अभी मैं मशरूफ हूँ
अभी मैं मशरूफ हूँ
अभी मैं मशरूफ हूँ
गुफ्तगू खुद से करने में।
सपनों में आता है कोई
बाँट उसकी ताकने में।
अभी मैं मशरूफ हूँ
खुद को सजाने सँवारने में।
आईना ताकती हूँ मैं
उन्हें रिझाने के लिये।
अभी मैं मशरूफ हूँ
घर अपना सँवारने में।
खड़ी हूँ दरवाजे पे
राह उनकी निहारने में।
अभी मैं मशरूफ हूँ
रसोई की ताक झांक में।
दो निवाले हाथों से खिलाऊँ
चाहत यह पूरी करने में।
अभी मैं मशरूफ हँ।
बातों का सिलसिला शुरू करने में।
बतियाते हैं मीठी बातें
दिल में संजोने के लिये।
अभी मैं मशरूफ हूँ
आँख भर देखने में।
आये हैं वो इस तरह
वापस फिर जाने के लिये।
अभी मैं मशरूफ हूँ,
अभी मैं मशरूफ हूँ।