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निशान्त मिश्र

Abstract

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निशान्त मिश्र

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"ये विश्वगुरु भारत ही है"

"ये विश्वगुरु भारत ही है"

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"हे पथिक, दिखाई दे तुमको

जहाँ आसमान भी केसरिया

कर्णों में गुंजित हो निनाद

शंख ध्वनि संग बाँसुरिया


निश्चय कर लो, ये भारत है

ये विश्वगुरु भारत ही है


सिंहो के सदृश कपाल दिखें

चन्दन लेपित सब भाल दिखें

जहाँ भक्ति धार में लीन चलें

काँधे पे कलश ले काँवरिया


निश्चय कर लो, ये भारत है

ये विश्वगुरु भारत ही है


जहाँ प्रहरी स्वयं नगेश मिलें

दल दमन रिपु, पर्यागत को

दीपक कर में जहाँ दिखे सदा

अभ्यागत के सुस्वागत को


निश्चय कर लो, ये भारत है

ये विश्वगुरु भारत ही है


जहाँ पग पग पे धीमान् मिलें

करते गीता का ध्यान मिलें

हरिलीला मिले, हरियाली मिले

हों दुग्ध्ताल सी सब नदियाँ


निश्चय कर लो, ये भारत है

ये विश्वगुरु भारत ही है


हो मानस की जिसमें सुवास

जन जन की बोली में मिठास

हर हर, बम बम, श्री राम, ॐ

वंदन, पूजन, निशि-दिन प्रकाश


निश्चय कर लो, ये भारत है

ये विश्वगुरु भारत ही है


जो यज्ञ, धर्म की धूनी है

तप, शौर्य, ज्ञान की भूमि है

जो निर्विवाद है शांतिदूत

निश्चय ही भारत भूमि है


भारती में गाता रक्ततुंड

जब मिले तुम्हारे स्वागत को

हे पथिक, उसे करना प्रणाम

ये विश्वगुरु भारत ही है।"


..... निशान्त् मिश्र


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