Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Drama Inspirational

4.5  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Drama Inspirational

गब्बर सिंह सी आई डी की गिरफ्त में

गब्बर सिंह सी आई डी की गिरफ्त में

8 mins
472


ठाकुर बलदेव सिंह ने बड़ी ही उत्सुकता के साथ अभी-अभी रजिस्टर्ड डाक से आए हुए उस लिफाफे को खोला। पत्र के अनुसार प्रदेश सरकार ने ठाकुर साहब द्वारा किए गए अनुरोध को स्वीकार करते हुए उनके द्वारा डाकू गब्बर सिंह और उसके गिरोह पर चलाए जा रहे मुकदमे की जांच के लिए इस केस को सी. आई .डी .को सौंपने करने का निर्णय लिया था। इस स्वीकृति से संबंधित पत्र ही इस रजिस्टर्ड डाक द्वारा उन्हें सरकार की ओर से भेजा गया था। प्रदेश सरकार द्वारा ठाकुर साहब के अनुरोध को स्वीकार किए जाने से उनके मन में जो असीम प्रसन्नता हुई उसे उनके चेहरे पर आए भाव स्पष्ट कर रहे थे। वे तुरंत मंदिर में तेजी से गए और अपनी इस खुशी से आंखों में आए आंसुओं के साथ हाथ जोड़कर बारम्बार ईश्वर का धन्यवाद करते हुए बोले-"प्रभु, तेरी महिमा अपरम्पार है। यह सब तेरी दया का फल है कि अब मेरे परिवार को न्याय मिल सकेगा। आज गब्बर सिंह जैसे दुर्दांत डाकुओं ने न्याय व्यवस्था का मजाक बना कर रखा हुआ है। कोई अपनी जान पर खेलकर उसे गिरफ्तार करता भी है तो इस समाज के तथाकथित रखवाले कुछ पैसों की खातिर उसको जेल से भगा देते हैं। पुलिस वाले जो आम जनता को पुलिस से डाकू से या दूसरे अपराधिक तत्वों से सुरक्षा देने की कसम लेकर विभाग में भर्ती होते हैं। वही अपने ज़मीर को अपराधियों के चरणों में गिरवी रखकर अपनी उस कसम को भूलकर असामाजिक तत्वों का साथ देते हैं और जनता पर अत्याचार होता रहता है। वे यह भी भूल जाते हैं कि वर्दी के साथ उन्हें उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए जो वेतन मिलता है उसका भुगतान इसी जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स रूप में इकट्ठे किए गए धन से किया जाता है। आज जनता का पुलिस विभाग पर से विश्वास उठता जा रहा है और लोग पुलिस की बजाय अपराधियों की शरण में अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। यदि कोई ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहे तो उसे मेरी तरह अपने पूरे परिवार का बलिदान देकर उसकी एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है ईमानदार सताए जा रहे हैं और अपराधी राजनेताओं की और राजनेता इन अपराधियों के साथ सांठ-गांठ बनाए रखते हुए सुरक्षित रहते हैं। "


 उन्होंने अपनी विधवा बहू राधा के साथ अपनी यह प्रसन्नता साझा करते हुए उससे कहा-"राधा बेटी! ईश्वर ने हम दोनों की प्रार्थना सुन ली। सरकार की ओर से हमारे पास यह पत्र आ गया है अब हमारे केस की जांच हड़ताल सी आई डी की टीम करेगी। हमें इस टीम का सहयोग पूरी तरह करना है लेकिन इस जांच में जुटी सी आई डी टीम के सदस्यों के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं देनी है। तब ही तो यह सी आई डी की टीम गुप्त तरीके से अपना काम करती पाएगी और गब्बर सिंह और उसका गिरोह जेल की सलाखों के पीछे पहुंचेगा। शासन की ओर से हमें जो पत्र मिला है उसने गब्बर सिंह को उसके गिरफ्तारी के बाद उसे एक अज्ञात जेल में उसे बेनाम कैदी की भांति रखा जाएगा। जहां की जेल के कर्मचारी गब्बर से और गब्बर उस जेल के कर्मचारी आपस में अपरिचित होंगे।


राधा के चेहरे पर कोई भी भाव प्रकट नहीं हुए इसका अर्थ था कि इस समाचार को सुनकर न कोई खुशी हुई और न ही दुख हुआ। उसने केवल इतना कहा-"जी, बाबूजी। "


