कैसा...ये प्यार
कैसा...ये प्यार
फ़ारुक़ी साहब थे तो, बड़े मिलन -सार अभी कुछ दिनों पहले हमारे मोहल्ले में ट्रांसफर हो कर रहने आए थे, उनके दो बच्चे और हमारे तीन बेटे सब कब बहुत अच्छे दोस्त बन गए पता ही नहीं चला । हम पड़ोसी होने के साथ ही एक ही डिपार्टमेंट में सर्विस में थे ,तो हम दोनों फेमिली की अच्छी बनने लगी।
फ़ारुक़ी साहब ने अपने दोनों बच्चों का एडमिशन भी जहाँ हमारे बच्चे पढ़ते थे वहीं करवा दिया।
फ़ारुक़ी साहब की बड़ी बेटी अलिशा ज़हीन थी और हमारे दूसरे बेटे रियाज़ की क्लास मेट भी थी, दोनों बचपन में साथ-साथ पढ़ाई और खेल-कूद, हंसी-मस्ती मज़ाक़ चलता रहता था बच्चों में घर इतने क़रीब थे कि अलिशा और रियाज़ की रात हो या दिन दोनों दिन भर एक दूसरे के घर में ही जमें रहते बस ज़्यादा रात होती तो बच्चों की अम्मी आवाज़ लगती 'अरे भई 'सुबह स्कूल भी जाना है, चलो सोओ अब बहुत खेल लिया।
अलिशा के पापा का ट्रांसफर होता रहता था, बचपन में बहुत अच्छा लगता था। नए-नए स्कूल और नए दोस्त बनते थे। अलिशा जब सातवीं क्लास में आई तो उसकी वहाँ के दोस्तों से बहुत अच्छी दोस्ती हो गई, उनमें से एक दोस्त कुछ ख़ास ही था।
अलिशा की फेमिली का भी अलिशा दोस्त रियाज़ के घर ख़ूब आना-जाना था । धीरे-धीरे अलिशा और रियाज़ में आर्कषण बढ़ने लगा, लेकिन बाली उम्र थी, दोनों बहुत गहराई से एक दूसरे को चाहने लगे।
स्कूल टाइम में ये बातें हवा की तरह पूरे स्कूल में फैल गई । कुछ अलिशा की क्लास मेट अलिशा से चिढ़कर गलत अफवाह फैलाने लगी।
दोनों का बाल मन यही समझने लगा हमें प्यार हो गया है, मगर वो सिर्फ आर्कषण था, जो छोटी सी उम्र में अक्सर हो जाता है और उस ही ख़्यालों में खोए रहते हैं। अलिशा के पापा का ट्रांसफर हो गया जब वो 10क्लास में थी।
अलिशा के पापा ने बच्चों की पढ़ाई के लिए बड़े शहर में पूरी फेमिली को वहाँ शिफ्ट कर दिया, वो चाहते थे बच्चे अच्छी कोचिंग ज्वाइन करें और 12वीं के बाद इंट्रेनस एग्जाम में बैठे और डाक्टर, इंजीनियर बनने की तैयारी करें।
अलिशा सब कुछ भूल- भाल कर अपनी पढ़ाई में लग गई, मगर रियाज़ अपने ही धून में अलिशा के ख़्यालों में खोया रहता ,पढ़ने में भी औसत ही था ।
यहाँ अलिशा ने मेडिकल का इंट्रेनस एग्जाम दिया मगर एम. बी.बी.एस. में सेलेक्ट नहीं हो पाई तो अलिशा के पापा ने बी.एच. एम. एस. में एडमिशन दिला दिया।
रियाज़ ने भी पापा से ज़िद करके अलिशा वाले कालेज में एडमिशन दिला दें।
आख़िर में रियाज़ के पापा को बहुत सा डोनेशन देना पड़ा, क्योंकि इंट्रेनस एग्जाम में वो पास ही नहीं हो पाया था। रियाज़ और अलिशा फूलें नहीं समा रहें थे उन्हें लगा इतने सालों के बिछड़े हमें उपर वाले ने मिला दिया।
अब कालेज स्टार्ट होने से पहले रियाज़ को अपने लिए घर वगैरह ढ़ूढ़ना था उसके मामू के घर के आस-पास रहने के लिए कमरा दिला दिया गया। कालेज में भी रियाज़ और अलिशा साथ-साथ रहते, सीनियर ने थोड़ा परेशान किया, सब अपनी पढ़ाई में लग गए।
