ऐसी मानसिकता क्यों...???
ऐसी मानसिकता क्यों...???
वो गुज़रा ज़माना था,
जब लोग अतिथि का स्वागत
तह-ए-दिल से किया करते थे...।
मगर आज के इस यांत्रिक जीवन में
कुछ ऐसे मेज़बान भी हैं,
जो कि अतिथि से पीछा छुड़ाने के
नये-नये हथकंडे अपनाते फिरते हैं।
मसलन (कुत्ते न होते हुए भी) मुख्य द्वार पर
ये लिखकर रखना : "कुत्तों से सावधान !!!"
या नहीं तो मुख्य द्वार को
अति चालाकी से अंदर-बाहर
दोनों तरफ कुंडी लगाकर रखना,
जिससे कि अतिथि
बाहर से ही निराश होकर लौट जाए।
अगर मुख्य-द्वार पर
गृहस्वामी से अतिथि की मुलाक़ात
हो भी जाए, तो वह
कोई-न-कोई नया बहाना बनाकर
अतिथि को मुख्य-द्वार से
बाहर कर देने से भी बाज़ नहीं आते !!!
ऐसा नहीं है कि
मेज़बानी करने की
उनकी औकात नहीं,
हक़ीक़त में अतिथि का
तह-ए-दिल से स्वागत करने की
उनकी सदिच्छा ही नहीं !
लोग अपनी स्वार्थ भरी दुनिया में
इस कदर खो चुके हैं
कि एक ही परिवार में रहकर भी
घर के सदस्य
मोबाइल फोन पर ही
ज़्यादा समय बिताने लगे हैं,
न कि एक-दुसरे का
हाल-चाल पूछने में !
ऐसे कई लोग हैं जो कि
अपने मोबाइल फोन से
थोड़ी देर के लिए 'नज़रें हटाकर'
अतिथि का स्वागत करने की
बात से भी कतराते हैं !
अक्सर देखा जाता है कि
बिना स्वार्थ के
कोई किसी को
एक प्याली चाय तक नहीं पूछता,
अतिथि की आवभगत की
तो बात ही छोड़िए !
आज हमारा समाज
किस दिशा में जा रहा है...???
क्यों आज कुछ लोग
इतने अवसरवादी एवं स्वार्थी बन चुके हैं ?
