ना, मेरे बच्चे ना
ना, मेरे बच्चे ना
पी के शराब परदेश में
इक रोज़ देखा जो आईना
सामने घबरा के कहती माँ दिखी
ना, मेरे बच्चे ना
सिगरेट पी, उड़ाया धुआँ
धुएँ में उड़ती माँ दिखी
अपनी आँखें पोंछती
शायद सिगरेट का धुआँ
माँ की आँखों में लग गया
थका हारा जब घर लौटा
जैसे घर में पहले से कोई हो बैठा
बिन दिखे बिन कुछ कहे
शायद कोई हिफाज़त कर रहा है
लगता है माँ की दुआओं में
अब ख़ुदा रहने लगा है
बड़े शहर में घूमा, भटका, फिरा
आख़िर में दिखा माँ का वही आँचल हरा
कैसे अपने हाथों से खिलाती थी
पैर पे ले झूला झुलाती थी
मेरी माँ इतनी भोली थी
जब कभी थक जाती थी
सुलाते सुलाते मुझे
आँख उसकी भी लग जाती थी
जब रखता था छोटी सी हथेली गाल पे उसके
“क्या हुआ?” कह मेरी माँ चौंक जाती थी
और मेरी माँ जब मुझे कपड़े पहनाती थी
उसकी साँसों से कानों में मेरे आवाज़ ये आती थी
मेरे लाल को कपड़े की कभी कमी न रहे
मेरा लाल यूँ ही हमेशा सजता रहे
एक माँ ही है जो अपने बच्चे के लिए
ज़िन्दगी भर दुआ में रोती है
शायद इसीलिए माँ, माँ होती है।