रियाज़ के बारे में अलिशा को समझ आया इतने सालों में रियाज़ तो बड़ा अजीब नेचर का बंदा है, शक्की टाइप क्लास में अलिशा दूसरे लड़कों से फ्रेन्डली बात कर लेती तो गुस्सा हो जाता, अलिशा सोचती इतने सालों से हमारी दोस्ती है, समझ जाएगा मेरा भी नेचर, ये क्या धीरे-धीरे वो तो अलिशा के मामले में पजेसिवनेस बढ़ती गई।
सेकण्ड इयर में आए तो रियाज़ हरदम ये बंदिशे लगाना इस से बात नहीं करोगी, तुम केन्टीन में उन लड़कियों और लड़कों के साथ क्यों गई थी, थर्ड इयर, में फोर्थ इयर में तो गुस्सा सातवें आस
पर जाने लगा, अब क्लास में और जूनियर, सीनियर में पूरी तरह से उनकी लव स्टोरी के चर्चे थे कोई मज़ाक उड़ाता था, कोई अलिशा को बेवकूफ कहता था कि उसने रियाज़ को इतनी छूट कैसे दे रखी है।
कालेज के आख़िरी साल में तो रियाज़ सायको जैसा हो गया। रियाज़ और अलिशा लास्ट इयर में थे ,हम साथ पड़ने वालों को मालूम पड़ा था कि रियाज़ के भाई और पापा ,रियाज़ और अलिशा के रिश्ते को शादी के बंधन में बांधने को तैयार थे, मगर रियाज़ की मम्मी एकदम विरोध में थी। वो सीधा-सीधा इल्ज़ाम अलिशा पर लगाती थी, हमारे फंसा लिया इस लड़की ने । रियाज़ बहुत सताने लगा था अलिशा को एक दो बार तो अलिशा के घर पर उसके भाई और अम्मी के सामने अलिशा से शक्की पने की वजह से झगड़ा किया तुमने राहुल के नोटस क्यों बनाए, तुम दूसरे ग्रुप के लड़कों-लड़कियों के साथ केन्टीन में क्या कर रहीं थी। आदि....
उनके साथ कई स्टेट के स्टूडेंट पड़ते थे ।
अब शुरू होती है बड़ी ख़ामोश मोहब्बत जो सिर्फ आंखों से बंया होती है। पंजाब प्रांत का लड़का था अरमान था तो बहुत सोबर्स था वो शुरू से ही होस्टल में रहा और थोड़ा शर्मीला कम बोलने वाला उसका अलग-थलग रहता था।
रियाज़ के घर वाले हां-ना में ही उलझे हुए थे कि एक दिन अरमान ने अलिशा से अपने दिल में छुपी मोहब्बत को लफ़्ज़ों का जामा पहना दिया।
सालों से तुम्हें चाहता हूँ, पर सही वक़्त का इंतज़ार कर रहा था , के किसी क़ाबिल बन जाऊं तब ही तुमसे अपने दिल की बात कहना चाहता था।
अरमान के अम्मी और अब्बू आए हुए अपने रिश्तेदारों के यहाँ, अलिशा के घर अरमान का रिश्ता की बात की और अरमान के अम्मी और अब्बू दोनों जाब में थे अलिशा के अम्मी और पापा को रिश्ता सही लगा उन्होंने पंजाब जाकर घर- बार देखा और चट-मंगनी पट ब्याह हो गया और रियाज़ मिंयाँ देखते रह गए। अलिशा को समझ आ गया था जहाँ अम्मी और पापा शादी फाइनल कर रहे हैं वही सही है।
हालांकि अलिशा प्यार तो रियाज़ से करती थी, हमनें साथियों पूछा भी किसीने ताना भी मारा के चार साल रियाज़ के साथ बिताए और ऐसा क्या हुआ कि तुमनें अरमान से शादी करने की हां कर दी।
इस अलिशा का बड़े शायराना अंदाज़ में कहना कि हमें "
कौन कहता है कि मोहब्बत,
लफ़्ज़ों से बंया होती है,
मोहब्बत तो आंखों से बंया होती है।
हम सब सहेलियाँ भी ख़ामोश हो गए क्यों कि अलिशा की शादी उसके पापा का लिया फैसला था, सही है बड़े सोच-समझ कर फैसला लेते हैं।