ये कैसा विधान विधाता का
ये कैसा विधान विधाता का
जिसे मानते सुख का उपवन और आकांक्षित प्रीत,
वो ही बिछुड़न पे दुख का कारण बन जाता है मीत।
मंगल, मोहन, पावन, शितवन और मधुर श्री राम,
पर उनके वनवास के कारण, दशरथ त्यागे प्राण।
प्रेम मधुरस काम आकांक्षी सज सोलहों श्रृंगार,
पर कोमल अधरों से भी होते कितने तकरार।
दुर्योधन का चीर निमंत्रण द्रौपदी का इनकार,
फिर उसके परिहास से जनित भीषण नर संहार।
मन तो चाहे प्रेम का मधुवन ढूंढे सुख की छाँव,
पर दुख की भी बदली आती छिपती नंगे पाँव।
मछली को ले खींच के लाती है आटे की चाह,
उसे ज्ञात क्या बनी आखेट वो चली मौत की राह।
माँ सीता के हरण का कारण, वो सोने का लोभ,
मृगनयनी ने जनित किया था विश्वामित्र में क्षोभ।
कैसा ये विधान विधि का कैसा ये संयोग ?
कोमल कलियों में छिपे हुए होते काँटों के योग।