सी आई डी के अधिकारियों की योजना के अनुसार अजय -विजय नामक दो युवक ठाकुर साहब के नए नौकरों के रूप में आ गए। सौरभ- गौरव ने अपनी पत्नियों के साथ कल्लू लोहार के गांव में लोहरगड़िया के रूप आकर डेरा डाल दिया। संतोष और मनीष ने जादूगर के रूप साथ गांव के मंदिर परिसर में जादूगर के रूप में रहना शुरू कर दिया। सभी ने अपनी योजना और सूझबूझ के अनुसार अपने स्तर पर कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। सौरभ और

गौरव ने कल्लू लोहार के द्वारा खरीदी / सामग्री का विवरण और दुकान से प्राप्त कर लिया था जहां से कल्लू के अपने कारखाने के लिए लोहा इत्यादि खरीदा जाता करता था। था। उसके द्वारा खरीदे गए सामान की किस्म और मात्रा से यह स्पष्ट था कि गांव के विभिन्न लोगों के लोहे के औजार बनाने में जितना लोहा खर्च होना चाहिए था उससे कहीं अधिक लोहा उसकी दुकान पर आया तो इस अतिरिक्त लोहे को मंगवाने का कारण क्या है? उसके कारखाने में यह अतिरिक्त लोहा उस गांव के आसपास गांव में किसानों के लिए बनाए जाने वाले लोहे और किसानों के द्वारा प्रयुक्त लोहे से कहीं मात्रा में ज्यादा था । यह अतिरिक्त लोहा क्यों मंगाया गया और अतिरिक्त लोहा कहां है इसके बारे में कल्लू लोहार कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। कल्लू लोहार की अनुपस्थिति में जब सौरभ गौरव उसकी वर्कशॉप में गए और वर्कशॉप में उन्होंने जो सामग्री देखी उससे उन्हें और ज्यादा सतर्क हो गए क्योंकि उस सामग्री को देखने से स्पष्ट था कि यहां वर्कशॉप में पिस्तौल, बंदूक और राइफल जैसे हथियार भी बनाए जाते हैं इसके अलावा चाकू और तलवार भी बनाए जाते थे। वर्कशॉप के मुख्य दरवाजे पर गार्ड से जानकारी करने पर पता लगा कि यहां से डाकुओं के उनकी मांग के अनुसार हथियार उपलब्ध करवाए जाते थे।


संतोष और मनीष जादूगर के रूप में आस-पास के गांव में मजमा लगा कर लोगों को खेल दिखाते और इसी बीच में अपने मुख्य लक्ष्य का भी ध्यान रखते उन्होंने कई जानकारों से यह जानकारी जुटाई कि गब्बर सिंह के गिरोह के लोग गांव में घूम घूम कर लोगों को धमका कर उनसे अवैध रूप से वसूली करते हैं जो व्यक्ति किसी भी कारणवश उनको पैसा या अनाज देने में असमर्थता जाहिर करता है। तो डाकू रात के अंधेरे में आकर उसके घर में धावा बोलकर उसका सारा सामान लूट जाते लूट ले जाते और लूट के दौरान उन्हें शरीर रूप से और बहुत अधिक प्रताड़ित करते थे। गिरोह के लोग ग्रामीण क्षेत्र से भागकर शहरों की ओर आ रहा है किस गांव के कुछ लोग भी गांव छोड़कर शहर जा चुके थे।


ठाकुर साहब की हवेली में ठहरे हुए अजय -विजय उनकी और बहू की देखभाल की व्यवस्था रामू काका के साथ मिलकर देखने लगे। उनका उद्देश्य ठाकुर साहब और उनकी बहू की हिफाजत करना और सावधानी के साथ उनके आसपास के लोगों की जानकारी एकत्रित करना था इसके अलावा अपने गांव के आस-पास के गांव में कोई असंवैधानिक कार्य होता है या सरकार दरा संगठित कार्य करने की योजना बनती है और उसका 

कार्यान्वयन किया जाता है। तीनों समूहों के लोग ये सब विमर्श पूर्व निर्धारित समय पर कर लिया करते थे और एक दूसरे को अपनी प्रगति से अवगत कराते थे।


