कीर्ति : मुझे नहीं पता क्या चार महीने से कंप्यूटर ख़राब है मैं आप सबकी शिकायत करूंगी।
( तभी सब एक लाइन में खड़े हो गए और कोई सलाम कोई नमस्ते करते हुए हाथ जोड़ने लगे। कीर्ति को पीछे करते हुए )स्टाफ : मैडम , थोड़ा पीछे हो जाइये सर आ गये है।
( कीर्ति पीछे हो गई और जैसे ही रविशंकर को देखा तो देखती ही रह गई जैसे ही रविशंकर ने कीर्ति को देखा तो स्टाफ के होने की वजह से कीर्ति को देखकर अनदेखा कर दिया और आगे निकल गया। कीर्ति ने रविशंकर को पहचान लिया था और रविशंकर ने भी कीर्ति को। रविशंकर ने स्टाफ बुलाकर कीर्ति को अपने ऑफिस बुला लिया। )
कीर्ति : क्या अंदर आ सकती हूँ।
रविशंकर : तुम्हे मुझसे इज़ाज़त लेने की जरूरत नहीं। ( रविशंकर ने लड़के के पिताजी का सर्टिफिकेट भी मंगवा लिया था। )
कीर्ति : ( सीट पर बैठते हुए ) तुम अभी भूले नहीं मुझे।
( दोनों ने एक दूसरे के सफेद बालों की तरफ देखा और उदास मन से बोले )
रविशंकर : कीर्ति अभी तक नहीं भुला अब भूलना नहीं चाहता।
कीर्ति : तुमने शादी नहीं की।
रविशंकर : क्यों तुम मुझसे करोगी क्या शादी अब ?
कीर्ति : अब तो तुम्हारे बच्चे भी बड़े हो गए होंगे।
रविशंकर : तुम्हारे हो गए तो समझो मेरे भी हो गए।
कीर्ति : देखों ! क्या ज़िंदगी हो गई तुम्हारे बीना उस दिन अगर रुक जाते तो …
रविशंकर : हाँ , रुक जाते तो मुझे सोचने की बीमारी नहीं लगती ।
( दोनों की आंखें भर आई कीर्ति से इस बार खुद को रोक नहीं पाई और टेबल पकड़ कर रोने लगी। फिर खुद को संभाला और सर्टिफिकेट लेकर वहां से चली गई। रविशंकर भी पतझड़ के पेड़ की तरफ सेहमा आँखों में आंसू लिए कुर्सी पर बैठ गया। एक स्टाफ आया। स्टाफ : सर वो मैडम चली गई क्या ? जो अपने भाई का सर्टिफिकेट लेने आई थी उनको ये चार फोटो कॉपी और देनी थी।
रविशंकर : भाई ? क्या वो इनके भाई का बेटा है।
स्टाफ : हाँ सर , इन्होने तो शादी ही नहीं की।
रविशंकर : तुम कैसे जानते हो इनको।
स्टाफ : सर, ये मेरे एक दोस्त के घर पास रहती है उसी ने एक दिन इनके बारे में बताया था।
( रविशंकर ने स्टाफ से उनका नंबर लिए और फ़ोन किया। )
रविशंकर : कीर्ति मैं तुम्हारा इंतज़ार आज भी कर रहा हूँ चलो कंही बस की टिकट बुक करते है और वंही एक अच्छी सी पिक्चर भी देखेंगे।
कीर्ति : ( रोते हुए ) हाँ अबकी बार तुम्हे नंबर नहीं देना पड़ेगा।
( और दोनों मुस्कुराने लगे। )
आपका अपना दोस्त तनहा शायर हूँ तुम्हे नंबर नहीं देना पड़ेगा। ( और दोनों मुस्कुराने लगे। )