प्रकृति सौन्दर्य
प्रकृति सौन्दर्य
नदी की,
झिलमिल-सी धारा,
टकराती इक से,
इक धारा ।
झर-झर झरते निर्झर,
कल कल करता,
सरित स्वर,
मदमाते खग गगन,
विहंगम ।
तब लगे झींगुर गान,
अति प्यारा,
टकराती इक से,
इक धारा ।
हरियाली फैली,
हो धरती पर,
चमके तारे,
आज गगन पर,
बैठे हो मदमस्त,
अलि फूलों पर,
मानो स्वर्ग,
अवनि से हारा ।
नदियों की,
झिलमिल-सी धारा,
टकराती इक से,
इक धारा ।