सबसे पहला आक्रमण कल्लू लोहार के वर्कशॉप पर सी आई टीम के द्वारा किया गया और पिस्तौल , बंदूक जैसे सामान में प्रयोग होने वाली सामग्री और विशेष तौर हथगोले और इनमे प्रयुक्त सामग्री जब्त कर ली। इसका डाकू के गिरोह को पिस्तौल बंदूक तलवार की आपूर्ति बंद हो गई। संतोष- मनीष की सूचना पर ग्रामीण क्षेत्रों में धमकी देने आए लोगों को रंगे हाथों दबोच लिया गया और उनके इस काले कारनामे के प्रत्यक्षदर्शी गवाह भी जुटाए गए। संतोष मनीष ने अपने भ्रमण के दौरान डाकुओं के रहने के कई ठिकानों का पता लगा लिया वह एक ऐसी जगह पर नहीं रहते थे जगह बदलते रहते थे।


तीनों समूह द्वारा जुटाई गई सूचना के आधार पर गोपनीय तरीके से सीआईडी के प्रमुख अधिकारियों के दिशा निर्देश में पुलिस मुख्यालय को सूचना लेकर छापा करवाया गया। छापामारी का क्रियान्वयन सी आई डी टीम के लोगों के द्वारा बनाई गई योजना में एक सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सोते हुए डाकुओं के डेरे पर आक्रमण कर दिया गया। इस मुठभेड़ में चार डाकू मारे गए और सात पुलिस के जवान घायल हुए। गब्बर को पुलिस ने चारों ओर से गिरकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। सी आई डी के इन अधिकारियों की सूझबूझ और योजना के अनुसार गब्बर अपने पंद्रह साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। कल्लू लोहार की वर्कशॉप पर पड़े छापे के प्रत्यक्षदर्शी गवाह और ग्रामीण इलाकों में गांव वालों से अवैध रूप से वसूली कर रहे डाकू के खिलाफ सी आई डी अधिकारियों ने कुछ लोगों को सरकारी गवाह बना लिया।


ठाकुर साहब की हवेली पर रहते हुए विजय को ठाकुर साहब की बहू राधा का सादगी और सरलता से भरा व्यवहार बहुत भाया। राधा पूरी शालीनता के साथ रह रही थी लेकिन विजय के मन में उसके प्रति जो प्रेम का बीज अंकुरित हुआ उसका एहसास राधा को भी था। विजय ने ठाकुर साहब से राधा को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का निवेदन किया। ठाकुर बलदेव सिंह ने राधा के माता-पिता से बात की तो उन्होंने ठाकुर साहब से कहा कि मैंने तो जब बेटी आपके घर दे दी थी तब से आप ही इसके माता-पिता है। इसके भविष्य को लेकर सारे निर्णय आपके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ठाकुर साहब भी राधा को वैधव्य जीवन से पुन: एक हंसती खेलती जिंदगी प्रदान करने के विचार से बहुत ही प्रसन्न थे। सीआईडी टीम के तीनों समूहों के सी आई डी अधिकारी बराती के रूप में रामगढ़ में ठाकुर साहब की हवेली पर आए। जहां लोक रीति के अनुसार ठाकुर साहब ने राधा का हाथ विजय के रूप में सौंपते हुए पाणिग्रहण संस्कार की रस्म राधा के पिता के रूप में अदा की और उन्हें सुखी समृद्ध जीवन व्यतीत करते हुए उसी हवेली में उनके साथ रहने का आग्रह किया जिसे विजय ने ठाकुर साहब की आज्ञा मानकर सहर्ष स्वीकार कर लिया।


एक विशेष फास्ट ट्रैक अदालत में हुई सुनवाई में गवाहों और सी आई डी अधिकारियों की विवेचना के आधार पर कार्यवाही हुई और इसमें गब्बर सिंह और उसके तीन साथियों को आजन्म कैद की सजा सुनाई गई । दूसरे डाकुओं को भी पांच से दस वर्ष की सजा सुनाई गई। गब्बर सिंह को उसकी आजीवन सजा के लिए किस जेल में भेजा गया इसकी जानकारी किसी भी पुलिसकर्मी को नहीं हुई और जिस जेल में उनको भेजा गया है उस जेल के कर्मचारियों को भी इन विशेष कैदियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।


रामगढ़ क्षेत्र जो एक लम्बे समय से डाकुओं के आतंक से आतंकित था। आज डाकुओं के प्रभाव से मुक्त हो चुका था जिसका श्रेय ठाकुर साहब की दृढ़ इच्छाशक्ति और सूझबूझ को ही लिया जाना चाहिए था और दिया भी गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract