Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Arunima Thakur

Abstract Romance Inspirational

4.5  

Arunima Thakur

Abstract Romance Inspirational

स्त्रीत्व..

स्त्रीत्व..

5 mins
270


नवरात्रि के नव रंग 

(नवां दिवस - गुलाबी रंग)


नौ देवियों के रूप में आठवीं नारी शक्ति सखी को नमन है।

नवरात्रि का आठवां दिवस माँ सिद्धिदात्री के नाम है।

गुलाबी रंग शुद्धता और स्त्रीत्व का प्रतीक है।


हे भगवान पता नहीं कितना डरावना सपना था। हृदय घबराहट में सोते से उठ कर बैठ गया। सपना तो याद नहीं पर हृदय की सांसे चढ़ी हुई थी। उसने बगल में रखी टेबल पर से पानी उठा कर पिया। जीरो बल्ब की हल्की सी रोशनी पूरे कमरे को रोशन कर रही थी। खुशी उसकी पत्नी बगल में ही सो रही थी I नीली रोशनी उसके पूरे शरीर पर पड़ रही थी। खुले घुंघराले बालों से उसका आधा चेहरा ढका था। पूरा शरीर अनावृत था। हृदय ने मुस्कुराते हुए चादर खींचकर उसको ओढ़ाई I कितनी मासूम है आज भी और जिद्दी भी। उसे याद है कैसे शादी के कुछ महीनों बाद ही उसने बोल दिया था निकालने का इतना शौक है तो कपड़े पहनाने भी आपको ही पड़ेंगे। आज थकान ज्यादा थी दोनों ऐसे ही सो गए थे। खुशी का शरीर क्या ऐसा ही था दस साल पहले ? नहीं ना ! कितना बदल गया है। जिम्मेदार कौन था ? वहीं ना ! छोटे बच्चे की तरह, जैसे बच्चे खेल खेल कर खिलौने का पूरा रूप बिगाड़ देते हैं। पर वह कोई खिलौना मात्र ना थी वह तो हाड़ माँस की जीवित रचना थी। 


हृदय की हिम्मत भी कैसे हुई ? ऐसा सोचने की। वह कोई खिलौना नहीं है कि वह उसे बदल कर दूसरी नयी लेकर आ जाएगा।  खुशी को देखते हुए हृदय मन ही मन सोच रहा था कि शरीर पर भले ही उम्र के निशान आ गए हैं पर वह आज भी वैसे ही मासूम है। उसके बालों से ढके आधे चेहरे पर मधुर सी मुस्कान थी। इतनी बड़ी बात घर में हो रही है। अम्मा हृदय पर दबाव डाल रही है पर खुशी कितनी निश्चिंत है। यह उसका प्यार है या हृदय पर उसका विश्वास जो उसे इतनी निश्चिंतता से सोने देता है। 


हृदय को दस साल पहले की खुशी याद आ गई जो घूंघट की ओट से मुस्काती रहती थी। उसे देखकर ना जाने कैसे-कैसे इशारे करती थी, बिल्कुल पागल ही थी वह। परिवार की भीड़ में भी घूंघट की ओट में से झांकती एक शरारती आँख और वह बादलों को चीर कर निकलती सूर्य किरणों सी उसकी मुस्कान उसका पीछा नहीं छोड़ते थे। नई नई शादी संयुक्त परिवार, बच्चे भी थे, बड़े भी। हृदय को संकोच होता पर वह बड़े अधिकार से घूंघट का फायदा उठाकर मनचाहे इशारे करती। हृदय के डॉंटने पर निःसंकोच बोलती, "अरे अपने पति को इशारे कर रही हूँ किसी गैर को नहीं। मेरे पास लाइसेंस है।" हृदय ऊपर से झुँझलाता पर भीतर से हंसते हुए कहता, "कैसी बेशर्म से मेरी शादी हुई है।"  


हृदय थोड़ा दब्बू था या यूँ कहें परिवार का लिहाज करता था पर खुशी घूंघट की ओट में वह सारी हरकतें जो नये नवेले दुल्हे द्वारा की जाती है, कर डालती। चाय देने के बहाने हाथ पकड़ लेती। वह सकपका जाता, कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। वह घूँघट में शरारत से मुस्कुराती। अक्सर खुशी घूँघट को दो उँगलियों से थोड़ा सा खोलकर उसे फ्लाइंग किस देती और वह शर्मा जाता। शादी के बाद पाँच साल यूँ ही खट्टी मीठी छेड़छाड़ में बीत गए। 


खुशी के मुख पर मुस्कान तो आज भी थी बस घूंघट थोड़ा छोटा हो गया था। अब उसे परिवार के लोगों ने बच्चे ना होने का ताना देना शुरू कर दिया था। हृदय सुनकर परेशान हो जाता था पर खुशी मुस्कुरा कर कहती, "अपने ही तो है बच्चों के बारे में पूछते हैं तो क्या हुआ "? 


जिन्हें वह अपना कहती थी। वही अपने बच्चा ना होने कारण उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देना चाहते हैं। वह खुद भी तो कितना गिर गया है, वह ऐसा सुन भी कैसे सकता है। कहने वालों को डाँट क्यों नहीं दिया। शादी के पाँच साल बाद उसका ट्रांसफर हो जाने पर वह खुशी को लेकर दूसरे शहर चला आया था। नए शहर में नई गृहस्थी बसाने के साथ ही घूंघट के साथ ही खुशी की मुस्कान भी कम हो गई। घर में सब के साथ जो खिले फूल सी महकती थी वह अकेली गृहस्थी में मुरझाने लगी। डॉक्टर ओझा पीर फकीर सब शुरू हो गया था। डॉक्टर ने कहा था दोनों में भी कोई कमी नहीं है, बस बच्चे क्यों नहीं हो रहे है? समझ नहीं आ रहा है। 

आज बिस्तर पर बैठकर वह सपने से ही नहीं हकीकत में भी जाग गया था। अब तक खुशी अकेले ही बांझ होने के बोझ को ढोती रही है। कमी उसमें नहीं है तो फिर वह अकेली दुनियावालों की बातें ताने क्यों सुनें ? कमी तो हृदय में भी नहीं है। उनको बच्चे नहीं हो रहे हैं तो इसमें ना तो यह सिद्ध होता है कि वह पूर्ण पुरुष नहीं है ना ही यह कि खुशी में नारीत्व की पूर्णता नहीं है। वह दोनों पूर्ण है एक दूसरे के साथ। बच्चा होना एक प्रक्रिया है, औरत या मर्द की पूर्णता का प्रमाणपत्र नहीं। 


हृदय ने पलट कर खुशी के माथे पर स्नेह चिह्न अंकित किया। खुशी सोते सोते भी मुस्कुरा दी। हृदय ने निर्णय लिया, घूंघट भले ही ना हो पर इस प्यारी सी मुस्कान की जिम्मेदारी उसकी है। कल ही वह खुशी से बात करके, अगर खुशी को चाहिए तो अनाथ आश्रम से बच्चा लेकर आएंगे। नहीं तो वह दोनों ही एक दूसरे के लिए पर्याप्त है। 


आज चार बच्चे वाले भी बुढ़ापा अकेले या वृद्वाश्रम में काटने को अभिशप्त है तो क्या बच्चा होना इतना आवश्यक है?


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract